इंटरव्यू : जैविक खेती को बढ़ावा देने का मलतब एक और बाजार खड़ा करना तो नहीं
वर्ष 2017 में भारत को जैविक कृषि विश्व कुंभ की मेजबानी का मौका मिला। उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में दुनियाभर में जैविक खेती करने वाले किसान, इस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां, दिग्गज जानकार और विशेषज्ञ जुड़े।
वहां बड़ी-बड़ी कंपनियां भी थीं, चमकदार दुकानें भी, जैविक का बढ़ती मांग और कारोबार की भी लगातार रिपोर्ट आती हैं, लेकिन इन सबके बीच एक आम किसान कहां है, इससे किसानों को कितना फायदा होगा ये जानने की कोशिश की। इस बारे मे हमने बात की है कृषि नीति विशेषज्ञ देविन्दर शर्मा से । उनका कहना है, जब जैविक खेती का चलन बढ़ा था तो उसका मुख्य लक्ष्य था कि जो छोटा मंझला किसान है जो केमिकल, फर्टिलाइजर से पर्यावरण को बचाना चाहता है उसके लिए एक मूवमेंट चलाने की कोशिश की गई थी और आज हम उसका एक दौर देख रहे हैं जो इतने बड़े स्तर पर पहुंच गया है।
लेकिन अगर ये सिर्फ जैविक उत्पाद बेंचने वालों तक सीमित रहे तो ये जो जैविक खेती को बढ़ावा देने की कोशिश थी वो नहीं हो पाएगी। तो जैसे पहले एक बाजार किसानों का शोषण कर रहा है वैसे ही एक दूसरा बाजार खड़ा हो जाएगा। देखिए वीडियो
जैविक उत्पाद इतने मंहगें हैं कि हर कोई उसका इस्तेमाल नहीं कर सकता और इसमें वही परंपरागत चीजें हैं जो किसान जानता है लेकिन फिर भी ये जो बीच की गैप है वो चिंताजनक है। तो ये समझना है कि क्या हम एक नया जैविक बाजार खड़ा कर रहे हैं या जैविक मूवमेंट को बढ़पावा दे रहे हैं जो कि पर्यावरण, सेहत व हमारी जैव विविधता को बचाता है। उदाहरण के लिए अगर हम बात करें एक नींबू की जो जैविक है तो उसकी कीमत 2 यो 45 रुपए न होकर 25 से 30 रुपए होगी। ये जो महंगाई है क्या इसका फायदा किसान उठा पा रहा है।
विदेश में हमारी जैविक खेती को लेकर स्थिति
हमारी कोशिश ये बाजार खड़ा करना नहीं था बल्कि रहन सहन को बदलना था। जैसे अगर आप शहर में रह रहे हैं तो अपने किचन गार्डन में जैविक तरीके से थोड़ी बहुत खेती करके उसका इस्तेमाल खुद कर सकते हैं। इस तरह अगर आप बाजार में जाएंगें तो रेड़ी वाला भी आपको जैविक उत्पाद देगा। इससे सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि हमारा किसान कैमिकल के चक्कर से बाहर निकल पाएगा और दूसरी चीज दुनिया में जो ग्लोबल वार्मिंग है इसमें लगभग 41 प्रतिशत योगदान खेती किसानी के उन फसलों का हैं जिनसे हम जीवनयापन करते हैं। तो इसका समाधान यही है कि हम कैमिकल को छोड़कर नॉनकैमिकल चीजो का इस्तेमाल अपनी खेती में करें। लेकिन अगर इन सबके बीच एक और बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा तो इसमें हम जिस किसान की बात करते हैं उसका कोई फायदा नहीं होगा। (देखिए वीडियो )
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आज अगर केले को देखें हम तो जो इक्वोडोर में यानि लातिन अमेरिका से जो केला निर्यात हेाता है वो अगर एक डॉलर का बिकता है तो किसान को 0.02 डॉलर का हिस्सा मिलता है तो इस वैल्यू चेंज के अंदर किसान को कोई फायदा नहीं मिलता। अब जब ये जैविक की वैल्यू चैन बनेगी तो उसमें भी मेरा मानना है कि किसान वहीं का वहीं रहेगा। उसके ऊपर सिर्फ इंडस्ट्री खड़ी होगी, व्यापार होगा। मैं चाहता हूं कि किसान खुद अपना ऐसा बाजार बनाएं। उसे बाजार के पास न जाना पड़े बल्कि बाजार किसान के पास आए। अभी तो प्राइवेट बाजार ने कब्जा कर लिया है किसानों के बनाए हुए बाजार गायब हैं अगर हैं भी तो दो चार।
ऐसे में क्या करे किसान
जब तक सरकार की नीतियां व बाजार की नीतियां ऐसी नहीं बनेगी कि किसान बीच में रहे तभी फायदा होगा। इसके लिए या तो किसान को कॉपेरटिव तरीके से जोड़ने की जरूरत है या दूसरा रास्ता है कि किसान को डायरेक्ट मिनियम सपोर्ट मिल सके। एक इनकम कमीशन का गठन हो जो ये तय करें कि इस किसान को हर महीने इतना रुपया मिलेगा जैसे हर क्षेत्र में होता है। बाकी अन्य अमीर देशों में ऐसा ही है अबर वहां किसान जीवित है तो इसलिए की सरकार उन्हें मदद कर रही है। अमेरिका में किसान के ऊपर जितनी सब्सिडी है अगर वो हटा दी जाए तो अमेरिका की कृषि व्यवस्था बैठ जाएगी और ये सच है सिर्फ किसान ही नहीं हमारे देश की इंडस्ट्री सब्सिडी पर टिकी है।