थारू समुदाय की ये तीन महिलाएं अनारक्षित सीट पर लड़ रहीं प्रधानी का चुनाव, जानिए क्या है इसकी वजह?

आपने अकसर आरक्षित महिला सीट पर ही महिलाओं को ग्राम प्रधान के चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर देखा होगा, लेकिन थारू समुदाय की ये तीन महिलाएं अनारक्षित सीट पर चुनाव लड़ रही हैं। हम आपको बताते हैं आख़िर क्या है वजह ? लखीमपुर खीरी से ग्राउंड रिपोर्ट ...

Update: 2021-04-09 09:25 GMT

पलिया (लखीमपुर खीरी)। सहवनिया राना ... अनीता राना ... निवादा राना

इन तीनों नाम की इस समय नेपाल से सटे तराई क्षेत्र के थारू समुदाय के 46 गाँव में खूब चर्चा है। इसकी वजह साफ हैं क्योंकि ये तीन महिला उम्मीदवार इस बार अनारक्षित सीट पर ग्राम प्रधान पद की उम्मीदवार हैं। ये प्रधानी का चुनाव जीतकर खुद अपनी-अपनी पंचायत में विकास के नये अध्याय लिखने का लोगों को भरोसा दिला रही हैं।

ये अपनी ग्राम पंचायतों में चौपाल लगाकर लोगों को बता रही हैं कि ये ग्राम प्रधान का चुनाव जीतने के बाद ग्राम पंचायत में जो भी काम करेंगी उसका निर्णय पंचायत के लोग लेंगे। इन तीनों उम्मीदवारों की पंचायत के लोग इन्हें चंदा इकट्ठा करके चुनाव लड़ा रहे हैं ताकि ये जागरूक महिलाएं पंचायत में विकास कर सकें।

ये हैं थारू समुदाय की तीन महिला प्रधान उम्मीदवार जो इस बार अनारक्षित सीट पर लड़ रही हैं पंचायत का चुनाव. फोटो : नीतू सिंह 

क्यों बनाईं गईं उम्मीदवार

इन महिलाओं को इनकी पंचायत ने ऐसे ही उम्मीदवार के तौर पर नहीं खड़ा किया है। इसके पीछे की कहानी ये है कि ये महिलाएं एक संगठन से जुड़कर लंबे समय से अपने समुदाय के लिए उनके हक़ और अधिकारों के लिए लोगों को जागरूक कर रही थीं। जरूरत पड़ने पर उनकी मदद कर रही थीं। इन्होंने अपनी पंचायत में एक भरोसा बनाया था। इसलिए इनके क्षेत्र के लोगों को इनसे काफी उम्मीदें हैं।

गांव कनेक्शन की टीम ने अप्रैल के पहले सप्ताह में थारू समुदाय के बीच जाकर इस समुदाय के बारे में जानने और समझने की कोशिश की। तीन अप्रैल को भरी दोपहरी में छप्पर की छाँव के नीचे पांच चारपाई पर सूरमा पंचायत के कुछ लोग बैठे विचार-विमर्श कर रहे थे।

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युवा चेहरे की दूरगामी सोच

उस बैठक से ये शब्द 24 वर्षीय सहवनिया राना ने कहा, "पंचायत में कौन-कौन से काम होंगे? ये आप लोग तय करेंगे। अगर हम जीत गये तो कहने को हम प्रधान होंगे, लेकिन पंचायत का हर काम आपकी मर्जी से होगा". सहवनिया इस बार अनारक्षित सीट पर अपनी पंचायत सूरमा में ग्राम प्रधान पद की उम्मीदवार हैं। आत्मविश्वास से भरी इस युवा प्रत्याशी को वहां बैठे सभी लोग अपनी पंचायत की सबसे होशियार और पढ़ी-लिखी लड़की मानते हैं। चार बहन दो भाईयों में सहवनिया चौथे नंबर की हैं। इन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की है, ये पिछले पांच वर्षों से एक संगठन से जुड़कर अपने समुदाय के लोगों को उनके हक़ और अधिकारों के लिए जागरूक कर रही हैं।

