स्वतंत्रता के लिए दी थी जान, लेकिन फिर भी शहीद नहीं

Update: 2019-08-14 13:01 GMT

लखीमपुर (उत्तर प्रदेश)। जब पूरा देश 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है, कुछ ऐसे भी शहीद हुए जो देश के लिए फांसी पर चढ़ गए, लेकिन आज वो शहीद कहीं गुमनाम हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के मितौली तहसील के भीखमपुर के अमर शहीद राजनारायण मिश्र ने साल 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, जिसके लिए उन्हें नौ दिसंबर 1944 फांसी दे दी गई थी।

अमर शहीद राजनारायण मिश्रा के पौत्र संजय मिश्रा बताते हैं, "साल 1942 के दौरान लखीमपुर के जिलेदार से हथियार लूटने के दौरान गोली चल जाने से जिलेदार की मौत हो गई थी, जिसके बाद वह गांव से फरार हो गए थे। अंग्रेजी सरकार ने इस घटना के बाद उनके परिवार को तमाम यातनाएं दी। घर गिराकर हल चलवा दिया। घर में रखे सारे सामानों को भी लूट लिया।"


शहीद राजनारायण मिश्रा को 9 दिसम्बर 1944 सुबह चार बजे फांसी दी गई थी। शहीद राजनारायण मिश्रा के बारे में लोग बताते हैं, "जब उनको फांसी दी जा रही थी तो उनसे उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा गया। उस उन्होंने दो इच्छाएं जाहिर की थी एक वह खुद अपनी फांसी का फंदा अपने गले में लगाएंगे, दूसरी इच्छा यह थी कि उनके पार्थिव शरीर को उनके क्रांतिकारियों साथियों को सौंपा जाए।

संजय मिश्र कहते हैं, "प्रशासन ने उनके गांव में उनकी प्रतिमा नहीं लगवाई थी। मैंने 2014 में सूचना का अधिकार 2005 के तहत देश मे शहीदों के आंकड़ें व नाम के बारे में जानकारी मांगी गई तो गृह मंत्रालय ने बड़ा ही चौंकाने वाला जवाब दिया। गृह मंत्रालय का उस आरटीआई में जवाब आया कि इस देश में न तो किसी व्यक्ति को शहीद घोषित करता है और न ही ऐसे कोई शहीदों के आंकड़े एकत्रित करता है। गृह मंत्रालय के इस जवाब से नाराज होकर संजय मिश्र ने पीएम मोदी को भी पत्र लिखकर अपनी नाराजगी जताई थी।

शहीद राज नारायण मिश्रा के नाम से उनके पैतृक गांव के पास से गुजरने वाले राष्ट्रीय राज्य मार्ग को उनके नाम से घोषित किये जाने को लेकर के खीरी लोकसभा से सांसद अजय मिश्र टेनी ने भी लोकसभा सत्र के दौरान भी कई बार मुद्दा उठाया था। उन्होंने अपने द्वारा उठाये गए प्रश्न में यह भी कहा कि शहीद राज नारायण के नाम से उनके गाँव के गेट का लोकार्पण किया जाये। शहीद राज नारायण मिश्र की प्रतिमा तक प्रशासन ने नहीं लगवाई तो उनके पौत्र संजय ने ग्रामीणों से चन्दा एकत्रित करके उनकी प्रतिमा लगवाई। भीषमपुर गाँव में करीब चार दर्जन से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं। सबसे दुःखद बात ये है की वो अपने ही गाँव में ही गुमनाम हो गए हैं।

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