लखनऊ। पांच सौ साल से अधिक समय से हर वर्ष मंचित हो रही है, यूपी के लखनऊ की ऐशबाग रामलीला समय के साथ दर्शकों को और भी पसंद आ रही है, लेकिन सभी स्टेज पर कलाकारों की अदाकारी को देखते होंगे लेकिन पर्दे के पीछे कलाकार कितनी मेहनत करते हैं, कैसे वो हर एक किरदार को सजीव बना देते हैं।
ऐशबाग रामलीला समिति में ज्यादातर कलाकार कलकत्ता और दिल्ली से आकर रामायण के हर किरदार में जान डाल देते हैं। कलकत्ता के भास्कर बोस के निर्देशन में पिछले 12 वर्षों से रामायण का मंचन हो रहा है, भास्कर ख़ुद भी हनुमान, दशरथ, वाल्मीकि जैसे किरदारों को निभाते हैं। भास्कर बोस बताते हैं, "रामलीला में काम करने से पहले मैं थियेटर किया करता था, रामलीला में हम के जन्म से लेकर लवकुश तक दिखाते हैं, इन सबमें में राम के जीवन के जीवन के बारे में दिखाते हैं।"
पिछले कुछ वर्षों में रामलीला में भी बहुत से बदलाव हुए, उनके बारे में भास्कर बताते हैं, "बहुत कुछ बदल गया है, पहले साल जब हम यहां आए तो ऐसा स्टेज ही नहीं था, छोटा सा स्टेज था, पीछे बैकग्राउंड नहीं था तब दर्शक भी बहुत कम आते थे, धीरे–धीरे बहुत कुछ बदल गया।"
समय के साथ रामलीला में बहुत से बदलाव भी हुए हैं, इस बारे में भास्कर ने बताया, "हमारी पूरी रामलीला अब थियेटर बेस्ड होती है, हर साल हम कुछ न कुछ बलाव करते हैं, हर साल कॉस्ट्यूम बदलते हैं। बदलाव तो लाना ही होगा, यंग जनरेशन भी आती है देखने, बहुत लोग आकर हमें बताते हैं आप लोगों को देखकर लगता है कि जैसे फ़िल्म चल रही हो, लोग टीवी छोड़कर यहां देखने आते हैं।"
अब नहीं बदलने पड़ते पर्दे
पहले दृश्य के हिसाब से पर्दे लगते थे, जैसे कि महल दिखाना हो तो महल का प्रिंटेड पर्दा, जंगल दिखाना हो तो वैसा पर्दा लगा दिया जाता था, लेकिन अब सब हाईटेक हो गया, अब एलईडी स्क्रीन पर दृश्य के हिसाब से बदलाव कर दिया जाता है।
कलाकारों को खुद नहीं बोलने पड़ते संवाद
एक समय था जब कलाकरों को खुद ही संवाद बोलने होते थे, लेकिन अब रामानंद सागर टीवी धारावाहिक रामायण के संवाद पर ही अभिनय करते हैं, जिससे रामलीला में और भी ज्यादा सजीवता आ जाती है।
मेकअप में लगते हैं कई घंटे
कुछ मिनट के किरदार को निभाने के लिए रिहर्सल ही नहीं, घंटों मेकअप में भी लग जाते हैं, एक एक कलाकार का उसके किरदार के हिसाब से मेकअप किया जाता है। रावण का किरदार निभाने वाले कलकत्ता के शंकर पाल बताते हैं, "कुछ मिनट रोल के लिए हमें घंटों रिहर्सल करनी पड़ती है, सबसे ज्यादा समय तो मेकअप में ही लगता है।"
500 साल से भी अधिक पुरानी है ये रामलीला
ऐशबाग की रामलीला का इतिहास 500 साल से भी अधिक पुराना है, लेकिन इसका पंजीकरण 19वीं शताब्दी में श्रीरामलीला समिति ऐशबाग के नाम से कराया गया था। पहली बार इस रामलीला का मंचन साधुओं ने किया था। इसके बाद से निरंतर हर साल रामलीला का मंचन किया जाता है। ऐशबाग रामलीला के बारे में कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ने इसकी शुरूआत की थी, तब वो पूरे अवध क्षेत्र में घूम-घूमकर रामायण का पाठ करते थे।
250 से अधिक कलाकार लेते हैं भाग
ऐशबाग की रामलीला का भव्य मंचन कमेटी और कलाकारों की कड़ी मेहनत का नतीजा होता है। 1860 में रामलीला समिति बनी। रामलीला का मंचन करने के लिए कलाकार देश के कई कोनों से आते हैं। 250 से ज्यादा कलाकार रामलीला में अभिनय करते हैं, जिसमें देश के दूसरे शहरों से 60 नामी कलाकार इस रामलीला में अभिनय करने आते हैं। सबसे अधिक अनुभवी कलाकार कोलकाता से आते हैं और वो भी उस समय जब वहां दुर्गा पूजा चलती है। भास्कर बोस इस बारे में कहते हैं, "हमें इतने साल हो गए इस समय हमारे यहां दुर्गा पूजा होती है, जो कि हमारे लिए सबसे बड़ा त्यौहार होता है, लेकिन यहां के दर्शकों का प्यार ही है जिसकी वजह से हम यहां आते हैं।"