गांव कनेक्शन सर्वे: 39.1 फीसदी ग्रामीण महिलाओं को पानी के लिए निकलना पड़ता है घर से बाहर

गांव कनेक्शन के सर्वे में ग्रामीण महिलाओं ने कहा कि उनकी आधी जिंदगी पानी ढोने में ही बीत जाती है।

Update: 2019-07-02 07:38 GMT

लखनऊ। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की रजौला गांव (सतना जिला) की सुमन (18 वर्ष ) का आधा दिन तो पानी भरने में ही बीत जाता है। उनके गांव में एकमात्र हैंडपम्प है जो कि उसके घर से लगभग आधा किलोमीटर दूर है। उसे दिन भर में दो से तीन बार पानी भरने के लिए जाना पड़ता है। कई साल पहले उसकी पढ़ाई छूट चुकी है।

हैंडपंप से घर के लिए पानी ला रही सुमन बताती है, "आधा दिन तो पानी भरने में ही बीत जाता है, पढ़ाई-लिखाई की कौन सोचे? कई बार तो लगातार आधा घंटे नल चलाने पर पानी आता है।" सुमन जैसी लड़कियों और महिलाओं की संख्या भारत में करोड़ों में है, जिनका रोज का काफी वक्त सिर्फ घर के लिए पानी की जरुरतें पूरी करने में जाता है।

पानी के चलते मध्य प्रदेश की सुमन की पढ़ाई छूटी है लेकिन सतना से करीब 1500 किलोमीटर दूर गुजरात के कच्छ में साहब अली का पूरा गांव खाली हो गया है। साहब अली कच्छ में जिले के बन्नी ग्रास लैंड के जिस नानासराडा गांव में रहते हैं। वहां 650 से ज्यादा घर थे लेकिन अब सब खाली हैं, सिवा साहब अली के। बिहड़ा (एक प्रकार का वाटर टैंक) में भरे पानी को निकालकर गांव कनेक्शन टीम को पिलाते हुए साहब अली कहते हैं, 'इस गांव में मैं अकेला शख्स बचा हूं। गांव के सभी लोग यहां से चले गए, यह अकाल बहुत खतरनाक है।'' गुजरात का कच्छ जिला लगातार तीसरे साल सूखे की चपेट में है और इस बार पिछले 20 साल के बाद ऐसा भीषण सूखा पड़ा है


ग्रामीण मुद्दों को समझने के लिए गांव कनेक्शन ने मई, 2019 में 19 राज्यों में एक सर्वे कराया था। सर्वे के दौरान 18267 लोगों से अलग-अलग मुद्दों पर सवाल किए गए, जिनमें एक अहम मुद्दा पानी भी था। इस दौरान सवाल पूछा गया कि उनके लिए पानी का स्त्रोत क्या है? दूसरा सवाल था कि उनके घरों की महिलाओं पानी के लिए कितना दूर जाना पड़ता है ?

गांव कनेक्शन के इस सर्वे के अनुसार लगभग 39.1 प्रतिशत महिलाओं को पानी के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। इनमें से भी 16 प्रतिशत यानी लगभग 3000 महिलाएं ऐसी हैं, जिनके लिए पीने के पानी का स्त्रोत कम से कम एक किलोमीटर से पांच किलोमीटर दूर है। ऐसी महिलाएं दिन भर में कम से कम दो बार पानी भरने के लिए घर से बाहर निकलती है। इस दौरान इन महिलाओं को कई और तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हालांकि ग्रामीण स्तर पर पेयजल को लेकर शुरु की गई कवायदों का असर भी दिखता है। गांव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार 18,267 में से 11207 लोगों के घर में पानी का स्त्रोत नल या हैंडपम्प के रूप में है। 


असल में पानी की समस्या ऐसी एक समस्या है जिससे देश का हर तीन में से एक नागरिक प्रभावित है। साल 2019 की शुरुआत में ही देश का लगभग 42 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सूखे की चपेट आ गया था। कमजोर मानसून भी पेयजल की समस्या को बढ़ाता है। सूखते जल स्त्रोत, गिरता भूमिगत जलस्तर इसे भयावह बनाता है।