चार मजरों की सूरमा पंचायत यूपी के सबसे बड़े जिले लखीमपुर खीरी जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर दूर पलिया ब्लॉक में है। ये गांव चारो तरफ से जंगलों से घिरा हुआ है, इसके चार मजरे सिकलपुरा, गुबरौला, सारभूसी और भट्ठा एक दूसरे से पांच छह किलोमीटर की दूरी पर बसे हैं। यूपी में पंचायती राज चुनाव चार चरणों में होना है, इस जिले में दूसरे चरण में 19 अप्रैल को मतदान होंगे।

सहवनिया राना अपने समुदाय की महिलाओं से पूछ रही हैं कि जीतने के बाद सबसे पहला काम उनके लिए क्या किया जाए. फोटो : नीतू सिंह 

हिम्मत के साथ पैसा भी दिया

सहवनिया कहती हैं, "मैं इनके बीच पांच साल से काम कर रही हूँ। हमारे कॉलेज दूर है इसलिए लड़कियां ज्यादा पढ़ नहीं पाती, मैं स्नातक हूं यानि यहाँ के लिए सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की। सब मेरे ऊपर भरोसा करते हैं, इन्ही सब लोगों ने कहा कि जब आप हमारी मदद करती हो तो चुनाव लड़ जाओ', इसलिए खड़ी हो गयी हूँ।" सूरमा पंचायत के लोगों ने सहवनिया को न केवल चुनाव में खड़ा करने के लिए प्रेरित किया बल्कि सबने थोड़ा-थोड़ा चंदा भी दिया जिससे वो इस चुनाव का खर्च उठा सके।

पढ़ी-लिखी ग्राम प्रधान की है जरूरत

तीन पंचवर्षीय में ग्राम प्रधान रह चुके इस पंचायत के पूर्व प्रधान रामचंद्र (55 वर्ष) ने सहवनिया का हौसला बढ़ाते हुए कहा, "हम सबको पूरा विश्वास है कि ये जरुर जीतेगी। इसका जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हमारी पंचायत को एक पढ़ी-लिखी ग्राम प्रधान की जरूरत है। ये बहुत समय से काम कर रही है। सभी अधिकारी इसे जानते हैं। ये हमारे दर्द को समझती है इसलिए हम सब इसे चंदा देकर चुनाव लड़ा रहे हैं।"

इस पंचायत से लगभग 10 किलोमीटर दूर चार अप्रैल को जब हम सूड़ा ग्राम पंचायत पहुंचे तो वहां की प्रधान उम्मीदवार निवादा राना के दरवाजे भी गांव के कुछ लोग पेड़ की छाँव में चारपाई बिछाए बैठे थे। सूड़ा ग्राम पंचायत में 900 वोटर हैं, यहां केवल एक ही गांव की ग्राम पंचायत है।

पारंपरिक परिधान पहन निवादा राना अपनी पंचायत के पुरूषों से कर रहीं बातचीत. फोटो : नीतू सिंह 

निवादा को मिला सास, ननद और जेठानी का सहयोग

चालीस वर्षीय निवादा राना अपनी पारंपरिक पोशाक पहने थीं। निवादा राना बताने लगीं, "हमारे गांव की सास, ननद, जेठानी ने हमें चुनाव में खड़े होने के लिए बोला हैं। इनका बल पाकर हम भी खड़े हो गये, इनको हमसे बहुत उम्मीदें हैं। जब प्रधान पुरुष होता है तो महिलाओं की बात को तवज्जों नहीं मिलती। महिला होकर हम इन महिलाओं की बात को समझेंगे और इनकी उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।"

दूसरे गांव के लोग भी कर रहे सहयोग

यहाँ बैठे एक दूसरे गांव बिरिया से आए 50 वर्षीय बाबूराम ने बताया, "हम दूसरे गांव के रहने वाले हैं। पर हम फिर भी इन्हें सपोर्ट करने के लिए आए हैं। इस गांव में मेरा वोट नहीं है पर मैं गांव के लोगों को बता रहा हूं कि ये एक जागरूक महिला है। अगर चुनाव में जीत गईं तो गांव की तमाम समस्याएं निपट जाएंगी।"

ये तीनो महिला प्रत्याशी एक गैर सरकारी संगठन राष्ट्रीय अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी मंच से जुड़कर बीते कई वर्षों से अपने क्षेत्र के लोगों को जल, जंगल और जमीन के प्रति जागरूक कर रही हैं। इस संगठन में 20 गांव के लोग जुड़े हैं। इसमें चार समितियां बनी हैं, जिसमें महिला और पुरुष दोनों सदस्य हैं।

