किन्नर होने के चलते मां-बाप ने ठुकराया, अब अनाथ बच्चों का सहारा बनीं मनीषा

Update: 2020-08-07 03:21 GMT

कांकेर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ के कांकेर में रहने वाली मनीषा की जिंदगी खुद तो खुशियों को तरस रही हैं, लेकिन वो दूसरी की जिंदगी में खुशियां भर रही हैं। मनीषा के माता-पिता को जब पता चला कि उनका बच्चा किन्नर है तो उन्होंने उसे छोड़ दिया, आज मनीषा खुद कई अनाथ बच्चों को सहारा दे रही हैं।

"मेरे जन्म के जब माता-पिता को पता चला कि उनका बच्चा किन्नर है तो  छोड़कर चले गए। एक किन्नर ने हमें पाला। आज भी मैं अपने परिवार को पास जाना चाहती हूं, लेकिन वो अपनाने को तैयार नहीं। मैं अपनों के न होने का दर्द समझती हूं, इसीलिए जब भी कोई अनाथ मिलता है अपने साथ ले आती हूं।" मनीषा बताती हैं।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिले कांकेर के पखांजूर में रहने वाली मनीषा अब तक 9 बच्चों को गोद ले चुकी हैं, जिनमें कई बेटियां भी हैं। मनीषा और उनकी टीम मिलकर बच्चों के खाने-पीने, कपड़े और पढ़ाई का इंतजाम करते हैं।

पिछले दिनों एक पढ़ी लिखे और संपन्न परिवार की एक महिला ने बच्चे को गर्भ में मारने के लिए चूना और गुड़ाखू खा लिया। मनीषा बताती हैं, हम लोग कहीं से बधाई मांगकर वापस आ रहे थे, रास्ते में महिला को तड़पते हुए देखा तो अस्पताल ले गए। लेकिन अस्पताल वाले डिलीवरे करने से कतरा रहे थे, हम उसे अपने घर लाए और प्राइवेट डाक्टर बुलाकर डिलीवरी कराई। वो बेटी को नहीं रखना चाहती थी, इसलिए हमने उसे अपने पास रख लिया।"

भारत में ट्रांसजेंडर के लिए अलग से जनगणना तो नहीं हुई लेकिन साल 2011 में रोजगार, शिक्षा और जाति के आधार पर हुई गणना के मुताबिक देश में करीब 487,803 किन्नर थे। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों को तीसरे लिंग के तौर पर मान्यता दी। संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत बतौर व्यक्ति उनके मानवाधिकारों को पहली बार सुनिश्चित किया गया। जिसके बाद इस किन्नर समाज के लिए कई क्षेत्रों में दरवाजे खुल गए। साल 2017 में पहली किन्नर जज बनी, पहली किन्नर पुलिस अधिकारी बनी। कई राज्यों में इस समाज के लोगों ने सरकारी और निजी क्षेत्र में उपलब्धि हासिल की। छत्तीसगढ़ सरकार ने साल 2017 में किन्नरों के लिए पुलिस में भर्ती का विकल्प खोला।

इन सबके बावजूद करीब 5 लाख की आबादी वाले इस समुदाय को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। किन्नर समाज के ज्यादातर लोग शुभ अवसरों पर नाच गाकर बधाई लेने का काम करते हैं। कई बार लोग उन्हें देखर मुंह फेरते हैं तो कई बार जिनके यहां मांगने जाते हैं वो दरवाजा तक बंद कर लेते हैं। लेकिन समाज से ठुकराए जाने के बावजूद मनीषा जैसे लोग समाज में एक बेहतरीन उदाहरण बन रहे हैं।

लोगों के नजरिए पर मनीषा कहती हैं, "मेरे प्रति लोगों का मिलाजुला नजरिया रहा है। कुछ लोग खुशी के मौके पर खुद बुलाते हैं, तो कई बार हम लोगों को देखकर लोग दरवाजे बंद कर लेते हैं। कुछ लोग तो हम लोगों को धिक्कारते हुए कहते हैं जाओ मजदूरी करके खाओ।"

मनीषा कहती हैं, मेरी कोशिश है कि अनाछ बच्चों के लिए एक आश्रम खोल सकूं, ताकि ज्यादा बच्चों को सहारा मिल सके। आश्रम के लिए कई बार नेता और अधिकारियों से बात की है। देखते हैं कब सुनवाई होती है, तब तक जहां कोई अनाथ मिलेगा मैं उसे अपने पास ले आऊंगी।

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