'यहां ठंड से आदमी मरा जा रहा है, आपको गायों की पड़ी है'

Update: 2020-01-01 13:07 GMT

रणविजय सिंह/द‍िति बाजपेई

सर्दी की एक सुबह थी। खेतों पर सफेद रंग के कुहासे की चादर बिछी हुई थी। पारा लुढ़ककर यही कोई 4 और 6 डिग्री के बीच झूल रहा था। ऐसे हाल में गांव के बाहर खुले में बनी एक गोशाला में करीब 75 से ज्‍यादा गोवंश ठंड से कांप रहे थे। कमजोर से दिखने वाले यह गोवंश रात भर गिरी ओस से भीगे हुए थे और ठंडी की वजह से सिकुड़कर खड़े थे।

यह नजारा उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर काकोरी विकास खंड के दसदोई गांव में बने अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल का था। पिछले दिनों जहां यह खबर आई थी कि अयोध्‍या में गायों को ठंड से बचाने के लिए कोट पहनाए जाएंगे, वहीं दसदोई गांव की इस गोशाला में पशुओं को ठंड से बचाने के लिए कोई खास इंतजाम नजर नहीं आया। कोट तो दूर की बात है, इनके शरीर पर जूट की बोरी से बने ओढ़ावन तक नहीं थे।

ऐसा नहीं कि यह एकलौती गोशाला है जहां गोवंश को ठंड की मार झेलनी पड़ रही हो, ज्‍यादातर गोशालाओं का हाल एक सा ही नजर आता है। पशुपालन विभाग के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में 4954 अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं। इसमें 4 लाख 20 हजार 883 पशुओं को रखा गया है। हालांकि वक्‍त-वक्‍त पर ऐसी खबरें आती रहती हैं कि इन आश्रय स्‍थलों में रखे गए गोवंश का हाल बहुत खराब है। लेकिन जब यह खबर आई कि आयोध्‍या की गायों को कोट पहनाया जाएगा तो गांव कनेक्‍शन की टीम ने कुछ गोशालाओं का दौरा किया और वहां के हालात को देखा।


इसी कड़ी में जब गांव कनेक्‍शन की टीम दसदोई गांव में बनी गोशाला पहुंची तो वहां ठंड से बचाव के कुछ खास इंतजाम नजर नहीं आए। हां, अलाव तो जल रहे थे लेकिन वो भी पर्याप्‍त मात्रा में नहीं थे। इस बदइंतजामी का कारण जानने के लिए जब इस गोशाला की देखरेख करने वाले रमेश से बात की तो वो बिदक गए। उनका कहना था, ''यहां ठंड में आदमी मरा जा रहा है और आपको गायों की पड़ी है।''

जब उन्‍हें समझाया गया कि हम उनके खिलाफ कुछ नहीं कह रहे तो वो बात करने के लिए राजी हुए। रमेश बताते हैं, ''गोशाला में पूरे प्रबंध है, चारा दिया जा रहा है, अलाव भी जलाए गए हैं।'' जब उनसे पूछा गया कि गायों के शरीर पर ओढ़ावन क्‍यों नहीं है तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। हां, वो इस सवाल के बाद यह जरूर बुदबुदाने लगे कि पैसा आता नहीं है तो व्‍यवस्‍था कहां से की जाए।

इस समस्‍या पर उत्‍तर प्रदेश के पशुपालन निदेशालय के अपर निदेशक 'गोधन' डॉ. एके सिंह कहते हैं, ''हम गोवंश आश्रय स्थल की सुविधाओं को बेहतर करने में लगे हैं। पशुओं को ठंड से बचाने के लिए अलाव भी जलवाए जा रहे हैं। हां कुछ जगह कमियां हैं और हम उनको सही करने का प्रयास कर रहे हैं।''

गोशालाओं की इस बदइंतजामी को समझने से पहले यह समझना जरूरी है कि उत्‍तर प्रदेश की सरकार को अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल बनाने की जरूरत क्‍यों पड़ी। दरअसल 2017 में जब यूपी में योगी आदित्‍यनाथ की सरकार बनी तो सरकार ने गोवंश की देखभाल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की। इसके तहत प्रदेश भर में बहुतायत में अवैध बूचड़खाने बंद करावाए गए। सरकार की इस कार्यवाही के बाद गोवंश की जान तो बची, लेकिन बड़ी संख्‍या में छुट्टा पशु गांव-गांव में नजर आने लगे। किसान इन छुट्टा पशुओं से इस कदर परेशान हो गए कि रात-रात भर खेतों में पहरेदारी करते ताकि उनकी फसल को यह जानवर चर न जाएं।

