‘प्रधान भी सांसद-विधायक की तरह जनप्रतिनिधि , 3500 रुपए के मासिक भत्ते को कई गुना बढ़ाया जाए’

Update: 2018-04-20 13:23 GMT
गांव में खुली बैठक। फोटो- प्रतीकात्मक, पंचायती राज

पूरे देश में इन दिनों ग्राम स्वराज अभियान चल रहा है। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं के बारे में बताया जा रहा है, गांवों में विकास की जिम्मेदारी प्रधान या सरपंच पर है, लेकिन इसके बदले उसे क्या मिलता है, ये भी बड़ा सवाल है..

लखनऊ। देश के ज्यादातर सरकारी कर्मचारी सांतवें वेतन आयोग का लाभ उठा रहे हैं। गेहूं और गन्ने की कटाई से फसली मौकों पर गांवों में मजदूरों की औसत दिहाड़ी 300-400 रुपए है। मनरेगा में भी 175 रुपए से लेकर कई राज्यों में 300 रुपए तक रोज मिलते हैं। लेकिन यूपी में प्रधान का भत्ता महीने के 3500 रुपए है। प्रधानों का कहना है इतने पैसे में आने-जाने वालों के चाय और पेट्रोल का खर्च नहीं निकलता।

“जो प्रधान ईमानदारी से काम करेगा और घर से मजबूत (अमीर) नहीं होगा, उसके बच्चे भीख मांगने की स्थिति में आ जाएंगे। जो नेता और लाखों रुपए तनख्वाह लेने वाले आईएएस देश का सिस्टम चला रहे हैं, गांवों के लिए दर्जनों तरह की लाखों रुपए की योजनाएं बनाते हैं, क्या उन्हें नहीं पता इतने कम पैसे में प्रधान कैसे काम करता होगा।’ उत्तर प्रदेश में एक ग्राम पंचायत के प्रधान नाम न छापने की शर्त पर अपनी ये परेशानी बताई।

देश में प्रधान पंचायती राज व्यवस्था की रीढ़ हैं। गांव के विकास का जिम्मा उनके ऊपर है। मनरेगा और स्वच्छ भारत समेत करीब 27 तरह की सरकारी योजनाओं को लागू कराने की जिम्मेदारी भी प्रधानों पर होती है। 14वां वित्त लागू होने के बाद गांवों के बजट में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। लेकिन इन सारे कामों के बदले प्रधान को सिर्फ 3500 रुपए का मासिक भत्ता मिलता है। कई प्रधान इतने कम भत्ते को ही भ्रष्टाचार की जड़ बताते हैं, प्रधानों का कहना है की फायदा न हो न सही, पर घर से तो न खर्च हो।

मनरेगा भी ग्राम प्रधान के काम का अहम हिस्सा। फोटो- गांव कनेक्शन

चौदहवें वित्त लागू होने के बाद गांवों के बजट में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। लेकिन इन सारे कामों के बदले प्रधान को सिर्फ 3500 रुपए का मासिक भत्ता मिलता है। कई प्रधान इतने कम भत्ते को ही भ्रष्टाचार की जड़ बताते हैं, प्रधानों का कहना है की फायदा न हो न सही, पर घर से तो न खर्च हो।

यूपी के बलिया जिले के रसतर ग्राम पंचायत की प्रधान स्मृति सिंह बताती हैं, प्रधानी फुल टाइम काम है। महीने में 4-5 बार ब्लॉक, कई बार जिला पंचायती राज और मुख्य विकास अधिकारी के पास जाना पड़ता है। अब आप ही बताइए, इन 3500 रुपए में क्या होता होगा। प्रधान ऐसा जनप्रतिनिधि है तो 24 घंटे जनता के बीच रहता है, लेकिन सुविधाएं न के बराबर हैं। एमपी-एमएलए जितना नहीं, खर्च लायक तो भत्ता मिलना चाहिए।”

