छोटे किसानों के लिए काफी फायदे मंद हैं ये छोटे सिंचाई पंप

Update: 2017-11-30 11:15 GMT

लखनऊ। 1 या 1.5 अश्वशक्ति (एचपी) से कम की क्षमता वाले छोटे पंप इन दिनों काफी प्रभावी साबित हो रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन छोटे पंप के कई फायदे हैं जो किसानों को इनकी तरफ आकर्षित करते हैं।

ये हैं फायदे

  • इनकी कीमत 5 हजार से 15 हजार रुपये के बीच होती है जो बाज़ार में मिलने वाले 5 से 8 एचपी वाले पंपों की तुलना में आधे से भी कम है।
  • इनका वजन बहुत कम होता है इसलिए इन्हें पीठ पर या साइकिल पर भी रखकर एक खेत से दूसरे खेत में ले जाना बहुत आसान होता है।
  • इनसे निकलने वाले पानी की धार बहुत तेज़ नहीं होती जिससे सतही मिट्टी का अपरदन नहीं होता।
  • कम विद्युत क्षमता वाले इन पंपों को ऐसे क्षेत्रों में भी आसानी से चलाया जा सकता है जहां बिजली की समस्या रहती है। ये पंप सिंगल फेज़ वाले क्षेत्रों में भी चल जाते हैं।

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  • जबकि बड़े पंपों के लिए कम से कम 3 फेज़ वाले हाईटेंशन कनेक्शन की ज़रूरत होती है।
  • इन पंपों को मुख्य रूप से सब्ज़ियों और फूलों की खेती करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो इसमें खर्च होने वाले पानी के मुकाबले बहुत अधिक आय अर्जित करती हैं।
  • सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप सिंचाई की कमियों को दूर कर सकते हैं, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम कर सकते हैं और किसानों की मदद कर सकते हैं कि वे जलवायु परिवर्तन से बचाव वाले तौर तरीके अपनाएं।

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बिजली की समस्या वाले क्षेत्रों के लिए रामबाण

कुल मिलाकर, देश के ऐसे हिस्से जहां सुविधाओं की कमी है, छोटे पंप गरीबी से लड़ने और ज़्यादा मुनाफा कमाने वाला रामबाण साबित हो रहे हैं। इन पंपों को सौर ऊर्जा से भी चलाया जा सकता है इसलिए जहां बिजली नहीं आती वहां भी ये किसानों का काम आसान बनाते हैं।

हफिंगटन पोस्ट के अनुसार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अधिकांश आदिवासी क्षेत्रों में भूजल का उपयोग बहुत कम है। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां बिजली की समस्या भी हमेशा बनी रहती है और सड़क व ट्रांसपोर्टेशन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी न होने के कारण शहरों से डीज़ल खरीद कर लाना भी हर बार मुमकिन नहीं हो पाता।

यहां के पिछड़े इलाकों के ज़्यादातर किसान तो सिंचाई के तकनीकी साधनों के बारे में कभी सोच भी नहीं पाते। बस कुछ ही होते हैं जो गहरे कुओं से या उच्च क्षमता वाले पंपों से सिंचाई कर पाते हैं। जैसे-जैसे संचार में सुधार हो रहा है और बुनियादी सुविधाओं का विकास हो रहा है, असम और बाकी आदिवासी क्षेत्रों के किसानों ने भी भू - संसाधनों के इस्तेमाल की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है। सच ये है कि वे कृषि के सिंचाई संसाधनों से ठीक से परिचित नहीं थे, उनके पास बाज़ार के लिए फसल उगाने से का अनुभव नहीं था क्योंकि वे ज़्यादातर घर में इस्तेमाल होने वाली फसल ही उगाते था। इसके अलावा कृषि में नवीन प्रयोग करने की क्षमता भी उनमें कम थी।

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सरकार पर निर्भरता अनुभव और क्षमता की कमी के कारण वे ज़्यादातर सरकार से मिलने वाली सुविधाओं और योजनाओं पर ही निर्भर रहते थे। ज्यादातर सरकारी योजनाएं जैसे मिलियन वेल स्कीम या शेलाव ट्यूबवेल कार्यक्रमों में सब्सिडी पर बड़ी क्षमता वाली पंप दिए, जिससे बड़ किसानों को फायदा मिला। ये देखकर छोटे किसान भी इस ओर आकर्षित होने लगे लेकिन जब यहां के किसानों को छोटे पंपों के बारे में पता चला तो उन्होंने इसे अपनाया और वे कम लागत में अब अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

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