दसदोई गांव की गोशाल।

इन छुट्टा जानवरों की संख्‍या को लेकर पशुपालन विभाग ने एक सर्वे भी कराया था, जिसके मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 7 लाख 303 छुट्टा जानवर थे। प्रदेश में छुट्टा जानवर की बढ़ी इस संख्‍या और किसानों की परेशानी के मद्देनजर यूपी सरकार ने जनवरी 2019 में छुट्टा जानवरों को रखने के लिए अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल बनाने का निर्णय लिया। इसके बाद से ही प्रदेश भर में 4954 अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल बनाए गए हैं, जहां इन छुट्टा पशुओं को रखा जा रहा है।

दसदोई की गोशाला को देखने के बाद गांव कनेक्‍शन की टीम आगे बढ़ी और करीब 5 किमी दूर स्‍थ‍ित भटऊ जमालपुर गांव पहुंची। इस गांव में भी अस्‍थाई गोवंश आश्रय स्थल बनाया गया है। इस आश्रय स्‍थल पर हमारी मुलाकात इसका संचालन करने वाले प्रधान पति संजय सैनी से हुई। संजय की गोशाला को लेकर अपनी शिकायतें हैं। वो कहते हैं, ''हम दिन रात सेवा कर रहे हैं। हमारी गोशाला में 319 पशु हैं, लेकिन सरकार की ओर से बजट ही नहीं मिल रहा। हम अपनी जेब से खर्च करने को मजबूर हैं।'' संजय खीझकर कहते हैं, ''अच्‍छा खासा प्रधानी कर रहा था, सरकार ने चरवाहा बना दिया है।''

भटऊ जमालपुर की गोशाला में भी पशुओं को ठंड से बचाने के वैसे प्रबंध नहीं दिखे जैसा सरकार की ओर से जारी आदेश में कहा गया था। पशुओं को ठंडी हवा से बचाने का कुछ खास उपाय नहीं था। हां, इस गोशाला में चारे का प्रबंध सही था। संजय सैनी चारे के प्रबंध का गणित बताते हुए कहते हैं, ''सरकार एक पशु पर प्रति दिन 30 रुपए देती है। आप खुद ही सोच लीजिए कि 30 रुपए में कैसे गोवंश को खिला पाएंगे। इसमें भूसा भी लेना है, खरी भी लेना होता है। साथ ही ठंड में अलाव भी इस तीस रुपए में ही जलाना है। क्‍या इतना कुछ 30 रुपए में होना मुमकिन है?'' इस सवाल के साथ ही संजय खामोश हो जाते हैं, जैसे उन्‍होंने कई जवाब दे द‍िए हों।

लखनऊ के गौस लालपुर गांव की गोशाला। 

संजय की बात से यह बात निकलकर आती है कि गोशालाओं में पशुओं को ठंडी से बचा न पाने के पीछे बजट एक कारण है। लेकिन जब हम यूपी सरकार के द्वारा जारी बजट को देखते हैं तो लगता है यह बात भी बेमानी है। बात करें ग्रामीण क्षेत्रों में गोवंश के रख-रखाव और गोशाला निर्माण के लिए जारी बजट की तो उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिए 247.60 करोड़ रुपए जारी किए थे। वहीं शहरी क्षेत्रों में कान्‍हा गोशाला एवं बेसहारा पशु आश्रय योजना के लिए 200 करोड़ रुपए की व्‍यवस्‍था की गई थी।

वहीं बजट के जिलों के आधार पर बंटवारे को लेकर पशुपालन विभाग के विकास एवं प्रशासन निदेशक डॉ. चरण सिंह चौधरी ने गांव कनेक्‍शन से बताया था, "इस बजट में से प्रदेश के 68 जिलों को एक-एक करोड़ रुपया जबकि बुंदेलखंड के 7 जिलों को डेढ़ करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।" इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि सरकार की ओर से बजट के तौर पर काफी कुछ किया जा रहा है।

खैर इन जारी होते तमाम बजट के बाद भी गोशालाओं में पशुओं को ठंड से बचाने के लिए पर्याप्‍य इंतजाम नजर नहीं आते। इसकी वजह से पशुओं की सेहत भी खराब हो रही है। पशुओं की सेहत को लेकर काकोरी पशु चिकित्‍सालय में तैनात पशुधन प्रसार अध‍िकारी पंकज गुप्‍ता बताते हैं, ''गोशालाओं में रखे गए पशुओं में अभी टेंपरेचर लो की शिकायत ज्‍यादा आ रही है। अभी अलाव की जरूरत ज्‍यादा है। अलाव जलता रहे और इनको हरा चारा मिलता रहे तो यह कमजोर नहीं होंगे। अस्‍थाई शेड हैं और चारों तरफ से खुले हुए हैं तो इस वजह से दिक्‍कत ज्‍यादा आ रही है।''  

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