जलवायु परिवर्तन के कारण सब्जियों की खेती हो रही प्रभावित

Update: 2017-09-06 15:08 GMT
सब्जियों की खेती पर सबसे ज्यादा असर जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ रहा है।

लखनऊ। भारत में सब्जियों की खेती बढ़ रही है लेकिन इसके बाद भी सब्जियों की उत्पादकता जिस अनुपात में बढ़ने नहीं चाहिए वह नहीं है। देश में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन सब्जी की उपलब्धता 300 ग्राम होनी चाहिए लेकिन मात्र 240 ग्राम ही सब्जियां ही प्रति व्यक्ति प्रतिदिन उपलब्ध हो पा रही है।

सब्जियों की खेती पर सबसे ज्यादा असर जलवायु परिवर्तन के कारण पड़ रहा है, जिसका नतीजा है कि असामयिक अधिक बरसात और अधिक ठंड के कारण सब्जियों की खेती की लागत बढ़ने के साथ ही सब्जियां जल्दी खराब भी हो रही हैं। भारतीय सब्जी अनुसंधान परिषद, वाराणसी की रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण किसान न केवल गुणवत्तायुक्त सब्जी उत्पाद कर पा रहा, वहीं सब्जियों पर कीट एवं रोग का प्रभाव अधिक हो रहा है।

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यहां के निदेशक डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने बताया, ''जलवायु परिवर्तन के कारण ही असामायिक वर्षा, सूखा और अधिक ठंड पड‍़ रही है, जिसके कारण सब्जियों की खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण सब्जी बीज उत्पादन भी हो रहा प्रभावित।''

जलवायु परिवर्तन के कारण सब्जियों की खेती पर पड़ रहे असर को लेकर भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की एक टीम ने काम करके अपनी रिपोर्ट दी है, इकसे साथ ही सब्जियों की ऐसी किस्में भी विकसित की गई हैं, जिसपर जलवायु परिवर्तन कम असर पड़‍ता है।

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डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने बताया सब्जियों के पौधे रसदार, तेज वृद्धि वाले और जल्दी फल एवं बीज देने वाले होते हैं। समय से पानी न मिलने एवं तापमान अधिक या कम होने से सब्जी के पौधे पर बहुत अधिक असर पड़ता है। असमय वर्षा होने से सब्जियों का उत्पादन 30 से 40 प्रतिशत कम हो जाता है। ठंड ब‍ढ़ने और तापमान 3 से 4 सेंटीग्रेड होने से जाड़े की सब्जियों की उपज भी 20 से 30 प्रतिशत घट जाती है। गर्मी अधिक बढ़ने से तापमान 42 सेंटीग्रेड या उससे अधिक होने से सब्जियों का उत्पादन 40 से लेकर 50 प्रतिशत घट जाता है।

उन्होंने बताया जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में बदलाव हो रहा है, जिससे सब्जी उत्पादन घट रहा है। संस्थान की रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से सब्जियों की खेती को बचाने के लिए किसानों को संरक्षित खेती की तकनीक की तरफ बढ़ना होगा। इस तकनीक में अधिक तापमान, कम तापमान, असमय वर्षा, कीट एवं बीमारी से होने से नुकसान को बचाया जा सकता है। संरक्षित खेती के लिए ग्लास हाउस, पाली हाउस, नेट हाउस, ग्रीन हाउस और पानी टनेल का इस्तेमाल करना होगा।

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इंडियन डायेटिक एसोसिएशन की सीनियर डायटिशियन डॉ. विजयश्री प्रसाद ने बताया, ''कृषि विविधकरण, भोज्य पदार्थ प्रदान करने और स्वास्थ्य और पोषण सुरक्षा में सब्जियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। देश में लगभग 42 प्रतिशत जनसंख्या शाकाहारी हैं, जिनके आहार में सब्जियां महत्वपूर्ण अंग हैं। सब्जियों पोषक तत्वों, विटामिनों और खनिजों का स्रोत हैं। ऐसे में सब्जी का उत्पादन घटना स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरनाक है।''

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार देश में केवल 2.8 प्रतिशत भूमि से संसार की 15 प्रतिशत सब्जियां देश में पैदा हो रही हैं, लेकिन भारत में सब्जियों की उत्पादकतता विश्व के दूसरे देशों के मुकाबले बहुत कम है। यहां पर सब्जियों की उत्पादकता मात्र 17.4 टन प्रति हेक्टैयर है जो विश्व की औसत उत्पादाकता 28.8 टन प्रति हेक्टेयर से कम है।

देश में सब्जियों की खेती को जलवायु परिवर्तन से कैसे बचाया जाए इको लेकर भारतीय सब्जी अनुसंधान परिषद लंबे समय से काम कर रहा है। सब्जी अनुसंधान संस्थान ने बदलते जलवायु को देखते हुए सब्जियों की विभिन्न किस्में विकसित किया है, जिसमें मटर में काशी नंदिनी, काशी समरथ, लोबिया में काशी श्यामल, काशरी गौरी, काशी उन्नत, कुम्हाड़ा में काशी हरित विकसित की है।

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