जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव : ‘नूरजहां’ दुबलाई, रूठ रहा खरमोर

Update: 2018-01-28 15:12 GMT
फोटो इंटरनेट से साभार।

मध्यप्रदेश में आम की खास किस्म "नूरजहां" और संकटग्रस्त प्रजाति के प्रवासी पक्षी खरमोर (लेसर फ्लोरिकन) पर जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ रहा है। आबो-हवा की असामान्य करवटों से फलों के राजा की भारी-भरकम किस्म दुबला रही है और सूबे में डेरा डालने वाले मेहमान परिंदे की तादाद घटती जा रही है। अफगान मूल की मानी जाने वाली आम प्रजाति "नूरजहां" के पेड़ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाये जाते हैं।

इंदौर से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा में इस प्रजाति की खेती के विशेषज्ञ इशाक मंसूरी ने पीटीआई से कहा, "पिछले एक दशक के दौरान मॉनसूनी बारिश में देरी, अल्पवर्षा, अतिवर्षा और अन्य मौसमी उतार-चढ़ावों के कारण नूरजहां के पेड़ों पर देरी से बौर (आम के फूल) आ रहे हैं, साथ ही, इसके फलों का वजन भी घटता जा रहा है।" उन्होंने बताया कि किसी जमाने में नूरजहां के फलों का वजन 3.5 से 3.75 किलोग्राम के बीच होता था। लेकिन अब यह घटकर 2.5 किलोग्राम के आस-पास रह गया है।

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मंसूरी ने बताया कि सामान्यत: नूरजहां के पेड़ों पर जनवरी से बौर आना शुरू होता है और इसके फल जून तक पककर तैयार हो जाते हैं। लेकिन इस बार इसके पेड़ों पर बौर नहीं के बराबर है। उन्होंने कहा, "पिछले मॉनसून सत्र में हमारे इलाके में बारिश कम हुई थी जिससे भूमिगत जल स्तर गिर गया है। हालांकि, मुझे उम्मीद है कि फरवरी में नूरजहां के पेड़ों पर बौर बढ़ेगा।"

नूरजहां के फलों की सीमित संख्या के कारण शौकीन लोग तब ही इनकी "बुकिंग" कर लेते हैं, जब ये डाल पर लटककर पक रहे होते हैं। मांग बढ़ने पर इसके केवल एक फल की कीमत 500 रुपए तक भी पहुंच जाती है। इस बीच, विशेषज्ञ तसदीक करते हैं कि प्रवासी पक्षी खरमोर की मध्यप्रदेश में आमद पर भी जलवायु परिवर्तन का विपरीत असर पड़ रहा है। यह परिंदा दुनियाभर में पक्षियों की 50 सबसे ज्यादा संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल है।

मध्यप्रदेश के वन विभाग और मुंबई की संस्था बॉम्बे नैचुरल हस्ट्रिी सोसायटी के साथ मिलकर खरमोर पर अध्ययन कर रहे अजय गड़ीकर ने कहा, "यह देखा गया है कि मॉनसून सत्र में बारिश में देरी या अपेक्षाकृत कम वर्षा होने पर खरमोर मध्यप्रदेश में डेरा न डालते हुए प्रजनन के लिये गुजरात और राजस्थान जैसे पड़ोसी सूबों का रुख कर लेता है।"

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उन्होंने बताया कि खरमोर आमतौर पर जुलाई के पहले पखवाड़े में मध्यप्रदेश पहुंचते हैं और प्रजनन के लिये तीन-चार महीनों तक रुकते हैं। लेकिन पिछली बार ये मेहमान परिंदे अगस्त के आखिरी पखवाड़े में सूबे में नजर आये थे। गड़ीकर ने बताया कि खरमोर उन पक्षियों के समूह में शामिल हैं जो खासकर प्रजनन के लिए पर्याप्त घास वाली हरित भूमि (ग्रास लैंड) को चुनते हैं।

