कपास के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए हुआ मंथन

Update: 2018-04-11 15:38 GMT
कपास के उत्पादन को लेकर सलाना बैठक में चर्चा करते अधिकारी।

देश में कपास के किसानों की आमदनी बढ़े और कैसे कम लागत में ज्यादा उत्पादन संभव हो सके, इसके लिए वैज्ञानिकों, किसानों, खेती से जुड़ी कंपनियों और अधिकारियों के बीच दो दिन गहन मंथन किया गया।

यह मौका था नई दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा और भारतीय कपास अनुसंधान और विकास परियोजना की ओर से बीती 9 और 10 अप्रैल को हुए वार्षिक समूह बैठक का, जहां कपास के किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मंथन किया गया।

बैठक में उप महानिदेशक डॉ. एके सिंह ने कहा, “कपास का उत्पादन बढ़ाना हमारी प्राथमिकता है और इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करना होगा।“ आगे कहा, “वैज्ञानिकों को ऐसे हाइब्रिड बीज विकसित करने चाहिए, जिसमें न सिर्फ रोगों से लड़ने की क्षमता हो, बल्कि जलवायु परिवर्तन पर भी लचीलापन हो।“

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महाराष्ट्र में कपास की फसलों में गुलाबी कीट के लगने से किसानों की फसल बर्बाद होने की स्थिति पर डॉ. सिंह ने आगे कहा, “कपास की फसलों में सफेद मक्खी का प्रबंधन समेत रोगों और कीड़ों से सुरक्षा के लिए रोकथाम की तैयारी की जाए, ताकि किसानों को कपास का अच्छा उत्पादन मिल सके। इसके लिए जरूरी है कि ऐसे हाइब्रिड बीज विकसित किए जाएं, जिनमें ऐसे रोगों से लड़ने की क्षमता हो।“

किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लक्ष्य पर डॉ. सिंह ने कपास के किसानों को प्रसंस्करण पर भी ध्यान देने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “कपास की फसल से रूई के अलावा उसकी डंठल को पैकेजिंग में इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके अलावा उससे तेल भी खाने में उपयोग के लिए बनाया जा सकता है। ऐसे में किसान उनकी प्रसंस्करण कर इसका फायदा उठा सकते हैं।“

वहीं खेती की आधुनिक तकनीक पर उन्होंने कहा, “फसल में तुड़ाई का काम मजदूर करते हैं, मगर आज ऐसी कई आधुनिक तकनीकें हैं, जिसके इस्तेमाल से किसान की फसल की लागत कम होती है और कम से कम खर्चे में ज्यादा पैदावार मिलता है। जैसे सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर की मदद ली जा सकती है।“

इस मौके पर कपास उत्पादन प्रणाली, उच्च उपज और निर्यात की गुणवत्ता समेत कपास संयंत्र के प्रत्येक और हर हिस्से के वाणिज्यिक मूल्य को आय का स्रोत बनाने और उद्योग से जुड़ने पर गहन मंथन किया। इसके अलावा कपास में कीटनाशक के उपयोग को कम करना, जागरूकता कार्यक्रम और कटऑन की प्रक्रिया, नए क्षेत्रों, नए रोगों और कीटों के लिए जीआईएस का उपयोग करने पर गंभीरता से कदम उठाने पर विचार किया गया।

(इनपुट: कृषि वैज्ञानिक डॉ. टीपी त्रिवेदी)

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