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प्रधानी कैसे चलाते हैं, ये पूछने पर लखनऊ जिले के एक प्रधान भड़कते हुए बताते हैं, “ प्रधान पैसे खा गया, प्रधान ने कमीशन लिया, प्रधान ने काम नहीं किया, ऐसे ही ख़बरें अख़बारों में छपती हैं, लेकिन सारे प्रधान बेईमान नहीं हैं। सबका कमीशन तय है, पंचायत के निर्माण कार्यों में ब्लाक का सीधा कमीशन 8 प्रतिशत है, जिसमे 3 प्रतिशत खंड विकास अधिकारी को, ढाई प्रतिशत इंजीनियर और जेई को व ढाई प्रतिशत सहायक विकास अधिकारी पंचायत को जाता है। सात से दस प्रतिशत प्रधान का कमीशन रहता है, जिसमे प्रधान और पंचायत सचिव का आधा-आधा हिस्सा होता है, निर्माण कार्य का लगभग बीस प्रतिशत कमीशन में और फिर ठेकदार को भी बीस से पचीस प्रतिशत की बचत होनी चाहिए इस तरह से निर्माण कार्य का फंड आधा कमिशन में और आधा निर्माण में खर्च होता है।’

वो आगे बताते हैं, “मनरेगा के पक्के कामों में बीडीओ बिना कमीशन लिए काम नहीं करता है, पंचायत सचिव  एजेंट की तरह कई जगह काम करता है। कमीशन नहीं दिया तो काम पास ही नहीं होगा, हो गया तो बिल नहीं आएगा, ये काजल की कोठरी है। डाटा ऑनलाइन होने के बाद से काफी हद तक लगाम लगी है, लेकिन अभी और काम करने की जरुरत है।’

‘प्रधानों को 5 साल तक 50 हजार रुपए का वेतन मिले’

अखिल भारतीय मताधिकारी संघ के अध्यक्ष और सामाजिक कार्यकर्ता और अन्ना हजारे के सहयोगी पंकज नाथ कल्कि अक्सर ग्रामीण मुद्दों को लेकर आंदोलन करते हैं। पंचायतों में भ्रष्टाचार और प्रधानों की सुविधाओं के मुद्दे पर सवाल पर कल्कि कहते हैं, “विधायक-सांसदों को वेतन, भत्ते, पेंशन, टेलीफोन तक हर खर्च मिलता है। ये योजनाएं बनाते हैं, उनका क्रियान्वयन कराते हैं प्रधान ऐसे में 3500 रुपए का मानदेय देकर सरकार खुद उन्हें भ्रष्टाचार के लिए प्रेरित कर रही है। दूसरे ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। प्रधानों को पेंशन न सही, लेकिन उन्हें सम्मानित मासिक भत्ता ( वेतन) 50 हजार रुपए मिलना ही चाहिए।’

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देश में कुल 6 लाख 58 हजार 221 गांव हैं, जिनके विकास के लिए भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय व पंचायती राज मंत्रालय हैं। इसके साथ ही कई दूसरे विभाग भी यहां काम करते हैं। गांवों में खर्च की जाने ली बड़ी धनराशि केंद्र सरकार देती है, जिसे केंद्रीय अंश बाकी राज्य सरकारें देती हैं

देश में कुल 6 लाख 58 हजार 221 गांव हैं, जिनके विकास के लिए भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय व पंचायती राज मंत्रालय हैं। इसके साथ ही कई दूसरे विभाग भी यहां काम करते हैं। गांवों में खर्च की जाने ली बड़ी धनराशि केंद्र सरकार देती है, जिसे केंद्रीय अंश बाकी राज्य सरकारें देती हैं। इसके अलावा सांसद विधायक के कोटे से काम होता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की छह योजनाओं के लिए केंद्र सरकार ने देश में  2017-18 में 105477.88 करोड़ रुपए का योगदान किया है। एक औसत जनसंख्या (10 हजार ) वाली ग्राम पंचायत को सलाना हर तरह के मद को मिलाकर 15-20 लाख रुएप का बजट आता है। लेकिन इसके अनुपात में प्रधान का भत्ता न के बराबर है, यही प्रधानों की नाराजगी की वजह भी।