वन इंडिया वन पीपल की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल प्रत्येक ग्रामीण भारतीय महिला को पानी के लिए वजनी बर्तन सिर पर रखकर औसतन 14 हजार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। एक ग्रामीण महिला का जीवन सुबह पानी भरने से शुरू होता है। वह पानी के लिए कई किलोमीटर पैदल चलती हैं। फिर पानी घर लाकर खाना बनाती हैं। पशुओं को चारा खिलाती हैं, लोगों को भोजन देती हैं। इसके बाद फिर शाम को पानी लाने का वही चक्र शुरू हो जाता है। कई महिलाओं के लिए यह कुचक्र दिन में तीन-तीन बार के लिए होता है।

वन इंडिया वन पीपल की रिपोर्ट कहती है कि भारत में जितनी दूर महिलाओं को पानी भरने के लिए जाना पड़ता है, उससे हर साल करीब 15 करोड़ कार्य दिन (Work Day) का नुकसान होता है। इस कार्य क्षमता (Work Force)के नुकसान के कारण लगभग दस अरब रूपये का नुकसान प्रतिवर्ष भारत को होता है।


देश में पानी और सूखे की समस्या से प्रभावित कई क्षेत्र हैं लेकिन सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड और मध्य प्रदेश हैं। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ में सबसे बद्तर हालात हैं तो यूपी और एमपी के 13 जिले जिन्हें बुंदेलखंड कहा जाता में भी पानी की कमी, विरानी की बड़ी वजह है।

महाराष्ट्र के औरंगाबाद और नांदेड में लोग पानी खरीद कर पी रहे हैं। पशुओं और खेती तक के लिए पानी खरीदना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में कुछ वर्ष पहले खेत तालाब योजना शुरु की गई थी, जिसमें बारिश के पानी के पानी को एकत्र किया जाना था, लेकिन कई जगह बोरवेल से वो तालाब भरे गए, जिसने भूजल को और नुकसान पहुंचाया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), हैदराबाद में शोधकर्ता ओमप्रकाश इस योजना को फेल और नुकसानदायक बताते हैं।



औरंगाबाद के निसर्ग मित्र मंडल के विवे दीवान कहते हैं, "सरकार को महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में लोगों को राहत देने के लिए पारंपरिक जल निकायों और तालाबों को पुनर्जीवित करना चाहिए। यही स्थाई उपाय है।"

भौगोलिक रूप से देखे तो मराठवाड़ा पश्चिमी घाट में स्थित है जहां पर हर साल औसतन 600 से 700 मिलीमीटर की बारिश होती है। लेकिन पठारी इलाका होने की वजह से बारिश का सिर्फ 10 प्रतिशत पानी ही जमीन के अंदर जा पाता है। इसी वजह से यह इलाका सूखा ग्रस्त है।

इसके अलावा इस क्षेत्र में गन्ना और बीटी कपास काफी उगया जाता है जो पानी की अधिक मात्रा को लेता है। इस वजह से मराठवाड़ा में जलस्तर कम रहता है और वहां हमेशा सूखे की स्थिति बनी रहती है। यही हाल गुजरात में डांग से लेकर गोधरा पंचमहल और राजस्थान की सीमा तक है, जो इलाका पठारी है। जहां पानी खूब बरसता है लेकिन जमीन में समा नहीं पाता। पानी के लेकर हालात इस कदर बद्तर हो रहे हैं 2016 में महाराष्ट्र के लातूर में धारा 144 भी लगानी पड़ी थी।


बुंदेलखंड क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के सात (झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा, बांदा और चित्रकूट) जबकि मध्य प्रदेश के छह (दतिया, टीकमगढ़, छत्तरपुर, दमोह, सागर और पन्ना) जिले पड़ते हैं। इन जिलों की भी प्रमुख समस्या पानी है। बुंदेलखंड में वैसे तो पानी की समस्या मार्च से शुरू होती थी, लेकिन 2018 के नवंबर-दिसंबर में ही टीकमगढ़ में कुएं तालाब सूखने लगे थे।

