COP26: विश्व के नेताओं ने जंगलों की कटाई रोकने का संकल्प किया, इधर तमिलनाडु वन विभाग ने महत्वाकांक्षी योजना तैयार की

ग्लासगो में चल रहे COP26 में सौ से अधिक देशों ने 2030 तक वनों की कटाई पर पूर्ण पाबंदी और दुनिया भर में महत्वपूर्ण वन क्षेत्रों को संरक्षित करने का संकल्प लिया है। हालांकि भारत ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। लेकिन, तमिलनाडु के वन विभाग ने वन क्षेत्र को 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 34 प्रतिशत करने, सौ से ज्यादा विभिन्न देशी प्रजाति के पौधों को बहाल करने और अगले दस सालों तक, हर साल 33 करोड़ पेड़ लगाने की एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है। पर्यावरण और वन, तमिलनाडु, की प्रधान सचिव सुप्रिया साहू ने इस योजना को लेकर गांव कनेक्शन से बातचीत की।

Update: 2021-11-12 10:35 GMT

तस्वीर में मुदुमलाई के  जंगलों में हिरणों का झुंड दिखाई दे रहा है। सभी फोटो: इकबाल मोहम्मद, संस्थापक, लाइट एंड लाइफ एकेडमी, लवडेल, नीलगिरी।

कोयंबटूर, तमिलनाडु। स्काटलैंड के शहर ग्लासगो में चल रहे 2021 के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, COP26 का आज 12 नवंबर को समापन हो जाएगा। दुनिया के तमाम देश इसके परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। लेकिन तमिलनाडु का वन विभाग इस दिशा में काम करने के लिए पहले से ही तैयार है।

तमिलनाडु सरकार और उसके वन विभाग ने हाल ही में, अपने समृद्ध वन भंडार, वनस्पतियों और जीवों को सुरक्षित और संरक्षित करने की योजना बनाई है।

इस योजना के अंतर्गत, तमिलनाडु और वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने चेन्नई, कोयंबटूर, मदुरै और रामनाथपुरम में चार केंद्र स्थापित करने का निर्णय लिया है। साथ ही, कोयंबटूर/मुदुमलाई, तिरुनलवेली और तिरुचिरापल्ली में तीन अत्याधुनिक बचाव, उपचार और पुनर्वास केंद्रों की स्थापना भी की जाएगी। इस योजना को लेकर सरकारी आदेश 9 नवंबर और 29 अक्टूबर को जारी कर दिए गए थे।

कलहट्टी जलप्रपात के रास्ते में हरे भरे जंगल।

पर्यावरण और वन, तमिलनाडु, की प्रधान सचिव सुप्रिया साहू ने इस योजना को लेकर गांव कनेक्शन से बातचीत की। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा लागू किए जाने वाली योजना के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि ये महत्वपूर्ण कदम थे। जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, COP26, अन्य बातों के अलावा, वनों, उसकी वनस्पतियों और जीवों के विनाश को कम करने के लिए विचार-विमर्श कर रहा था। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन को कम करने और बढ़ते वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

वन्यजीव अपराध, वन विभाग की मुख्य चिंताओं में से एक है, जिसने पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से अस्थिर कर दिया है। प्रमुख सचिव कहती हैं, "संगठित अवैध वन्यजीव गतिविधियों से भारी खतरा है। इसका जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है। तमिलनाडु और वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो इसका मुकाबला करेगा।"

दूसरी तरफ, बचाव, उपचार और पुनर्वास केंद्र, जंगल और उसमें रहने वाले जानवरों के स्वास्थ्य की देखभाल करेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये संस्थान वन प्रबंधन और संरक्षण के मुद्दों को देखने के नजरिए में बदलाव लेकर आएंगे।

तमिलनाडु में 15 वन्यजीव अभ्यारण्य, 15 पक्षी अभ्यारण्य, 5 बाघ अभ्यारण्य, 4 हाथी अभ्यारण्य, 5 राष्ट्रीय उद्यान और 3 जीवमंडल भंडार(बायोस्फीयर रिजर्व) हैं।

कैद से संरक्षण तक

राज्य के वन विभाग ने पिछले कुछ महीनों में अप्रत्याशित घटनाएं देखी है जिसके बाद वनों के संरक्षण प्रयासों को बढ़ाने और एक ठोस व सुनियोजित रणनीति बनाए जाने की जरुरत महसूस की गई।

अगस्त 2021 की शुरुआत में, तमिलनाडु के वन अधिकारी, वन्यजीव उत्साही और स्थानीय निवासी एक जंगली हाथी रिवाल्डो, के ठीक होने का इंतजार कर रहे थे। जंगली हाथी रिवालडो को लगी चोटों का तीन महीने से इलाज किया जा रहा था। ठीक होने के बाद उसे नीलगिरी के मुदुमलाई वन रिजर्व में छोड़ दिया गया। तमिलनाडु वन विभाग के अधिकारी इस बात से उत्साहित हैं कि रिवाल्डो फिर से जंगल में लौट गया है। उसे कुछ समय से रिहायशी इलाकों में नहीं देखा गया है।


