पानी की बर्बादी रुकेगी, तभी होगा जल संकट का समाधान

गर्मियां आते ही जल संकट के हालात बनने पर इस दिशा में बहुत चर्चा होती है। शासन-प्रशासन भी सजग दिखाई देता है लेकिन जैसे ही बरसात आ जाती है प्राथमिकता बदल जाती हैं और इस दिशा में प्रयास सिथिल हो जाते हैं। इसलिए आगे भी लगातार इस दिशा में प्रभावी प्रयास अनवरत जारी रखे जाने चाहिए।

Update: 2022-03-31 08:45 GMT

वर्षा जल को जमीन के अंदर संरक्षित करने के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग और पानी को ताल-तलैया-तालाबों आदि में ज्यादा से ज्यादा संरक्षित करने की आवश्यकता है। सभी फोटो: गांव कनेक्शन

देश के ज्यादातर राज्यों में धीरे-धीरे गर्मी अपना रौद्र रूप दिखाने लगी है। इसके कारण पारा चढ़ना शुरू हो गया है। जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है उसी के साथ जल संकट का दौर भी शुरू होने लगा है। देश में अलग-अलग हिस्सों में पानी की कमी की खबरें अखबारों और मीडिया की सुर्खियां बन रहीं हैं। देश के अधिकांश भागों में गर्मियों शुरू होते ही हर वर्ष पानी की समस्या एक आम बात हो चली है।

आखिरकार ऐसी इस स्थिति तब है, जब कि कुछ माह बाद वर्षा शुरू होने के बाद देश के कई हिस्सों में बाढ़ और जल प्लावन की खबरें भी सामने आती हैं। देश के कई हिस्सों में नदियां उफनकर उपना रौद्र रूप दिखाते हुये सब कुछ बहा ले जाने को आमादा होती हैं। इससे स्पष्ट तौर पर यह बात शीशे की तरह साफ हो जाती है कि देश में पानी की कमी की समस्या नहीं बल्कि पानी के समुचित नियोजन की कमी स्पष्टतः प्रतीत होती है।

आंकड़ों के अनुसार पृथ्वी पर पाये जाने वाले जल का कुल 97 प्रतिशत भाग समुद्र में खारे पानी के रूप में विद्यमान है जो कि पेयजल और सिंचाई आदि के कार्य में उपयोगी नहीं है। शेष 3 प्रतिशत जल में से 2.5 प्रतिशत जल बर्फ के रूप में ग्लेशियरों-हिमखण्डों और उनसे निकलने वाली नदियों के रूप में पाया जाता है।

पृथ्वी पर मात्र आधा प्रतिशत पानी भूगर्भ जल के रूप में जमीन में विद्यमान है। इसी मीठे जल स्रोत पर सिंचाई, पेयजल, उद्योग आदि की जवाबदारी है। यही भूगर्भ जल मनुष्यों से लेकर जानवरों के पेयजल के साथ ही खेती में सिंचाई के काम आता है। लेकिन आज सबसे ज्यादा दोहन इसी भूगर्भ जल का हो रहा है। जिसके चलते भूगर्भ जल स्तर साल दर साल नीचे गिरता चला जा रहा है। देश के अधिकांश जिलों में भूगर्भ जल की स्थिति अत्यंत भयावह है। आंकड़ों पर गौर डालें तो देश के कई विकासखण्डों में भूगर्भ जल स्तर डार्कजोन की स्थिति में आ गया है। जहां पर सिंचाई के लिए बिना शासन की अनुमति के नलकूप के लिए बोरिंग भी नहीं करा सकते हैं।


देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां वर्षा की स्थिति अच्छी होने के बावजूद भी भूगर्भ जल का स्तर 1000 फीट से लेकर 1500 फीट नीचे तक पहुंच गया है। विडंबना की बात यह है कि इस स्तर पर भी पानी की बहुतायत न होकर पानी की कमी और खारे पानी जैसी समस्याएं देखी जा रही हैं। देश के कई राज्य और उसके अधीन आने वाले जिलों में औसत वर्षा अच्छी होने के बावजूद भी जलस्तर नीचा ही नहीं बल्कि गर्मियां शुरू होते ही पानी का संकट शुरू हो जाता है। ऐसा किसलिए है यह बात आसानी से समझी जा सकती है। यदि किसान-आम जन भूगर्भ जल का समुचित उपयोग करने के साथ ही वर्षा जल के संचय और नियोजन की तरफ ध्यान दें तो इस समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। गौरतलब है कि सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता खेती में सिंचाई के लिए होती है, उसके बाद उद्योगों और पेयजल का नम्बर आता है।

आज जरूरत इस बात की है कि प्रत्येक स्तर पर वर्षा जल के संचय की प्रवृत्ति अपनाई जाए और वर्षा जल को संरक्षित कर आगे के लिए रखा जाए तो गर्मियों में आने वाले पानी के संकट पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। इसके लिए किसानों से लेकर आम आदमी, शासन-प्रशासन, जनप्रतिनिधि, गैर सरकारी संगठनों आदि को प्रयास करने होंगे। आज से और अभी से वर्षा जल संचय की ओर ध्यान देना होगा। इसके लिए वर्षा जल का विभिन्न स्तरों पर हर संभव नियोजन करने की जरूरत है। आम आदमी के छोटे-छोटे प्रयास भी इस दिशा में काफी सार्थक सिद्ध हो सकते हैं। जल संरक्षण की दिशा में किये गये प्रयासों से ही जल संकट का समाधान संभव हो सकेगा।

इस दिशा में बातों की बजाय व्यावहारिक रूप से आगे आकर काम करने की जरूरत है। इसके लिए वर्षा जल को जमीन के अंदर संरक्षित करने के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग और पानी को ताल-तलैया-तालाबों आदि में ज्यादा से ज्यादा संरक्षित करने की आवश्यकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि खेत का पानी खेत में, गांव का पानी ताल में और ताल का पानी पाताल में रोखकर संरक्षित करना होगा तभी कुछ बात बन सकेगी। इस संबंध में महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा भी अभी कुछ दिनों पहले एक कार्यक्रम में भविष्य में आने वाले जल संकट पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है। उनका कहना है कि जल संरक्षण की दिशा में अभी से कार्य शुरू नहीं किया गया तो बहुत देर हो जायेगी। इतना तय है कि आज से और अभी से ही इस दिशा में प्रयास नहीं किए गए तो अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए ही होगा।

भारत सरकार द्वारा इस दिशा में कई सार्थक प्रयासों पर गंभीरता से अमल किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसका महत्व समझते हुए देश में पहली बार अलग से राष्ट्रीय स्तर पर जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया है। मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री के साथ ही इस कार्य के लिए भारी भरकम बजट का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है। देश की जीवन दायिनी नदियों की साफ-सफाई से लेकर नदियों को आपस में जोड़ने बात हो अथवा हर घर शुद्ध पेयजल पहुंचाने की पहल के प्रयास सभी कार्य सकारात्मक दिशा में जा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे जल शक्ति अभियान सरकार के विभिन्न मंत्रालयों का एक सहयोगी प्रयास है। भारत सरकार, राज्य सरकारें, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान केन्द्र, पेयजल और स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा समन्वित रूप से एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जा रहा है।


जल शक्ति अभियान सरकार के विभिन्न मंत्रालयों का एक सहयोगात्मक प्रयास है। मंत्रालय ने एक राष्ट्रव्यापी अभियान ''जल शक्ति अभियानः कैच द रेन'' की शुरूआत की गई है। यह अभियान 29 मार्च से ''वर्षा को पकड़ों, जहां गिरता है, जब यह गिरता है'' विषय के साथ वर्षा जल को बचाने और संरक्षित करने पर केंद्रित है। यह अभियान आगामी 30 नबंबर 2022 तक देश के सभी जिलों में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में चलेगा। अभियान के तहतः वर्षा जल संचयन और जल संरक्षण, सभी जल निकायों की गणना, भू-टैगिंग और सूची बनाना। जल सरंक्षण के लिए वैज्ञानिक योजना तैयार करना। देश के सभी जिलों में जल शक्ति केंद्र की स्थापना करना। गहन वनरोपण ओर जागरूकता पैदा करना शामिल किया गया है।

