वैज्ञानिकों ने विकसित किया सिंथेटिक कॉस्मेटिक का ऑर्गेनिक विकल्प

वैज्ञानिकों ने गहरे समुंद्र में मिलने वाले बैक्टीरिया की मदद से सिंथेटिक कॉस्मेटिक का ऑर्गेनिक विकल्प विकसित किया है।

Update: 2021-07-16 11:22 GMT

पराबैंगनी किरणों से प्रतिरोध द्वारा त्वचा को कांतिमय बनाने में बैसिलस क्लॉसी नामक एक ग्राम-पॉजिटिव जीवाणु के एक नोवेल स्ट्रेन का उपयोग किया जाता है। प्रतीकात्मक तस्वीर: पिक्साबे 

वैज्ञानिकों को ऐसे तत्व को तलाशने में सफलता मिली है जिसका उपयोग एंटी एजिंग कॉस्मेटिक सामग्री, महंगे सौंदर्य प्रसाधनों और स्किन केयर उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। अभी तक देश में इसका मुख्य रूप से आयात ही किया जाता रहा है, लेकिन वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस खोज से देश को इस मामले में भी कुछ हद तक आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिलेगी। जिस बैक्टीरिया से यह सौंदर्य प्रसाधन बनता है, वैज्ञानिकों ने उसे अंडमान सागर में खोज निकाला है।

वैज्ञानिकों ने जीन कोड से इसका उत्खनन कर उसके व्यापक स्तर पर उत्पादन के लिए उसे एक सामान्य रूप से पाए जाने वाले बैक्टीरिया में रूपांतरित किया है। चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (एनआईओटी) ने हाल में बायोसर्फेटेंट की भी खोज की है जिसका उपयोग दवा उद्योग से लेकर आईसक्रीम बनाने में रासायनिक आर्द्रक के रूप में किया जाता है।

एनआईओटी में मरीन बायोटेक्नोलॉजी के ग्रुप हेड जी. धाराणी ने बताया, "अभी तक इकोटिन का आयात ही किया जा रहा है। हमारी तकनीक न केवल उसके निर्माण की लागत घटाएगी, बल्कि इससे विदेशी निर्भरता भी कम होगी।"


पराबैंगनी किरणों से प्रतिरोध द्वारा त्वचा को कांतिमय बनाने में बैसिलस क्लॉसी नामक एक ग्राम-पॉजिटिव जीवाणु के एक नोवेल स्ट्रेन का उपयोग किया जाता है। इस स्ट्रेन की खोज भी एनआईओटी में मैरीन बायोटेक्नोलॉजी ग्रुप की एक टीम ने की है। इससे वह इकोटिन बनाया जाता है जो उम्र के साथ त्वचा पर पड़ने वाले प्रभावों को रोकने में मददगार होता है। वैज्ञानिकों ने इकोटिन के जीन कोडिंग को लेकर उसे एशरेशिया कोली या ई-कोली में ढाला ताकि प्रयोगशाला में उसे विकसित कर उसके व्यावसायिक एवं व्यापक रूप से उपयोग के लिए संभावनाएं बनाई जा सकें।

इसके उपयोग पर उन्होंने आगे कहा, "निःसंदेह इसका उपयोग टॉप-ऑर्गेनिक बेस्ड कॉस्मेटिक्स में ही होगा। वहीं हममें से अधिकांश लोग जो सामान्य कॉस्मेटिक्स इस्तेमाल करते हैं, उनमें इसका सिंथेटिक विकल्प ही होगा।"

इससे पहले जुलाई के आरंभ में एनआईओटी के निदेशक जीए रामदास ने बेंगलुरु स्थित कॉस्मोस बायोटेक एलएलपी के साथ इसके तकनीकी हस्तांतरण का अनुबंध किया है। 

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