हज़ारों लोगों को बेरोजगार कर गईं चीनी मिलें

Update: 2016-07-06 05:30 GMT
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बाराबंकी। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों की स्थिति लगातार बदहाल होती जा रही है। बाराबंकी जिला भी इससे अछूता नहीं है। जिले में दो सरकारी चीनी मिले हैं और एक प्राइवेट चीनी मिल है। बंकी और बुढ़वल में स्थिति इन सरकारी चीनी मिलों की स्थिति दयनीय बनी हुई है और मिले बंद हो चुकी हैं। जबकि हैदरगढ़ स्थिति प्राइवेट चीनी मिल बेहतर स्थिति में है और मुनाफे में चल रही है।

जनपद में सरकारी चीनी मीलों का मलबा तक बिक चुका है। बुढ़वल चीनी मिल तो अब खंडहर हो चुकी है, जबकि बंकी की चीनी मिल पिछले करीब पंद्रह साल से ठप पड़ी है। यहां के कर्मचारियों को भुगतान भी नहीं किया गया। इससे हजारों मिल कर्मचारियों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा और वो आज भुखमरी की कगार पर हैं। किसी तरह मजदूरी का काम कर कर्मचारी अपने बच्चों का पेट पाल रहे हैं। कर्मचारियों की मांग है कि उनको रोजगार दिया जाए। वहीं उनके परिवार की महिलाएं आज भी मिल के गेट पर आस लगाए बैठी हैं कि एक न एक दिन दोबारा से ये चीनी मिल शुरू होगी।

कुछ कर्मचारियों ने सरकार से आस छोड़ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। बाराबंकी जिला मुख्यालय से देवा मार्ग पर स्थित बंकी की बदहाल हो चुकी उत्तर प्रदेश राज्य चीनी मिल निगम लिमिटिड मिल वर्ष 2011 कौड़ियों के भाव बिक गई। जिले के बंकी नगर पंचायत अध्यक्ष पति प्रतिनिधि श्याम सिंह ने कहा, “सैकड़ों बीघे में फ़ैली ये चीनी मिल बीएसपी पार्टी के पूर्व एमएलसी जावेद अहमद ने 12.51 करोड़ में खरीदा था जो रकम सिर्फ मिल से निकलने वाले मलबे से भी बहुत कम थी। मिल खरीदने के बाद मिल का मलबा ही करीब-करीब 50 करोड़ रुपए का रहा होगा।

ये चीनी मिल का सौदा कौड़ियों के भाव हुआ था।” उन्होंने आगे कहा, “चीनी मिल की बिक्री के बाद ही कर्मचारियों का उत्पीड़न भी शुरू हुआ। कर्मचारियों का बकाया वेतन रोक दिया गया। मिल की अंदर बनी कालोनी में रहने वाले कर्मचारियों की बिजली काट दी गई। सप्लाई का पानी बंद करवा दिया गया और सभी कर्मचारियों को जबरन वहां से निकला जाने लगा। कर्मचारियों ने स्थानीय विधायक से मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद सभी कर्मचारियों ने न्यायालय की शरण ली और अब फैसले का इंतजार कर रहे हैं। फिलहाल कुछ कर्मचारी अभी भी मिल रहे हैं।” चीनी मिल कर्मचारी रहे जाफरी बताते हैं, “26 कर्मचारियों ने वीआरएस नहीं लिया था, जिनको जबरन वीआरएस लेने के लिए मजबूर किया जा रहा था, लेकिन उन लोगों ने वीआरएस नहीं लिया, जिसके बाद से कर्मचारी कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।” 

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