अभियान के अंतर्गत ही देश के प्रत्येक कृषि विज्ञान केंद्रों को इस अवधि के दौरान किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और किसान मेला आयोजित करने का लक्ष्य तयः किया गया है। इसी प्रकार से अन्य विभागों आदि के लिए भी अलग-अलग लक्ष्य तयः किये गए हैं। निश्चित रूप से भारत सरकार द्वारा इस दिशा में जिस गंभीरता से पहल की जा रही है, उसे देखते हुये यह प्रयास जल संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध होगें।

वर्षा जल संचय के साथ ही नदियों को जोड़ने के प्रयास भी भविष्य में जल संकट के समाधान की ओर एक सार्थक पहल सिद्ध होगी। भारत सरकार इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर भी रही है। केन-बेतवा जैसी नदियों को जोड़ने का कार्य हो अथवा नर्मदा-गंगा जैसी नदियों का पानी दूरदराज तक अन्य शहरों में ले जाने की बात हो, केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इस दिशा में बहुत अच्छा काम किया गया है। नहरों से लेकर नदिंयों और रजवाहों पर आवश्यकता अनुसार भौगोलिक एवं पर्यावरणीय स्थितियों को ध्यान में रखकर चैक डेम का अधिक से अधिक निमार्ण कराकर वर्ष पर्यन्त पानी की उपलब्धता आसानी से सुरक्षित की जा सकती है।

लेकिन किसानों आम नागरिकों को भी इस दिशा में आगे आकर जल संचय की प्रवृत्ति पानी को बर्बाद करने की मानसिकता में बदलाव लाने की जरूरत है। गर्मियां आते ही जल संकट के हालात बनने पर इस दिशा में बहुत चर्चा होती है। शासन-प्रशासन भी सजग दिखाई देता है लेकिन जैसे ही बरसात आ जाती है प्राथमिकता बदल जाती हैं और इस दिशा में प्रयास सिथिल हो जाते हैं। अतः आगे भी लगातार इस दिशा में प्रभावी प्रयास अनवरत जारी रखे जाने चाहिए।

सिंचाई जल पर निर्भरता कम करने के लिए किसानों को कम पानी चाहने वाली फसलों को अपनाना होगा। कम पानी वाले क्षेत्रों में धान, गन्ना, गेहूं जैसी अधिक पानी चाहने वाली फसलों के स्थान पर अपेक्षाकृत कम पानी में पककर तैयार हाने वाली दलहन, तिलहन और मिलेट फसलों को बढ़ावा देना होगा। खेती में भी सिंचाई के लिए सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियों एवं सिंचाई के उचित तरीकों को अपनाया जाये तो 40 से लेकर 80 प्रतिशत तक सिंचाई जल की बचत की जा सकती है।

इसके लिए किसानों को बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति और बौछारी सिंचाई पद्धति को अपनाना होगा। खेत में सिंचाई खुले रूप में की जाती है तो सर्वप्रथम यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि खेत समतल होना चाहिए। सिंचाई करते समय पानी को क्यारी में छह से आठ इंच भरने की जगह तीन से चार इंच तक ही पानी एक बार में भरा जाये। फसलों में सिंचाई करते समय आधी क्यारी भर जाने के साथ ही पानी रोक देंगे तो निश्चित रूप से पूरी क्यारी में आवश्यकता के अनुरूप सिंचाई जल की पूर्ति फसलों को हो सकेगी और पानी की बर्बादी भी रूकेगी। इस प्रकार के छोटे-छोटे प्रयास भी जल संकट के समाधान की दिशा में मील का पत्थर साबित होगें।

(डॉ सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, शिवपुरी, मध्य प्रदेश के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं, यह उनके निजी विचार हैं।)

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