दिल्ली से करीब 600 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश का टीकमगढ़ जिला बुंदेलखंड इलाके का सबसे प्रभावित जिला माना जाता है। टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलीमीटर दूर, पोस्ट जतारा के कौड़िया के आदिवासी मोहल्ले की रहने वाली फूलन देवी अपनी दो साल की बेटी को सूखी रोटी खिलाते हुए गांव कनेक्शन से कहती हैं ''खाने में सूखी रोटी के अलावा कुछ है ही नहीं। पति बाहर कमाने चले गये हैं। हर साल तो मई में जाते थे, लेकिन इस बार पानी की दिक्कत अभी से शुरू है, इसलिए पहले चले गये। खेत में पानी कुएं से आता था, लेकिन अब उसमे पानी ही नहीं है।"

बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में गांव कनेक्शन की टीम जहां भी गई, वहां पर उन्हें महिलाओं का दिन भर का एक ही काम दिखा- पानी ढोने का काम। इस काम की वजह से महिलाओं का स्वास्थ्य अक्सर प्रभावित होता है। इसके अलावा वह अपने बच्चों को देखभाल उचित ढंग से नहीं कर पाती हैं। पानी ढोने की समस्याओं से उन्हें कई घरेलू समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।

सतना जिले की महकोना गांव में पानी के लिए नल पर लाइन लगाई हुई महिलाएं बताती हैं, "हमें बड़े-बड़े और भारी पानी के बर्तन उठाने पड़ते हैं। उन्हें सिर पर ढोकर पैदल आना-जाना पड़ता है। फिर हैंडपम्प या कुएं के सामने उन्हें पानी के लिए अपनी बारी का घंटों इंतजार करना पड़ता है।"


ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ ग्रामीण महिलाओं की समस्या है। दिल्ली से लेकर चेन्नई, बंगलौर, शिमला और आर्थिक राजधानी मुंबई जैसे कई बड़े महानगरों में भी शहरी महिलाओं को सुबह होते ही पानी के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता है।

नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल देश की तीन चौथाई आबादी पेयजल की संकट से जूझ रही है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2020 तक दिल्ली और बेंगलुरू जैसे 21 बड़े शहरों से भूजल गायब हो जाएगा। इससे करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। अगर पेयजल की मांग ऐसी ही रही तो वर्ष 2030 तक स्थिति और विकराल हो जाएगी। वहीं वर्ष 2050 तक पेयजल की इस विकराल समस्या के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में छह प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।


पेयजल की इस बढ़ती समस्या के संबंध में वाटर ऐड इंडिया के प्रोग्राम एंड पॉलिसी के निदेशक अविनाश कुमार कहते हैं कि इसके लिए सभी को अपनी जिम्मेदारियां उठानी होगी। गांव कनेक्शन को उन्होंने बताया, "हम सिर्फ केंद्र और राज्य सरकारों के भरोसे नहीं बैठ सकते कि वे पेयजल के लिए कोई योजना बनाए। यह जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन और स्थानीय लोगों को भी लेनी होगी। स्थानीय प्रशासन को जल स्त्रोतों के संरक्षण की योजना बनानी होगी। लोगों को भी ध्यान देना होगा कि उनके आस-पास जो भी जल के स्त्रोत मसलव नदी, कुआं और तालाब हैं उनका अस्तित्व बना रहे। उस पर अतिक्रमण ना होने पावे।"

वह आगे बताते हैं, "पेयजल की समस्या के लिए भारत सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना है। नेशनल रुरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम (राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना) नाम की इस योजना में 2020 तक 70 प्रतिशत घरों तक पीने के पानी की समुचित व्यवस्था की जानी है। लेकिन 2017 के रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक मात्र 17 प्रतिशत ग्रामीण घरों तक ही पाइप्ड ड्रिंकिग वाटर सप्लाई (नल से पेयजल की सप्लाई) पहुंच पाई है।" उन्होंने कहा कि इसके लिए हर राज्य के पास एक गाइडिंग प्लान होनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश अभी तक किसी भी राज्य के पास ऐसा कोई गाइडिंग प्लान नहीं है।

भारत की पानी की समस्या से निपटने के लिए जानकार और विशेषज्ञ दो चीजों पर जोर दे रहे पेड़ लगाओ और पानी बचाओ। "पानी की समस्या से बिना वाटर कंजरवेशन नहीं निपटा जा सकता है।"  

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