नए राष्ट्रपति का ऐलान हो गया है अब उनकी इस शाही सवारी के भविष्य का फैसला बाकी है

Update: 2017-07-20 20:56 GMT
जानिए राष्ट्रपति की शाही सवारी के बारे में (फोटो साभार: ट्विटर)

लखनऊ। भारत के 14वें राष्ट्रपति का चुनाव हो चुका है। रामनाथ कोविंद 25 जुलाई को शपथ लेंगे। राष्ट्रपति की बग्घी से लेकर उनकी शाही किचन भी नए राष्ट्रपति के इंतजार में है। इसी के साथ पिछले 13 साल से खड़ी राष्ट्रपति की शाही सवारी के भविष्य का भी निर्णय हो जाएगा। यह राष्ट्रपति की एक ऐसी सवारी है जहां न तो सड़कों से और न ही हवाई जहाज से पहुंचा जा सकता है, वहां इस ट्रेन का इस्तेमाल होता था।

हम बात कर रहे हैं राष्ट्रपति शाही सलून की। यह एक स्पेशल ट्रेन के दो स्पेशल कोच होते हैं।

ऐतिहासिक है दोनों कोच

इंडियन रेलवे का शाही सलून कोच संख्या 9000 और 9001 है। इसमें सुख-सुविधा और आराम का पूरा इंतजाम होता है। इन दोनों कोच में राष्ट्रपति के लिए ऑफिस और बेडरूम के साथ डाइनिंग रूम, विजिटर रूम और एक लाउंज भी है। इन दो कोच के साथ छह और कोच भी लगते हैं, जिसमें राष्ट्रपति के स्टाफ, उनके सुरक्षाकर्मी और रेलवे के अधिकारी यात्रा के दौरान साथ चलते हैं।

हालांकि पिछले 13 साल से इसकी शाही सवारी किसी राष्ट्रपति ने नहीं की। 2004 में आखिरी बार तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने इस सलून की यात्रा चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए भी की थी।

अब्दुल कलाम ने 2003 में भी बिहार के पटना से हरनौत तक लगभग एक घंटे की यात्रा (60 किमी) इस शाही सवारी के जरिए की थी।

हालांकि इससे भी ज्यादा आश्चर्य वाली बात ये है कि 2003 से पहले 26 साल तक यूं ही खड़ी रही थी।

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फिलहाल अनफिट है शाही सवारी

साल 1956 में इस सैलून का निर्माण सेंट्रल रेलवे के माटूंगा वर्कशॉप में किया गया था लेकिन काफी पुराना हो जाने की वजह से 2008 के बाद इन कोच को राष्ट्रपति के इस्तेमाल के लिए असुरक्षित घोषित कर दिया गया।

रेलवे के आधिकारिक बयान के अनुसार, ये पुराने दो कोच अब हाई स्पीड में चलने के लिए अनुकूल नहीं है। इनकी शेल्फ लाइफ भी पूरी हो चुकी है और राष्ट्रपति के इस्तेमाल के लिए यह अनफिट है। इस वजह से जल्द ही इन कोचों के म्यूजियम में बदलने की भी चर्चा थी।

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने इस साल जून में शाही सलून के लिए 8 करोड़ रुपए प्रस्तावित किए थे। इसे नए राष्ट्रपति की इजाजत मिलने के बाद अत्याधुनिक तरीके से तैयार किया जाएगा।

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अब्दुल कलाम ने 26 साल बाद किया था सलून का इस्तेमाल

30 मई 2003 एपीजे अब्दुल कलाम बिहार की राजधानी पटना से हरनौत तक लगभग एक घंटे की यात्रा (60 किमी) इस शाही सवारी के जरिए की थी। कलाम वहां रेल कोच मेंटिनेंस वर्कशॉप की स्थापना पर गए थे। कलाम की इस यात्रा से पहले करीब 26 साल तक यह ट्रेन यूं ही खड़ी थी। इससे पहले 1977 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने इस शाही राष्ट्रपति सलून की सवारी की थी। इसके बाद कलाम ने इस सलून की यात्रा चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए भी की थी।

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अभी यहां खड़ी है बोगी

वर्तमान समय में ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक यार्ड में रखी गई है। इसे आम लोगों और मीडिया की पहुंच से दूर सुरक्षित रखा गया है।

87 बार भारत के राष्ट्रपति इसकी सवारी कर चुके हैं

वर्ष 1956 से लेकर अब तक राष्ट्रपति के सैलून का 87 बार इस्तेमाल हुआ है। इन कोच से अब तक देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर उनके उत्तराधिकारी डॉ. एस राधाकृष्णन, डॉ. जाकिर हुसैन, वीवी गिरि और एन संजीव रेड्डी ने की। इसके 26 साल बाद इन कोच का इस्तेमाल पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। प्रतिभा पाटिल ने बाद में इससे सवारी की इच्छा जाहिर की थी लेकिन बाद में आइडिया ड्रॉप हो गया।

नए तरीके से कोच को तैयार किया जाएगा

अगर राष्ट्रपति की इजाजत मिलती है तो भारतीय रेलवे सलून को रेनोवेट करेगी। आठ करोड़ की प्रस्तावित रकम में जर्मन कोच का इस्तेमाल किया जाएगा। इस कोच की खिड़कियां और दरवाजे बुलेटप्रूफ होंगे। राष्ट्रपति की सुविधा के लिए नया टेलीफोन एक्सचेंज तैयार किया जाएगा, जिसमें जीपीएस, जीपीआरएस और सैटेलाइट कम्यूनिकेशन जैसी सभी अत्याधुनिक सुविधाएं मौजूद होंगी। राष्ट्रपति के मनोरंजन के लिए बड़ा एलसीडी टीवी और म्यूजिक सिस्टम भी लगाया जाएगा।

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