छत्तीसगढ़: बस्तर के किसानों के लिए बेहतर आय का जरिया बन रही कॉफी की खेती

अब तक यहां पर किसान सिर्फ धान की खेती करते रहे हैं, चार साल पहले तक नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 20 एकड़ में कॉफी की खेती के सफल होने के बाद करीब 100 एकड़ में कॉफी की खेती शुरू की जा रही है।

Update: 2021-03-17 08:20 GMT
बस्तर के आदिवासी किसानों ने कॉफ़ी की खेती शुरू की है। फोटो: जीनेंद्र पारख

जीनेंद्र पारख/हर्ष दुबे/शुभम ठाकुर 

जगदलपुर (छत्तीसगढ़)। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ को अब कॉफी की खेती के लिए भी जाना जाएगा। किसानों की मेहनत व जिला प्रशासन के सहयोग से बस्तर जैसे सघन वनांचल क्षेत्र में विश्व की सबसे दुर्लभ किस्म की कॉफी की खेती की जा रही है। कॉफी की खेती करने से किसानों को धान के मुकाबले कई गुना अधिक लाभ मिल रहा है।

उद्यानिकी विभाग यहां पर कॉफी की खेती कर किसानों को इसका प्रशिक्षण भी दे रहा है, ताकि वे अपनी आय बढ़ा सकें। माओवादी दहशत के बावजूद आदिवासी अब अपनी आय बढ़ाने नए फसलों के उत्पादन में रुचि ले रहे हैं। बस्तर के दरभा ब्लॉक के दरभा, ककालगुर और डिलमिली गाँव में कॉफी की खेती की जा रही है। इस कॉफी की खेती की पूरी तकनीक यहां के हॉर्टीकल्चर कॉलेज के ज़रिए ग्रामीणों को सिखा रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि बस्तर से दरभा से लेकर ककनार और कोलेंग जैसे इलाके की पहाड़ियों पर कॉफी की खेती आसानी से की जा सकती है।

जगदलपुर से करीब आठ किमी दूर तितिरपुर गाँव के रहने वाले कुलय जोशी (25 वर्ष) बीते तीन-चार सालों से कॉफी की खेती से जुड़े हुए हैं। जोशी ने बताया, "पहले साल में मैंने दो एकड़ जमीन पर कॉफी की खेती की थी। इसके बाद दूसरे साल में 18 एकड़ अतिरिक्त जमीन पर फसल लगाई। इस तरह कुल 20 एकड़ जमीन पर मैं कॉफी उगाता हूं।"

उन्होंने आगे बताया, "हमने दो बाई दो मीटर में प्लांट लगाया था। एक प्लांट में लगभग डेढ़ किलोग्राम से दो किलोग्राम तक कॉफी के बीज का उत्पादन हुआ है। दो एकड़ जमीन पर कॉफी की खेती को तीन साल हो गए हैं, तीसरे साल में जब हमने पहली फसल ली, तो पांच क्विंटल कॉफी के बीज का उत्पादन हुआ।"

एक बार पौधा लगाने के बाद 50-60 तक उपज पा सकते हैं। फोटो: दिवेंद्र सिंह 

यह पूछने पर कि कितनी कमाई हुई है, कुलय जोशी बताते हैं, "यह सरकारी प्रोजेक्ट था। कॉफी की कीमत एक रुपए प्रति ग्राम है। हम 'बस्तर कॉफी' के नाम से 250 ग्राम का पैकेट 250 रुपए में बेचते हैं। इस तरह एक एकड़ में एक साल में लगभग 30 से 40 हजार रुपए का फायदा हुआ है। साल में एक बार ही इसकी फसल ली जाती है। इसके अलावा हम इसके साथ ही मूंगफली और कालीमिर्च जैसी फसलें भी उगाते हैं। जिसका हमें अतिरिक्त लाभ होता है।"

