यह लड़की एथलेटिक्स में प्रदेश का नाम कर रही है रोशन

Update: 2019-09-26 10:19 GMT

अंकित यादव, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। नौकरी के साथ खेल को समय देना लोगों के लिए आसान नहीं हो पाता है, लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में नौकरी करते हुए नेहा अब तक कई मेडल जीत चुकी हैं।

बाराबंकी के त्रिवेदीगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डार्क रूम असिस्टेंट के पद पर कार्यरत नेहा सिंह ने ओपन नेशनल एथलेटिक्स गेम में तीन स्वर्ण पदक जीत कर जिले नाम किया है। राजस्थान में भारतीय खेल विकास परिषद द्वारा आयोजित आल इण्डिया ओपन सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में प्रतिभाग किया जिसमे 100 मीटर, 200 मीटर की दौड़ एवं लंबी कूद में उन्होंने एक साथ तीन गोल्ड मैडेल जीतकर लौटी नेहा सिंह से लोग काफी प्रभावित हुए हैं।

नेहा बताती हैं, "मेरी शुरू से ही स्पोर्ट में रुचि थी बीच में पढ़ाई के लिए छोड़ भी दिया था, लेकिन 2016 में जॉब लगी तो पता ला कि ऑल इंडिया सिविल सर्विसेज का एक टूर्नामेंट होता है, जब मैंने उसमें भाग लिया तो बैडमिंटन में सेलेक्ट हो गई थी, मैंने पहला नेशनल बैडमिंटन में खेला है और उसके 2017 में मैंने एथलिटिक ज्वाइन किया, मैं इस समय सीएचसी त्रिवेदीगंज में तैनात हूं, मैं डार्क रूम असिस्टेंट के पद पर हूं, और इसके साथ ही फील्ड में नई योजनाओं की जानकारी भी देने जाती हूं।"


14 साल की उम्र में ही उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने का उन्हें मौका मिला और उसमे वह सफल रही, इसके बाद उन्होंने इसे अपने कैरियर के रुप चुना और लगातार प्रदेश और केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित खेलों के माध्यम से अनेक प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग कर रही हैं। वो बताती हैं, "जब एथलीट ज्वाइन किया तो लोगों ने कहा कि आप अच्छा कर सकती हैं, अगर आप रनिंग करोगे तो काफी आगे जा सकते हो, तो फिर मैंने धीरे-धीरे रनिंग में फोकस किया और अपने लिए भी टाइम निकालना शुरू किया।"

स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करने वाली नेहा खेल के लिए समय निकाल ही लेती हैं। वो आगे बताती हैं, "स्वास्थ्य विभाग की ऐसी नौकरी होती है, जिसमे छुट्टी भी बहुत कम होती है, लेकिन जितने भी अधिकारी थे हमारे, खासकर सीएमओ हमारे उनका भी सपोर्ट मिला, उन्होंने कहा कि प्रैक्टिस के लिए आपको एक-दो घंटे पहले छुट्टी दे सकते हैं। तो उनकी छुट्टी और सपोर्ट की वजह से हमने धीरे फिर से शुरु किया, इसमें सुबह हम प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम जाते थे, फिर उसके बाद जॉब में जाते थे, उसके बाद वहीं से सीधे स्टेडियम प्रैक्टिस के लिए जाते। घर भी हर दिन आठ-नौ बजे रात तक पहुंचते थे।"

फिर इसके बाद भी जब नेशनल के लिए सेलेक्शन हुआ तो सोचा कि जब जॉब की तरफ से खेल ही रहे हैं तो ओपन में भी ट्राई करें, क्योंकि ओपन और अच्छा माना जाता है, तो फिर एक बार मैंने ओपन ट्राई किया, तो पहला अच्छा निकल गया, इसमें बहुत ध्यान देना पड़ता है, सही डाइट और नींद बहुत जरूरी होता है। इंटरेनेशनल के लिए भी सेलेक्शन हुआ है, कोशिश कि ऐसे ही आगे खेलते रहे।

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