चोट याद दिलाती है कि कुछ करना है

निवादा अपने माथे पर बने एक निशान को दिखाते हुए बताती हैं, "जनवरी 2012 में जंगल से लकड़ी लेने गये थे तभी एक पुलिस अधिकारी ने मेरे सर पर डंडे से मार दिया। माथे का निशान अभी तक नहीं गया। जब-जब इसे देखती हूं लगता है अपने लोगों के लिए कुछ करना है। 2012 में इस चोट की इलाज के लिए हम पहली बार जिला अस्पताल गये थे। हमारे गाँव की ऐसी दर्जनों महिलाएं और लड़कियाँ होंगी, जिन्होंने इस जंगल के बहार की दुनिया नहीं देखी है।"

पूर्व प्रधान और इस चुनाव की उम्मीदवार अनीता राना ने बताया कि यहाँ के लोगों को एम्बुलेंस की नहीं मिलती सुविधा. फोटो : नीतू सिंह 

पारंपरिक प्रधान पतियों से अलग हैं प्रताप सिंह

गांव कनेक्शन की टीम इसी गाँव में ही थी तभी ग्राम पंचायत भूड़ा गाँव की पूर्व प्रधान और इस बार की प्रधान उम्मीदवार 45 वर्षीय अनीता राना अपने पति के साथ पहुंच गईं। अनीता के पति प्रताप सिंह (48 वर्ष) बोले, "आप ये मत सोचियेगा कि हम इन्हें गाड़ी से बिठाकर लाए हैं तो काम हम करते हैं। ये जंगल क्षेत्र है, यहां आवागमन के पर्याप्त साधन नहीं है इसलिए गाड़ी से इन्हें एक जगह से दूसरे जगह छोड़ना हमारी जिम्मेदारी समझिए। पंचायत में क्या काम होना है इसका फैसला या तो ये लेती हैं या फिर गांव के लोग।" यहां बैठे लोगों ने प्रताप की बातों का समर्थन किया।

अनीता राना चारपाई पर बैठते हुए बोलीं, "थारुओं की एक परंपरा बहुत खराब है हमारे यहां अगर किसी के साथ रेप या छेड़छाड़ हो जाए तो लोग जल्दी थाने नहीं जाते। गांव में ही पंचायत लगती है ग्राम प्रधान दोनों पक्षों को बैठाकर उनकी समस्या सुनते और आरोपी पर कुछ जुर्माना लगाकर मामला रफा-दफा कर देते हैं। ये हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगता,"

लोग भी चाहते हैं महिलाएं आने आएं

महिला सीट नहीं है इसके बाद भी आप खड़ी हैं, क्षेत्र के लोग आप सबको सपोर्ट भी कर रहे हैं. एक महिला होने के नाते किसी तरह की कोई मुश्किल तो नहीं आ रही, इस सवाल के जवाब में अनीता बोलीं, "दिक्कत इसलिए भी नहीं क्योंकि यहां लोग चाहते हैं कि महिला चुनाव में आगे आएं। एक वजह यह भी है जब हमारे घर के आदमी जंगल में लकड़ी लेने जाएँ या जानवर चराने कई बार वन विभाग के अधिकारी उन्हें पकड़कर जेल में डाल देते हैं, मारपीट करते हैं जुर्माना लगाते हैं, जबकि महिलाओं से थोड़ा वो लोग कम भिड़ते हैं।"

लोग लालच में हमें वोट नहीं देंगे

सहवनिया से जब हमने पूछा कि इस चुनाव में तुम्हारा कितना पैसा खर्च हो जाएगा? इस पर सहवनिया हंसते हुए बोली, "कागज बनवाने में और इधर-उधर आने-जाने में जितना खर्च हो जाए बस उतना ही, बहुत ज्यादा 20,000-25,000 रुपए इससे ज्यादा खर्चा नहीं होगा। लोग लालच में हमें वोट नहीं देंगे, ये वन विभाग और पुलिस से प्रताड़ित लोग हैं इन्हें अपनी समस्याओं का समाधान चाहिए।"

रिपोर्टिंग सहयोग : मोहित शुक्ला कम्युनिटी जर्नलिस्ट, सीतापुर 

सुनिए इन तीन महिला उम्मीदवारों को कि ये अनारक्षित सीट पर क्यों लड़ रही हैं चुनाव :


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