वर्ष 2017 के मॉनसून सत्र के शुरुआती दौर में बारिश की कमी से मध्यप्रदेश में प्रवासी पक्षी की पसंदीदा बसाहट में जुलाई के पहले पखवाड़े में पर्याप्त घास नहीं उग पायी थी। इस कारण वे न केवल डेढ़ महीने की देरी से मध्यप्रदेश पहुंचे थे, बल्कि इनकी संख्या भी घट गयी थी। पक्षी विशेषज्ञ के मुताबिक वर्ष 2017 के मॉनसून सत्र में सूबे की तीन अलग-अलग बसाहटों में महज आठ खरमोर दिखायी दिये थे, जबकि वर्ष 2016 में ऐसे करीब 20 मेहमान परिंदे दिखाई दिए थे। उन्होंने कहा, "यह बात चिंताजनक है कि जलवायु परिवर्तन के कारण खरमोर पर वजूद का संकट बढ़ रहा है।"

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जलवायु बदलने का असर पेड़ों पर, 2-4 फीट घट गई लंबाई

जलवायु परिवर्तन का असर अब पेड़-पौधों की लंबाई पर दिखने लगा है। पेड़-पौधों की लंबाई 2-4 फीट तक घट गई है। यह खुलासा जबलपुर स्थित उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान के वैज्ञानिकों के शोध में हुआ है। लंबाई घटने का कारण तापमान में लगातार बढ़ोतरी है। बढ़े तापमान से पेड़ों की पत्तियां झुलस रही हैं । इसकी वजह से पनपते पेड़-पौधे सही ढंग से प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पा रहे हैं और पर्याप्त खुराक नहीं मिलने से उनकी ऊंचाई घट गई है। फलदार पेड़ों से उत्पादन भी कम हो रहा है। वैज्ञानिकों ने यह शोध आम, नीम, बबूल, खमेर, यूकेलिप्टस, कदम, मौलश्री समेत सभी किस्म के पेड़-पौधों पर किया है।

इस बारे में वायुमंडल में डॉ. अविनाश जैन, वैज्ञानिक, उष्ण कटिबंधीय वन अनुसंधान केंद्र, जबलपुर बताते हैं "कॉर्बन डाइ ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस गैसों की मात्रा लगातार बढ़ने से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। इस वजह से तापमान ज्यादा है, जिससे पेड़ों के विकास और उत्पादन पर प्रभाव पड़ रहा है। कॉर्बन डाइ ऑक्साइड ज्यादा मात्रा में अवशोषित करने वाले पेड़ों पर रिसर्च कर रहे हैं।"

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अविनाश आगे बताते हैं "वायुमंडल में मौजूद कॉर्बन डाइ ऑक्साइड गैस को कुछ पेड़ तेजी से अवशोषित करते हैं। इनमें खमेर, यूकेलिप्टस, कदम, मौलश्री, नेडिया, सेमल, करंज, कनकचंपा जैसे पेड़ शामिल हैं, जो 15-20 वर्ष बाद ही तैयार हो जाते हैं। जलवायु परिवर्तन व बढ़ते तापमान को कम करने में यही पेड़ सहायक होंगे।"

जलवायु परिवर्तन है क्या?

पृथ्वी का औसत तापमान अभी लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है, हालाँकि भूगर्भीय प्रमाण बताते हैं कि पूर्व में ये बहुत अधिक या कम रहा है। लेकिन अब पिछले कुछ वर्षों में जलवायु में अचानक तेजी से बदलाव हो रहा है। मौसम की अपनी खासियत होती है, लेकिन अब इसका ढंग बदल रहा है। गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी। पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। यही है जलवायु परिवर्तन।

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संकट में खेती

जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, अधिक देशों में जहां कृषि उत्पादन वर्षा पर निर्भर है। तापमान में वृद्धि रोगों को जन्म देती है जो मनुष्य और कृषि दोनों के लिए विनाशकारी होती है। अनुमान है कि 2100 तक फसलों की उत्पादकता 10-40 प्रतिशत कम हो जाएगी। सूखा और बाढ़ में वृद्धि से फसलों के उत्पादन में अनिश्चितता आएगी। बारिश से पीड़ित क्षेत्रों की फसलों को अधिक नुकसान होगा क्योंकि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी।

(आईएनएस से साभार)

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