पर्यावरण बचाएगा ये पटाखा, आईआईएसईआर मोहाली के वैज्ञानिक ने गोमूत्र से बनाया इको फ्रेंडली पटाखा

Update: 2019-06-08 05:22 GMT

मोहाली (चंडीगढ़)। अब बाजार में ऐसे पटाखे मिलेंगे जो पर्यावरण अनुकूल और प्रदूषण रहित हैं। इन पटाखों को गोमूत्र से बनाया गया है, आम तौर पर इस्‍तेमाल होने वाले पटाखों के कारण धुआं और प्रदूषण बड़ी समस्‍या बनते हैं। इसी बात का ध्यान में रखते हुए मोहाली IISER के प्राध्यापक डॉ. सम्राट घोष ने इन्‍हें तैयार किया है।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के प्राध्यापक ने एक अनोखा अविष्कार किया है। अब तक रासायनिक पदार्थों से बनने वाले पटाख़े काफी महंगे व ख़तरनाक साबित होते थे, इसके साथ ही इनमें से निकलने वाला धुआं काफी ज़्यादा मात्रा में वातावरण को प्रदूषित करता था, जिसकी वजह से लोगों को खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो जाता था।

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वहीं किसानों को छुट्टा जानवरों को भगाने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला पटाखा कभी-कभी फट जाता था। जिस के कारण कई बार लोगों को अपना हाथ तक गंवाना पड़ जाता था। प्रो. सम्राट ने एक साल की रिसर्च में काफी अच्छी सफलता पाई है। उन्होंने जो खाली प्लस्टिक बोतलों को एकत्रित कर के उन से वातावरण मैत्री पटाखा बनाया है।

प्रो. घोष बताते हैं, "जल्द ही इसको पूर्णतः तैयार कर के देश की जनता को समर्पित करूंगा।"

डॉ. घोष बताते हैं कि जब वो बचपन में खेलने जाते थे, उस वक्त अगर कोई आदमी गाय को चोट पहुंचाता था तो वो बहुत दुःखी होती थे। सोचते थे काश गायों के प्रति लोगो को संवेदना होती तो कितना अच्छा होता। उन्होंने ने बताया कि 2017 में जब वो एक राजनेता का इंटरव्यू सुन रहे थे। तो उस नेता ने बताया कि गौमूत्र का रोजना सेवन करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है इसके साथ साथ कैंसर जैसी बीमारियों से लड़ने की शक्ति देता है। फिर वही से उन्होंने से गौमूत्र से से एक ऐसा विस्फोटक रसायन खोज निकाला जिसमें बिना वातावरण को नुकसान पहुंचाये पटाखा दगाए जा सकते हैं।

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इससे गौपालकों व किसानों को गाँव मे ही मिलेगा रोजगार

गौमूत्र से बनने वाले पटाख़े में इस्तेमाल किया जाने वाला गोमूत्र बहुत ही उपयोगी साबित होता है। आने वाले कुछ समय के बाद ग्रामीणों को गाँव में ही युवाओं व किसानों के लिए गायें वरदान साबित होगी। गायों के दूध के साथ साथ उनका गौमूत्र भी आसानी से मार्केट में बिक्री होगा तो किसान की फसलों को नुकसान नहीं होगा, नौजवान वर्ग गाँव से निकल के शहरो की तरफ रुख करने की जगह गायों को पालना शुरू कर देंगे। इस तरीके से जल्द ही देश से आवारा कही जाने वाली गायें सब के लिए उपयोगी साबित होंगी।

बिना थके करते हैं 22 घण्टा लैब में काम

आईआईएसआर की शोध छात्रा छात्रा अमीषा यादव बताती हैं, "डॉक्टर साहब बिना थके 22 घंटे तक लैब में काम करते हैं। हम लोगों को जल्दी छुट्टी दे देते हैं, उसके बाद जब हम लोग मेस से खाना खाकर वापस आते हैं तो सर के लैब की लाईट आन ही मिलती है। सर कोई न कोई परीक्षण करते नज़र आते हैं। थकान होने पर वही लैब में योगासन कर लेते है उसके बाद फिर काम पर शुरू हो जाते हैं।

डॉ. घोष ने बताया कि उनके पिता अमिया कुमार घोष डिफेंस मिनिस्ट्री में आईडीएएस ऑफिसर थे, इस दौरान उनके पिता जी को पोस्टिंग अफगानिस्तान के काबुल में हुई थी उस वक्त प्रो घोष की उम्र महज 7 वर्ष की थी। इस दौरान अफगानी सेना पर रूस की सेना ने अटैक कर दिया था इसके बाद वहां के हालात बहुत बिगड़ चुके थे, जिसके कारण उनको फिर वापस भारत इटारसी एमपी आना पड़ा। उस दौरान उनके मन में चल रहा था कि बड़ा होकर सेना के लिए सस्ता और किफ़ायती हथियार बनाऊंगा जो कि सेना के लिए स्वदेशी व बहुत ही कारगर साबित होगा।

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