वकीलों की हत्या से नाराज यूपी बार काउंसिल का अदालतों में कार्य बहिष्कार का ऐलान

Update: 2019-07-26 13:45 GMT

उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं के साथ हो रही घटनाओं से नाराज उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने 29 जुलाई को उत्तर प्रदेश की सभी अदालतों में कार्य बहिष्कार और हड़ताल करने का ऐलान किया है।

यूपी बार काउंसिल ने अधिवक्ताओं के साथ हो रही घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है और साथ ही सूबे की योगी सरकार पर अधिवक्ताओं से जुड़ी घटनाओं को गंभीरता से न लेने का भी आरोप लगाया है।

अधिवक्ताओं की उपेक्षा कर रही है योगी सरकार

बार काउंसिल ऑफ यूपी के अध्यक्ष हरीशंकर सिंह ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की हालत सही नहीं है। वकीलों की हत्याएंं हो रही हैं। कई बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बार काउंसिल की तरफ से पत्र लिखकर मिलने के लिए समय मांगा गया लेकिन उन्होंने मिलने के लिए समय नहीं दिया। सरकार के पास सभी संगठनों से मिलने के लिए समय है पर अधिवक्ताओं से मिलने के लिए समय नहीं है। अधिवक्ताओं के बिना व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया नहीं जा सकता, ये बात सरकार को समझनी चाहिए।"

अधिवक्ताओं के लिए सरकार का खजाना खाली

हरी शंकर सिंह का कहना है कि जिन वकीलों की हत्याएं हुई हैं उनके परिजनों को मुआवजा और सुरक्षा देना तो दूर की बात है, प्रशासन उनकी बात तक नहीं सुन रहा है। यूपी बार काउंसिल की अध्यक्षा दरवेश सिंह की हत्या के बाद सरकार ने उनके परिवार की न कोई मदद की और न ही उनके परिवार को सुरक्षा दी गई। प्रतापगढ़ में अधिवक्ता ओम मिश्रा की हत्या के बाद से उनका परिवार भी परेशान है। उनके परिजनों ने कई बार जिलाधिकारी से मिलने का प्रयास किया लेकिन वो नहीं मिले।

अध्यक्ष ने कहा कि सोनभद्र में इतना बड़ा नरसंहार हुआ, मुख्यमंत्री ने पीड़ितों से मुलाकात की और साथ ही मुआवजा राशि की भी घोषणा की। ये मानवीय दृष्टिकोण से अच्छी पहल है, लेकिन जब वकीलों की बात आती है तो सरकारी खजाना खाली ही रहता है। सरकार के पास मदद करने के लिए न तो धन है न सांत्वना देने के लिए शब्द और न ही मिलने के लिए समय है।

अधिवक्ताओं को जारी किया अपील पत्र




बार काउंसिल ऑफ यूपी ने प्रदेश के सभी अधिवक्ताओं को 29 जुलाई को कार्य बहिष्कार करने और हड़ताल पर रहने के लिए पत्र जारी किया हैं। पत्र में कहा गया है कि प्रदेश में अधिवक्ताओं के लिए न तो आधारभूत संरचनायें हैं और न ही अधिवक्ताओं के लिए बैठने की व्यवस्था है। बिना तैयारी के ग्राम न्यायालय और सांध्य न्यायालय की व्यवस्था शुरू की जा रही है जो हास्यास्पद है। पत्र में आगे कहा गया है कि नए अधिवक्ताओं और पुराने अधिवक्ताओं के लिए अनुदान की योजना सरकार द्वारा सिर्फ जुबानी तौर पर की गयी है। इस पर अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। साथ ही पत्र में अधिवक्ताओं की सुरक्षा, अधिवक्ता कल्याण समिति का पिछले 2 वर्षों से लंबित 80 करोड़ रुपए  के भुगतान की मांग बार कौंसिल काउंसिल द्वारा सरकार से की गयी है। साथ ही 29 जुलाई को पूरे प्रदेश में विरोध दिवस मनाने की अपील अधिवक्ताओं से की गयी है।

लखनऊ के अपराध मामलों के अधिवक्ता आनंद प्रताप सिंह का कहना है कि अधिवक्ताओं के लिए सुविधा तो दूर की बात है जो चीजें बहुत आवश्यक है वो भी मुहैया नहीं है। गर्मी के मौसम में 40-45 डिग्री की गर्मी में वकील टीन शेड के नीचे बैठने को मजबूर हैं. बहुत से टीन शेड में पंखे तक की व्यवस्था नहीं है। कम से कम सरकार अधिवक्ताओं के बैठने के लिए बरामदे का निर्माण तो करा ही सकती है। बार काउंसिल द्वारा लिए गए विरोध प्रदर्शन के निर्णय का स्वागत है।

कचहरी में भी अधिवक्ता सुरक्षित नहीं है

बार काउंसिल ऑफ यूपी के पूर्व अध्यक्ष हाईकोर्ट अधिवक्ता अनिल प्रताप सिंह का कहना है कि आज के समय अधिवक्ता सबसे ज्यादा कचहरी में असुरक्षित हैं। अधिवक्ता आम जनमानस को न्याय दिलाने का महत्वपूर्ण माध्यम हैं पर उसकी खुद की हालत अच्छी नहीं है। किसी अधिवक्ता की हत्या या अन्य कारणों से आकस्मिक मौत हो जाती है तो बार काउंसिल के पास उसे देने के लिए फंड की दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में सरकार का दायित्व बनता है कि वो पीड़ित अधिवक्ता परिवार की मदद करे।

वो आगे कहते हैं क‍ि प्रदेश में अधिवक्ताओं की हालत खराब है कार्यस्थल पर मूलभूत जरूरतों का अभाव हैं, बारिश के मौसम में अधिकांश अधिवक्ता कितना भी खुद को बचाएं पर भीग जाते हैं, क्योकि टीन शेड बारिश का पानी रोक नहीं पाता है। कचहरी, अदालतों में  वादियों और वकीलों के लिए पीने का साफ पानी तक उपलब्ध नहीं है। शौचालय की स्थिति  इतनी खराब है क‍ि पूछिए मत, खासकर महिला वकीलों/वादियों को हमेशा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इनकी व्यवस्था के लिए बार कौंसिल संघर्ष करती है तो सरकार को संज्ञान लेना चाहिए।

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