ऐसा अस्पताल जो महीने में बस दो बार खुलता है, कभी-कभार आते हैं डॉक्टर

बदहाल हालत में है सीतापुर के जलालनगर का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, पीएचसी पर नहीं बैठते हैं डाक्टर, नहीं हैं जरूरत की सुविधाएं, इस अस्पताल में स्वस्थ आदमी भी आकर हो जाएगा बीमार

Update: 2019-04-06 06:50 GMT

सीतापुर। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर लाखों रुपये हर महीने खर्च के बाद भी यदि अंदर घुसते ही बड़ी-बड़ी घास और हर तरफ गंदगी नजर आएं तो वहां कौन मरीज जाएगा। बीमार लोगों को इलाज करने वाले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र यहां खुद बीमार हैं। यूपी के जनपद सीतापुर के ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का बहुत हाल बुरा है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर न तो डाक्टर बैठते हैं और न मरीजों को दवाइयां मिलती हैं।

जनपद के ब्लॉक महोली के जलालनगर स्वास्थ्य केंद्र को देखने मात्र से पता लग जाता है कि यहां की साफ सफाई हुए महीनों गुजर गए होंगे। अस्पताल में फैली गंदगी इस बात की गवाही है कि अब तक स्वच्छता अभियान की रोशनी यहां तक नहीं पहुंची है। दूर दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सेवा बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपये प्रतिवर्ष पानी की तरह बहाया जा रहा है, लेकिन विभागीय लापरवाही के कारण बहुत से स्वास्थ्य केंद्र संसाधन विहीन हो गये हैं, तो कई केंद्रों पर ताला लटक गया है।

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अस्पताल परिसर मेंं ग्रामीण पाथते हैं उपले-कंडे।

इसी गाँव की रहने वाली यासीन (35वर्ष) का कहना है, " महीने में मुश्किल से एक या दो बार यहां डॉक्टर आते हैं। अस्पताल में इतनी गंदगी रहती है कि यहां कोई आना पसंद नहीं करता है। इलाज के नाम पर एक-दो गोली थमा दी जाती है। छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए हमें आठ किलोमीटर दूर विसवां सीएचसी पर जाना पड़ता है।"

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पड़ोस के गांव मनिकपुर से इलाज कराने आए अर्जुन ने बताया, " बदहाल भवन, टूटा हैंडपंप, खंडहर में तब्दील आवास और जंग लगे बेड व अन्य उपकरणों के कारण न तो यहां कोई स्वास्थ्यकर्मी रहता है और न तो कोई मरीज ही आता है। केंद्र तक जाने का रास्ता भी ठीक नहीं है। गांव की गर्भवती महिलाओं, किशोरियों व जन्म से ले कर 5 वर्ष के बच्चों को टीके लगवाने तथा अन्य स्वास्थ्य सेवा के लिए इधर उधर भटकना पड़ रहा है।"

पूरी तरह से बदहाल हो चुका है अस्पताल का भवन।

समयानुसार देखरेख न होने की वजह से इसकी हालत बदतर होती जा रही है। कर्मचारियों के रात्रि निवास न करने से अस्पताल आवारा पशुओं का चारागाह बन गया है। तैनात चिकित्सक भी नियमित नहीं आते जिससे अस्पताल आए मरीजों को बैरंग लौटना पड़ता है। बिजली के अभाव में लगे उपकरण शो पीस बनकर रह गए हैं।

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अस्पताल परिसर में घूमते रहते  हैं जानवर।

देखरेख के अभाव में पूरे परिसर में गंदगी का अंबार लगा हुआ है। परिसर में आवार जानवर घूमते रहते हैं। कोई जिम्मेदार व्यक्ति न रहने के कारण ग्रामीणों ने अस्पताल में कब्जा कर रखा है। कुछ लोग अस्पताल कैंपस में उपले पाथते हैं तो कुछ लोग खाट-चारपाई डालकर यहीं निवास करते हैं।  करीब दो दर्जन गांवों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी इस अस्पताल पर है, लेकिन अस्पताल खुद बीमार है, ऐसे में लोगों को इलाज  मिलना कहां संभव है। 

अतिरिक्त सहयोग मोहित शुक्ला

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