जोशी ने आगे यह भी बताया कि पहले साल में खर्च ज्यादा होता है, इसके बावजूद 30-40 हजार रुपए की कमाई हो गई। आने वाले सालों में कमाई बढ़ने की उम्मीद है।

कॉफ़ी बोर्ड के अनुसार देश में कॉफी का उत्पादन मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में राज्यों में किया जाता है, लेकिन अब छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िले में भी कॉफ़ी की खेती शुरू हो गई है। कई जगहों पर इसे कहवा के नाम से भी जाना जाता है। एक बार कॉफी के पौधों को लगाने के बाद लगभग 60 सालों तक फसल प्राप्त की जा सकती है।

फसल तैयार होने के बाद कॉफी के बीजों के प्रोसेसिंग की जाती है। फोटो: जिनेन्द्र पारख 

नए रोजगार हो रहे सृजित

वनांचल क्षेत्रों के किसान पारंपरिक खेती से हटकर कॉफी की खेती कर रहे हैं। जिससे ना सिर्फ उनकी आर्थिक आय बढ़ रही है बल्कि क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहे हैं। किसान बस्तर के दरभा घाटी में दुनिया भर में दुर्लभ कही जाने वाली अरेबिका–सेमरेमन, चंद्रगरी, द्वार्फ, एस-8, एस-9 कॉफी रोबूस्टा- सी एक्स आर की खेती कर रहे हैं। जिसका दाम धान और अन्य पारंपरिक फसलों की तुलना में बहुत अधिक है। कॉफी की खेती करने से स्थानीय लोगों को नया रोजगार मिल रहा है।

खेती के लिए अनुकूल जलवायू

छत्तीसगढ़ के दूरस्थ वनांचल क्षेत्रों के निवासी वनोपज पर ही आश्रित रहते थे। लेकिन अब कॉफी की खेती का विकल्प होने से उन्हें राहत मिली है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बस्तर का दरभा औरउससे लगा क्षेत्र कॉफी की खेती के लिए अनुकूल है, क्योंकि कॉफी के लिए समुद्री तल से 500 मीटर की ऊंचाई जरूरी होती है। लेकिन बस्तर में ऐसे बहुत से इलाके हैं जहां 600 मीटर से ज्यादा ऊंची पहाड़ियां हैं और उन पहाड़ियों पर स्लोप वाली खेती की जगह भी उपलब्ध है। दरभा ब्लॉक के इन गांवों में 687 से 800 मीटर ऊंचे इलाके हैं। इसके साथ इन ऊंचाइयों पर खेत स्लोप में बने हैं। जो कॉफी की खेती के लिए बेहद ही अनुकूल है। यहां बारिश के साथ-साथ इलाकों में नमी भी होती है। कॉफी उत्पादन के लिए जमीन में छांव जरूरी है। इसके लिए यहां कुछ पेड़ भी तैयार हो रहे हैं। जिससे किसानों के उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है।

कॉफी के साथ छह तरह की फसल ले रहे हैं किसान

जहां कॉफी की खेती की जाती है वहां आम, कटहल, सीताफल, काली मिर्च जैसे फसलों को भी लिया जा सकता है। कॉफी के पौधे को छाया की जरूरत होती है, लिहाजा इसके लिए बड़े पेड़ लगाए गए हैं, ताकि यहां बराबर छाया मिल सके। इन्हीं पेड़ों में काली मिर्च के पौधों को जोड़ा गया है ताकि वे इसके सहारे से बढ़ सकें। खास बात यह है कि इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ में पहली बार हो रहा है।

कॉफी के पौधों को छाया की जरुरत होती है, जिसके लिए बड़े पेड़ लगाये जाते हैं, जिसपर कालीमिर्च की खेती भी कर सकते हैं. फोटो: दिवेंद्र सिंह 