ग्राम पंचायत की बैठक का खर्च सत्तर रुपए

लखनऊ जनपद के बख्शी का तालाब तहसील के प्रधान संघ अध्यक्ष व ग्राम पंचायत अल्दमपुर के प्रधान अतुल शुक्ल बताते हैं, “ करीब 27 विभागों से सम्बंधित योजनाएं गांवों के विकास के लिए हैं। शौचालय लेकर सफाई तक जिम्मेदारी प्रधान की, लेकिन तहसील तक के अधिकारी प्रधान की नहीं सुनते। यहां हर जगह पैसे का खेल चलता है। खुली बैठक के खर्च के लिए 300 रुपए और ग्राम की बैठक के लिए 70 रुपए मिलते हैं, अब 300 में क्या होता है। सही कहा जाए तो हमें मनरेगा के मजदूरों के बराबर भी पैसा नहीं मिलता है। काम कराने में कुछ ऊंच नींच हुई तो अधिकारी कार्रवाई करते हैं, और गांव में कुछ न हुआ तो लोग दुश्मनी मान लेते हैं।’

खुली बैठक के खर्च के लिए 300 रुपए और ग्राम की बैठक के लिए 70 रुपए मिलते हैं, अब 300 में क्या होता है। सही कहा जाए तो हमें मनरेगा के मजदूरों के बराबर भी पैसा नहीं मिलता है। 
अतुल शुक्ला, प्रधान संघ अध्यक्ष, बीकेटी तहसील, लखनऊ

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प्रधान संघ के राष्ट्रीय प्रभारी अधिवक्ता सीएल दीक्षित कहते हैं, “प्रधानों की न तो तहसीलदार, एसडीएम सुनते हैं न ही ब्लाक और थानों पर उनकी सुनवाई होती है। इस सरकार में कमीशनबाजी पहले से दुगुनी हो गयी है। बिना पैसों के कोई अधिकारी या कर्मचारी प्रधान का काम नहीं करना चाहता। इतना होने के बाद या तो प्रधान दलाल बन जाये या फिर जनता के पैसे लुटवाए। कोई स्वाभिमानी प्रधान ये नहीं करेगा।’

उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली संस्था 'तहरीर' के अध्यक्ष संजय शर्मा का कहना है “प्रधानों का मानदेय बढ़ जाने से पंचायतों में भ्रष्टाचार रुक जायेगा ये नहीं कहा जा सकता, क्योंकि बड़े पदों और अच्छा मानदेय पाने वाले लोग भी भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं। ऐसे में सिर्फ 3500 रुपए मासिक मानदेय पर ग्राम प्रधानों से ईमानदारी की उम्मीद करना बेमानी है।”

उत्तर प्रदेश में पूर्व सपा सरकार में प्रधानों ने कई बार धरना प्रदर्शन किया। तत्कालीन सरकार ने प्रधानों का वेतन और  भत्ता बढ़ाने की बात की थी, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया।

उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में प्रधानों का यही हाल है, इतने कम मानदेय में गरीबी रेखा से नीचे आने वाले भी जीवन यापन नहीं कर सकते। यह प्रधानों के साथ अन्याय है, आखिर हो वो भी जनप्रतिनिधि हैं।
अरुण द्विवेदी, नेता बसपा

इस मुद्दे पर बसपा नेता अरुण द्विवेदी का कहना है, “ उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में प्रधानों का यही हाल है, इतने कम मानदेय में गरीबी रेखा से नीचे आने वाले भी जीवन यापन नहीं कर सकते। यह प्रधानों के साथ अन्याय है, आखिर हो वो भी जनप्रतिनिधि हैं।”

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