ऊसर, बंजर जमीन से कमाई करवाएगी बेल की किस्म 'थार नीलकंठ'

Update: 2019-10-17 07:47 GMT

कई वर्षों के शोध के बाद केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र, गुजरात ने विकसित की है 'थार नीलकंठ' किस्म

अगर आप भी ऊसर-बंजर अनुपजाऊ जमीन से मुनाफा कमाना चाहते हैं तो बेल की बागवानी शुरू कर सकते हैं, केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान ने बेल की कुछ ऐसी किस्में विकसित की हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छा उत्पादन देती हैं।

गुजरात के गोधरा स्थित केन्द्रीय बागवानी परीक्षण केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एके सिंह बताते हैं, "हमारे यहां से गोमा यशी, थार दिव्य और थार नीलकंठ ये बेल की तीन किस्में विकसित की गई हैं।"

वो आगे कहते हैं, "हमारी सबसे लैटेस्ट किस्म थार नीलकंठ है, ये लेट किस्म होती है और ज्यादा उत्पादन देने वाली है, यानि की दस साल के एक पेड़ से एक कुंतल से ज्यादा उत्पादन मिल सकता है। और ये अब तक की जितनी भी किस्में विकसित की गई हैं, उनमें से सबसे मीठी किस्म है, इसके अंदर भी रेशे की मात्रा कम होती है।"

बेल की विपरीत परिस्थिति में सहनशीलता को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय शुष्क बागवानी परीक्षण संस्थान, वेजलपुर, गुजरात द्वारा पिछले 15 साल से पूरे भारत के विभिन्न राज्यों जैसे कि गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पूर्वी राज्यों में से बेल की किस्मों पर शोध करते आ रहे हैं। इन सबमें थार नीलकंठ सबसे बेहतर किस्म है। इसके पौधे मध्यम आकार के और पेड़ पर कांटे बहुत कम होते हैं। फल का वजन लगभग 1.51 किलो तक होता है। फलों का रंग पकने पर पीला, आकार गोल व लंबा व आकर्षक होता है। फल के गूदे का टी. एस.एस. 41.200 ब्रिक्स से अधिक होता है।


इसके बीज की मात्रा बहुत कम और छिलका बहुत पतला होता है। अर्धशुष्क क्षेत्रों में बारानी खेती से आठ साल के पौधे से 75.67 किलो. तक फल प्रति वृक्ष प्राप्त होते हैं। गूदे की मात्रा 72-75 प्रतिशत होती है। इसका फल स्क्वैश, पाउडर और शरबत बनाने के योग्य पाया गया है। इन्हीं लाभकारी विशिष्टताओं की वजह से थार नीलकंठ प्रजाति के पौधों को भारत के शुष्क व अर्धशुष्क बारानी क्षेत्रों में लगाने के लिए संस्तुति की जाती है।

थार नीलकंठ एक उपोष्ण जलवायु का पौधा है, जिसे किसी भी तरह की भूमि में उगाया जा सकता है, जैसे क्षतिग्रस्त, ऊसर, बंजर, कंकरीली, खादर जमीन में। लेकिन उपयुक्त जल निकासयुक्त बलुई दोमट भूमि, इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी गई है। प्रायः मार्च-अप्रैल की गर्मी के समय इसकी पत्तियां गिर जाती हैं। इसकी नई पत्तियों के साथ फूल आने शुरू हो जाते हैं। इससे पौधों की शुष्क जलवायु के प्रति सहनशीलता बढ़ जाती है।

गोमा यशी

इसमें गोमा यशी बौनी प्रजाति है, जिसमें कांटे नहीं होते हैं और ज्यादा उत्पादन भी मिलता है और इसका फल पकने के बाद हाथ से तोड़ सकते हैं, रेशा बहुत ही कम होता है और एक हेक्टेयर में चार सौ पौधे लगा सकते हैं। ये किस्म देश के ज्यादातर राज्यों में जा चुकी है

थार दिव्य

दूसरी किस्म थार दिव्य जो अगेती किस्म है, अगेती का मतलब सामान्यता बेल अप्रैल में पकना शुरू होता है, जबकि ये किस्म जनवरी के आखिरी सप्ताह तक पकना शुरू हो जाती है। जब बाजार में बेल नहीं आना शुरू होता तब इस किस्म के बेल आ जाते हैं।  

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