समलैंगिकों को अब समानता का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया, जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध था।
दीपांशु मिश्र/शेफाली त्रिपाठी
लखनऊ। सर्वोच्य न्यायालय ने वयस्कों के बीच समलैगिंक संबंधों को मंजूरी दे दी है। सर्वोच्य न्यायालय के फैसले में धारा 377 के उस हिस्से को हटा दिया गया है, जिसके तहत दो वयस्क के बीच हुए समलैगिंक संबंध को अपराध माना जाता था।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने एकमत से 158 वर्ष पुरानी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के सेक्शन 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया, जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध था। अदालत ने कहा कि यह प्रावधान संविधान में द्वारा दिए गए समता (बराबरी) के अधिकार का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर सुनवाई की।
भारत सरकार के द्वारा सर्वोच्य न्यायालय को दिए गए एक आंकड़ो के अनुसार भारत में समलैंगिको की संख्या लगभग 25 लाख हैं। धारा 377 को पहली बार कोर्ट में 1994 में चुनौती दी गई थी। 24 वर्ष और कई अपीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने अंतिम फ़ैसला दिया है।
Celebrations in Lucknow after Supreme Court legalised homosexuality. #Section377 pic.twitter.com/RZc51sM9Rl
— ANI UP (@ANINewsUP) September 6, 2018
सुप्रीम कोर्ट को धारा-377 के ख़िलाफ़ 30 से ज़्यादा याचिकाएँ मिली। याचिका दायर करने वालों में सबसे पुराना नाम नाज़ फाउंडेशन का है, जिसने 2001 में भी धारा-377 को आपराधिक श्रेणी से हटाए जाने की मांग की थी।
नाज़ फाउन्डेशन के अध्यक्ष आरिफ नाज़ ने बताया, "हम अपने अधिकारों के लिए वर्ष 2001 से लड़ रहे हैं। कोर्ट ने सरकार को निर्देशित करते हुए कहा है कि इस समुदाय को भी वह सारे अधिकार मिलने चाहिए जो बाकी के समुदाय को मिलते रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि चाहे कितनी भी छोटा समुदाय हो सभी को उनका हक मिलना चाहिए। जस्टिस इंदु मलहोत्रा ने अपने कमेंट में कहा कि अब समय आ गया है कि हम एलजीबीटी समुदाय से अब तक अपने द्वारा किये गए चीजों के लिए माफ़ी मांगे।"
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था। आईपीसी की धारा 377 के मुताबिक, जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इस अपराध के लिए उसे 10 वर्ष की सज़ा या आजीवन कारावास का प्रावधान रखा गया था। इसमें जुर्माने का भी प्रावधान था और इसे ग़ैर ज़मानती अपराध की श्रेणी में रखा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यौन आकर्षण प्राकृतिक होता है और इस प्रवृत्ति से इंकार नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा कि सेक्शन 377 को अपराध घोषित करने का अर्थ ये होगा कि कहीं न कहीं हम उस समुदाय की भावना का सम्मान नहीं कर रहे हैं। देश में सबको समानता का अधिकार मिला हुआ है। ऐसे में ये समलैंगिकों समुदाय के इस बात में दम था कि उन्हें सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता था।
क्या बोले न्यायाधीश-
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि जो भी जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। समलैंगिक लोगों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। संवैधानिक पीठ ने माना कि समलैंगिकता अपराध नहीं है और इसे लेकर लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी। आत्म अभिव्यक्ति से इनकार करना मौत को आमंत्रित करना है। व्यक्तित्व को बदला नहीं जा सकता। यह खुद को परिभाषित करता है, यह व्यक्तित्व का गौरवशाली रूप है। शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या है। वास्तव में इसका मतलब था कि जो मायने रखता है वो महत्वपूर्ण गुण और मौलिक विशेषताएं हैं न कि किसी व्यक्ति को क्या कहा जाता है। नाम व्यक्ति की पहचान का एक सुविधाजनक तरीका हो सकता है लेकिन उसके गुण ही उसकी पहचान है।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि आज का फ़ैसला इस समुदाय को उनका हक देने के लिए एक छोटा सा कदम है। एलजीबीटी समुदाय के निजी जीवन में झांकने का अधिकार किसी को नहीं है।
जस्टिस इंदु मल्होत्रा में कहा कि इस समुदाय के साथ पहले जो भेदभाव हुए हैं उसके लिए किसी को माफ़ नहीं किया जाएगा।
जस्टिस नरीमन ने कहा ये कोई मानसिक बीमारी नहीं है। केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को ठीक से समझाए ताकि एलजीबीटी समुदाय को कलंकित न समझा जाए।
''अगर हम समाज की बात करें तो आज कल के समाज में पहले की अपेक्षा काफी बदलाव आया है। आज का समाज कम से कम बात को सुनना और समझना चाहता है, लेकिन जब मैंने इस चीज की शुरुआत की थी तब ऐसी कोई भी चीज नहीं थी लोगो में ऐसी सोच भी नहीं थी। धीरे-धीरे लोगों की सोच में बदलाव आएगा और अभी कुछ हम लोगों के पक्ष में एक समय आएगा जब सभी हमारे साथ होंगें।" आरिफ नाज़ ने बताया।
समलैंगिक है क्या
समलैंगिकता का अर्थ किसी व्यक्ति का समान लिंग के लोगों के प्रति यौन और रोमांसपूर्वक रूप से आकर्षित होना है। वे पुरुष, जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें 'पुरुष समलिंगी' या 'गे' और जो महिला किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित होती है उसे भी 'गे' कहा जा सकता है लेकिन उसे आमतौर पर 'महिला समलिंगी' या 'लैस्बियन' कहा जाता है। जो लोग महिला और पुरुष दोनो के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें 'उभयलिंगी' कहा जाता है। कुल मिलाकर समलैंगिक, उभयलैंगिक और लिंगपरिवर्तित लोगो को मिलाकर (एलजीबीटी) समुदाय बनता है।