हाल ही में 15 अक्टुबर को, 21 दिनों की लुका-छिपी के बाद वन विभाग के कर्मचारियों ने T23 को ट्रैक किया और उसे पकड़ कर शांत कराया था। T23 एक 13 साल का घायल बाघ है। ऐसा माना जाता है कि उसने नीलगिरी में चार लोगों को मार डाला था।

फिलहाल T23 को लगभग 100 किलोमीटर दूर कर्नाटक के कूर्गल्ली में चामुंडी पशु बचाव और पुनर्वास केंद्र में रखा गया है। घायल बाघ की चोटें अब धीरे-धीरे ठीक हो रही हैं। पूरी तरह से ठीक होने के बाद T23 को भी वापस जंगल भेजने की योजना बनाई जा रही है।

साहू ने कहा, "रिवाइल्डिंग एक स्थायी संरक्षण प्रयास है जबकि जलवायु परिवर्तन स्थिरता(सस्टेनेबेलिटी) के बारे में है।" रिवाल्डो को फिर से जंगल भेजने और T23 को पकड़ कर शांत करने जैसी सिर्फ एक दो घटनाएं नहीं हैं। प्रमुख सचिव कहती हैं, "अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। यहां जानवर घायल हो जाते हैं, अनाथ हो जाते हैं या फिर अपने झुंड से अलग हो जाते हैं।"

वह आगे कहती हैं, "अब तक वन विभाग के पास एकमात्र विकल्प, ऐसे जानवरों को एक शिविर में लाना था। फिर उन्हें जीवन भर यहीं रहना होता था। हम जानवरों को ताउम्र कैसे रख सकते हैं? यह जानवरों और उनके संरक्षण दोनों के हिसाब से ठीक नहीं है।"

उनके अनुसार, तमिलनाडु सरकार काफी सोच समझकर अपने दृष्टिकोण में बदलाव लेकर आई है।

संरक्षण नीति में वनस्पतियों को भी शामिल किया गया है। साहु समझाते हुए कहती हैं, "इनवेसिव वनस्पति ने जंगल के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया है और शायद पहली बार, सरकार एक 'इनवेसिव पॉलिसी' की योजना बना रही है। जहां जंगलों को डिजिटल रूप से मैप किया जाएगा। उन हिस्सों पर खास ध्यान दिया जाएगा जहां इस तरह की वनस्पति बड़े पैमाने पर है। विशेषज्ञ इसके लिए उठाए जाने वाले कदमों औऱ जमीनी स्तर पर रणनीतियों को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधनों आदि का निर्धारण करेंगे "

साहू बताती हैं कि इस योजना का उद्देश्य जंगल को भीतर से मजबूत करना, अधिक देशी प्रजातियां लगाना और जंगलों के अंदर सूख चुके जल निकायों को पुनर्जीवित करना है।

उन्होंने कहा, "हम मूक दर्शक नहीं बन सकते। समय भाग रहा है। हमने इन मुद्दों के बारे में मुख्यमंत्री को एक प्रजेंटेशन दी है। इसे लेकर एक स्पष्ट सहमति थी कि वनों और उनके निवासियों के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डालने वाले प्रत्येक मुद्दे के समाधान के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।"

जलवायु परिवर्तन, वन और वन्य जीवन

हाल ही में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन की चर्चाओं में वनों को प्रमुखता से शामिल किया गया है। नेशनल ज्योग्राफिक पर एक रिपोर्ट आई जिसका शीर्षक था- COP26 में वनों की कटाई को लेकर किया गया वैश्विक संकल्प क्या वनों को बचा पाएगा?

वाशिंगटन डीसी, यूएसए के एक वैश्विक शोध गैर-लाभकारी संगठन वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (WRI) ने 2018 में प्रकाशित एक लेख में लिखा था कि दुनिया के जंगल हर साल वायुमंडल से लगभग 20 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन को हटाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिक वनों को उगाने और दूसरों को पुनर्जीवित करने से कुछ और उत्सर्जन में कमी आएगी।

साहू ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा, "जलवायु परिवर्तन जंगलों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है और वे भीतर से खराब हो रहे हैं।" वह आगे कहती हैं, "वनों में वनस्पतियों की गैर-देशी प्रजातियों के फैलने से कई प्राकृतिक संसाधन जैसे देशी पौधे गायब हो गए हैं। ये इनवेसिव प्रजाति किसी भी तरह की जैव विविधता को बनाए रखने में सहायक नहीं है। साथ ही स्वदेशी पौधों को भी खत्म कर रहे हैं। जल स्रोत सूख रहे हैं और यही कारण है कि अक्सर जानवर जंगलों से भटक जाते हैं। वे रिहायशी इलाकों में पहंच जाते हैं और पशु-मानव संघर्ष का कारण बनते हैं।"


साहु को स्थानीय समुदायों की भागीदारी पर काफी भरोसा है। वह कहती हैं, "अगर यह केवल एक सरकारी एजेंडा है, तो यह अल्पकालिक होगा। यदि आप दुनिया में कोई भी सफल पर्यावरणीय पहल करते हैं, तो इसके पीछे समुदाय का होना जरुरी है।"