50 किसानों ने की शुरूआत

देश भर में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में में ही कॉफी की खेती होती है। अब मध्य भारत में बस्तर पहला जिला है, जहां कॉफी की खेती की जा रही है। अब तक यहां पर किसान सिर्फ धान की खेती करते रहे हैं। चार साल पहले तक नक्सल प्रभावित क्षेत्र के 20 एकड़ में कॉफी की खेती के सफल होने क बाद अब इसी क्षेत्र के डिलमिली में एक पहाड़ी पर करीब 100 एकड़ में कॉफी की खेती शुरू की जा रही है। इस योजना में जिन 50 किसानों का चयन किया गया है उनकी जमीन इस पहाड़ी पर है। किसानों ने नवाचार करते हुए कॉफी की खेती की शुरूआत की है।

छत्तीसगढ़ उद्यानिकी महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र, जगदलपुर के प्रोफेसर डॉ. केपी सिंह गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "सौ एकड़ जमीन में लगभग एक लाख अरेबिका व रोबस्टा किस्म के कॉफी के पौधे लगाए जाएंगे, जिसकी तैयारी कर ली गई है। पहले साल में प्रति एकड़ लगभग डेढ़ लाख रुपए की लागत आ जाती है, लेकिन इसके बाद हर साल लगभग 10 हजार रुपए ही खर्च होते हैं। एक बार फसल लगाने के बाद लगभग 60 सालों तक फसल ली जा सकती है। प्लांटेशन करने के बाद इसकी देखरेख तीन साल तक उद्यानिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिक करेंगे। इसके बाद इसे किसानों को सौंप दिया जाएगा।

यहाँ के लोगों को कॉफी की उन्नत किस्मों के पौधे उपलब्ध किये जा रहे हैं. फोटो:दिवेंद्र सिंह 

सिंह ने आगे बताया कि फिलहाल प्रोसेसिंग का कार्य महाविद्यालय में ही किया जाता है। आगे जब उत्पादन बढ़ेगा तो प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई जाएगी । रोबस्टा प्रजाति की किस्मों के पौधों में रोग काफी कम मात्रा में लगते हैं। जिस कारण इस प्रजाति की किस्मों का उत्पादन अधिक प्राप्त होता है। वर्तमान में भारत के कुल कॉफी उत्पादन में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी इसी प्रजाति की किस्मों की है। जिन्हें भारत के बाहर सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने बताया कि जिला प्रशासन किसानों को नई तकनीकों के माध्यम से वैकल्पिक खेती करने के लिए प्रेरित कर रही है। अब इसके नतीजे भी सामने आने लगे हैं। अरेबिका और रोबूस्टा जैसी कॉफी की फसलों के उत्पादन से बस्तर के प्रति देश के साथ-साथ दुनिया भर के लोगों का नज़रिया बदल रहा है। कॉफी की खेती से आर्थिक लाभ होने से बस्तर के युवाओं को एक नई दिशा मिली है और वे खेती में रुचि दिखा रहे हैं।

कैसे तैयार होती है बस्तर कॉफी

किसानों की आजीविका बढ़ाने के लिए बस्तर कॉफी मील का पत्थर साबित होगी। बस्तर कॉफी जल्द ही बड़ा ब्रांड बनकरे पूरे विश्व में एक्सपोर्ट की जाएगी। कॉफी को तैयार करने में किसान को सबसे पहले फल तोड़कर उसके बीज को निकालकर सुखाया जाता है। इसे फिर प्रोसेसिंग यूनिट के ज़रिए बीज रूप में अलग किया जाता है। बाद में इसे भुना जाता है। ताकि यह कॉफी पीने योग्य तैयार हो सके। इसके बाद इसका पाउडर ही फिल्टर कॉफी के लिए तैयार कहलाता है। बस्तर में बस्तर कॉफी नाम से इस उत्पाद को तैयार किया जा रहा है, जिसमें ग्रामीणों को भी शामिल कर उन्हें रोजगार दिया जा रहा है।

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