रिसर्च : वातावरण में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा फसलों में बढ़ा सकती है कीटों का प्रकोप

रिसर्च में कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े हुए स्तर से धान की उपज पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला और उत्पादन में 15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी जरूर दर्ज की गई, पर इसके साथ ही फसल में लगने वाले भूरा फुदका कीट की आबादी भी दो से तीन गुना बढ़ गई।

Update: 2018-05-14 05:51 GMT
कीट संक्रमण से जली हुई धान की फसल
जिस तरह से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, इसके कारण फसलों में हानिकारक कीटों की बढ़ोत्तरी हो सकती है। राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक व भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
धान की फसल और उसमें लगने वाले भूरा फुदका कीट पर कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा के प्रभावों का अध्ययन करने के बाद कटक स्थित राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान और नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाया है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वर्ष 2050 में कार्बन डाइऑक्साइड 550 पीपीएम और वर्ष 2100 में 730–1020 पीपीएम तक पहुंच जाएगी। भविष्य में फसलों और कीटों दोनों के अनुकूलन पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।  

भूरा फुदका कीट


अध्ययनकर्ताओं में शामिल वैज्ञानिक डॉ. गुरु प्रसन्ना बताते हैं, "सामान्यतः अधिक कार्बन डाइऑक्साइड वाले वातावरण में उगने वाले पौधों की पत्तियों में कार्बन व नाइट्रोजन का अनुपात बढ़ जाता है, जिससे पौधों में प्रोटीन की सांद्रता कम हो जाती है। धान के पौधों में प्रोटीन की कमी की पूर्ति के लिए कीट अत्यधिक मात्रा में पोषक तत्वों को चूसना शुरु कर देते हैं। कीटों की बढ़ी आबादी और चूसने की दर में वृद्धि के कारण धान की फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है और पैदावार कम हो जाती है। अनुमान लगाया गया है कि धान की फसल के उत्पादन में इस तरह करीब 29.9–34.9 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।" 
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अध्ययन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड की अलग-अलग दो तरह की मात्राओं क्रमशः 390 से 392 पीपीएम और 578 से 584 पीपीएमके वातावरण में चावल की पूसा बासमती-1401 किस्म को बरसात के मौसम के दौरान 2.5 मीटर ऊंचे और तीन मीटर चौड़े ऊपर से खुले हुए कक्ष में नियंत्रित परिस्थितियों में उगाया गया था। समयानुसार पौधों को भूरा फुदका (ब्राउन प्लांट हापर) कीट, जिसका वैज्ञानिक नाम नीलापर्वता लुजेन्सप है, से संक्रमित कराया गया।
शोधकर्ताओं ने फसल उत्पादन के साथ-साथ कीट के निम्फों (शिशुओं), नर कीटों और पंखयुक्त व पंखहीन दोनों प्रकार के मादा कीटों की संख्या सहित उनके जीवनचक्र पर कार्बनडाइऑक्साइड के बढ़े स्तरके प्रभावों का अध्ययन किया है। अध्ययन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़े हुए स्तर से धान की उपज पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला और उत्पादन में 15 प्रतिशत बढ़ोत्तरी जरूर दर्ज की गई, पर इसके साथ ही फसल में लगने वाले भूरा फुदका कीट की आबादी भी दो से तीन गुना बढ़ गई। 
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शोधकर्ताओं ने पाया कि धान के पौधों में बालियों की संख्या में 17.6 प्रतिशत, पकी बालियों की संख्या में 16.2 प्रतिशत, बीजों की संख्यामें 15.1प्रतिशत और दानों के भार में 10.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इससे कीटों की प्रजनन क्षमता में हुई 29 से 31.6 बढ़ोत्तरी के कारण इनकी संख्या में भी 97 से 150 कीट प्रति पौधे की वृद्धि दर्ज की गई।बढ़ी हुई कार्बनडाइऑक्साइड के कारण नर व मादा दोनों कीटों की जीवन क्षमता में कमी पायी गई। एक तरफ भारी संख्या में कीट तो उत्पन्न जाते हैं, लेकिन वे अपेक्षाकृत कम समय तक जीवित रह पाते हैं।
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वैज्ञानिकों के अनुसार, चावल भारत सहित एशिया व विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में मक्का के बाद धान ही सबसे अधिक उत्पन्न होने वाला अनाज है। ऐसे में भविष्य में बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड का प्राकृतिक तौर पर लाभ उठाने के लिए भूरा फुदका जैसे कीटों के नियंत्रण हेतु उचित प्रबंधन की आवश्यकता पड़ेगी। इस दिशा में अभी अध्ययनों की बहुत कमी है।
भविष्य में भूरा फुदका के कारण धान की फसल के लिए खतरे में पड़ सकती है। कम जीवन काल, उच्च प्रजनन क्षमता और शारीरिक संवेदनशीलता के कारण ये कीट परिवर्तित होती जलवायु के अनुसार आसानी से स्वयं को रूपांतरित कर सकते हैं। इसलिए निकट भविष्य में कीटों की रोकथाम, उचित प्रबंधन के लिए बेहद सतर्कता बरतनी होगी।
अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ. गुरु प्रसन्ना पांडी के अलावा सुभाष चंदर, मदन पाल और पी.एस. सौम्या शामिल थे। साभार : इंडिया साइंस वायर
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