फरवरी महीने में किसान कर सकते हैं रजनीगंधा की खेती, सरकार देती है सब्सिडी

Update: 2018-02-11 14:25 GMT
रजनीगंधा।

पिछले कुछ समय से खेती में काफ़ी बदलाव हो रहे हैं। लोग पारम्परिक खेती छोड़ व्यावसायिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे किसानों के लिए रजनीगंधा की खेती भी एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है। इसकी खेती किसान फरवरी के आखिरी हफ्ते से कर सकते हैं।

''इस समय रजनीगंधा की खूब मांग है किसानों को इसकी खेती करनी चाहिए। आज बुके से लेकर शादी फंक्शन में इसका प्रयोग खूब किया जाता है,'' उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश के पुर्व निदेशक एसपी जोशी ने बताया, "रजनीगंधा की दो किस्में होती हैं। एक सिंगल किस्म और दूसरी डबल किस्म। किसानों को दोनों तरह की किस्मों की खेती करनी चाहिए।''

रजनीगंधा की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन यह बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी में इसकी अच्छी उपज मिलती है। इसकी रोपाई कंद से की जाती है। रजनीगंधा की व्यावसायिक खेती पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, तामिलनाडु और महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में होती है।

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उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेश की तरफ से राष्ट्रीय औद्यानिक मिशन के तहत किसानों की आर्थिक मदद भी दी जाती है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 35000 रुपए प्रति हेक्टेयर लाभ दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ दो हेक्टेयर जमीन तक ही लाभ दिया जाता है। अन्य किसानों के लिए कुल लागत का 33 प्रतिशत या अधिकतम 23100 रुपए प्रति हेक्टेयर दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ चार हेक्टेयर ज़मीन पर ही लाभ दिया जाता है।

सरकार रजनीगंधा की खेती के लिए जो सब्सिडी देती है, उसके लिए किसान कृषि विभाग के वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं और उसके बाद उद्यान विभाग से सम्पर्क करके अप्लाई कर सकते हैं।
एसपी जोशी, निदेशक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश

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रजनीगंधा के पौधों में 80-95 दिनों में फूल आने लगते हैं। ऐसी जगहों पर जहां दिन और रात के तापमान में अत्याधिक अन्तर न हो पूरे साल उगाया जाता है। इसकी खेती के लिए खेत की अच्छी तैयारी व जल निकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। रजनीगंधा के लिये ज़मीन का चुनाव करते समय दो बातों पर विशेष ध्यान दें। पहला, खेत या क्यारी छायादार जगह पर न हो, दूसरा, खेत या क्यारी में जल निकास का उचित प्रबंध हो। सब से पहले खेत, क्यारी व गमले की मिट्टी को मुलायम व बराबर कर लें।

साल भर फूल लेने के लिए प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल पर कंद रोपण भी किया जा सकता है, कंद का आकार दो सेमी. व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए। हमेशा स्वस्थ और ताजे कंद ही इस्तेमाल करें। कन्द को उसके आकार और भूमि की संरचना के अनुसार चार-आठ सेमी. की गहराई पर और 20-30 सेमी. लाइन से लाइन और और 10-12 सेमी. कन्द से कन्द के बीच की दुरी पर रोपण करना चाहिए रोपण करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1200-1500 किलो ग्राम कंदों की आवश्यकता होती है।

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रजनी गंधा की फसल में फूलों की अधिक पैदावार लेने के लिए उसमे आवश्यक मात्रा में जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद का होना जरुरी है। इसके लिए एक एकड़ भूमि में 25-30 टन गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद देना चाहिए। बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन तीन बार देना चाहिए। एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के करीब 60 दिन बाद और तीसरी मात्रा तब दें जब फ़ूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बाद) कंपोस्ट, फ़ास्फ़ोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें।

कन्द की रेपाई के समय पर्याप्त नमी होना आवश्यक है जब कन्द के अंखुए निकलने लगे तब सिंचाई से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में फसल में पांच-सात दिन और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। सिंचाई की योजना मौसम की दशा फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक बार खुरपी की मदद से हाथ द्वारा खरपतवार निकालना या निराई-गुड़ाई करना चाहिए।

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