सुप्रिया साहू नीलगिरी में एक जाना-पहचाना नाम बन गईं हैं। उन्होंने नीलगिरी के कलेक्टर के रूप में, प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने के लिए ऑपरेशन ब्लू माउंटेन शुरू किया। वह कहती हैं, "एक बार जब स्थानीय समुदाय इस बात को जान गए कि प्लास्टिक पर्यावरण के लिए हानिकारक क्यों है? तो यह अभियान सफल हो गया।"

2003 में, नीलगिरी के लोगों ने 42 हजार 182 पेड़ लगाकर और एक नया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। साहू उस समय कलेक्टर थीं। वह मुस्कराते हुए कहती हैं, उस समय तक 'जलवायु परिवर्तन' कोई बड़ा मुद्दा नहीं था।"

बचाव, उपचार और पुनर्वास केंद्रों के बारे में साहू कहती हैं कि आगे बढ़ने से पहले विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की जाएगी। "हम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों की तलाश करेंगे। ऐसे केंद्रों के मॉडल का अध्ययन करेंगे और वन्यजीव संस्थानों, मंत्रालय और अन्य विशेषज्ञों तक पहुंचेंगे। उसके बाद ही हम आगे बढ़ेंगे।"

साहू ने समझाते हुए बताया, "जंगल के पास एक ऐसी जगह ढूंढना सबसे पहला काम था जहां से जानवरों को फिर से जंगलों में भेजा जाना आसान हो। केंद्र में सारी सुविधांए होंगी और सभी तरह के छोटे-बड़े जानवरों और पक्षियों के लिए एक ही जगह पर उपचार और पुनर्वास स्थान होंगे। यह एक ऐसी जगह होगी जहां पशु चिकित्सक, वैज्ञानिक और वन्यजीव विशेषज्ञ काम कर सकते हैं और आराम से रह सकते हैं।"

वह आगे कहती हैं, "प्रशिक्षण कर्मचारियों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य यहीं होगा। SOPs (मानक संचालन प्रक्रियाएं) लागू की जाएंगी। सब कुछ महत्वपूर्ण वैज्ञानिक वन्यजीव सिद्धांतों और तकनीकों पर आधारित होगा।"

साहू ने कहा, "रिवाल्डो और T 23 के साथ अपने अनुभव से हमने बहुत कुछ सीखा है। हमें इस बारे में बहुत सारी जानकारी मिली है। हम जान गए है कि क्या करने की जरुरत है। इन केंद्रों को पेशेवर और व्यवस्थित तरीके से चलाया जाएगा। "

प्रौद्योगिकी संरक्षण में मदद कर सकती है

COP26 पर वापस आते हुए, साहू ने बताया कि कैसे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का एक लक्ष्य संकल्प तैयार करना, विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करना और संरक्षण व पर्यावरण सुरक्षा में मदद के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाना था।

वह समझाती हैं, "हमने अपने जिन केंद्रों के बारे में बात कर रहे हैं, वे सभी तकनीक से जुड़कर ही काम करेंगे। रिवाल्डो को फिर से जंगल में भेजने से पहले हमने उसपर जीपीएस-सक्षम रेडियो कॉलर लगाया था। इसे जर्मनी में बनाया गया था। ड्रोन की वजह से वन अधिकारी T23 को ट्रैक कर पाए थे।" वह आगे कहती हैं, "मुझे यकीन है कि हम ऐसे डिवाईस यहां भी बना सकते हैं। कम से कम ये केंद्र अध्ययन और अनुसंधान व विकास को सुविधाजनक बनाने में तो मदद कर पाएंगे। हमें खुद की ऐसी तकनीक तैयार करने की जरुरत है, जो हमारे पर्यावरण के लिए काम कर सके "

वन विभाग के विशेष लक्ष्य हैं। साहू ने कहा, "हम वन क्षेत्र को 24 प्रतिशत से बढ़ाकर 34 प्रतिशत करने की बात कर रहे हैं। जंगलों में कम से कम सौ विभिन्न देशी प्रजातियों को बहाल करने की योजना है, जो वनस्पति की इनवेसिव प्रजातियों के कारण लगभग नष्ट हो गई हैं। अगले दस वर्षों के लिए हर साल तैंतीस करोड़ पेड़ लगाने की योजना है। हमारी सभी योजनाओं को स्थानीय लोगों की भागीदारी के साथ जोड़ा जाएगा ।"

वह आखिर में कहती हैं, "जब राष्ट्र प्रमुख घोषणा करते हैं और उद्देश्य व लक्ष्य निर्धारित करते हैं, तो इस बारे में हर तरफ बात की जाएगी। लेकिन, जब ये उद्देश्य और लक्ष्य लोगों का अभियान बन जाते हैं, तभी वास्तविक सफलता मिल पाने की उम्मीद होती है।"

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अनुवाद: संघप्रिया मौर्या

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