उत्तराखंड के किसानों के लिए कृषि सलाह: कम लागत में बढ़िया उत्पादन के लिए खरीफ फसलों की कब और कैसे करें बुवाई

कम लागत में बढ़िया उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक हमेशा अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों की बुवाई की सलाह देते हैं, उत्तराखंड में मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों के हिसाब से बुवाई के समय भी अलग है और किस्में भी अलग विकसित की गई हैं। इसलिए किसानों के लिए जानना जरूरी हो जाता है कि कब और कैसे बुवाई करें।

Update: 2021-06-12 11:47 GMT

उत्तराखंड के पौड़ी जिले के सतपुली में धान की रोपाई की तैयारी करते किसान। फोटो: दिवेंद्र सिंह

उत्तराखंड के कई जिले पहाड़ी क्षेत्रों में हैं तो कुछ मैदानी क्षेत्रों में, यहां पर खरीफ में धान, राजमा, कोदो, मक्का जैसी फसलों की खेती जाती है। दोनों क्षेत्रों के हिसाब से अलग-अलग किस्में विकसित की गईं हैं, इसलिए हमेशा अपने क्षेत्र के हिसाब से विकसित किस्मों का ही चुनाव करें।

उत्तराखंड में मई-जून से खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी शुरू हो जाती है। इसलिए किसानों को बढ़िया उत्पादन के लिए शुरू से कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कम लागत में किसान बढ़िया उत्पादन पा सकें।

धान की खेती

उत्तराखंड के तराई और मैदानी क्षेत्रों के लिए धान की किस्मों जैसे नरेंद्र-359, एचकेआर-47, पीआर-113, पंत धान-10, 12, 19, 26, पंत सुंगधा धान-15, 17, 27, पूसा बासमती 1121, 1509, पंत बासमती 1 व 2 का चयन करना चाहिए। रोपाई का समय जून के आखिरी सप्ताह से लेकर जुलाई का पहला सप्ताह सही होता है।


सिंचित पहाड़ी क्षेत्रों जहां पर सिंचाई का पर्याप्त साधन है, वहां पर धान की किस्मों, वीएल-85, 68, विवेक धान-82, पंत धान- 11 व 12, पूसा बासमती-1509, गोविंद, वीएल-65 की रोपाई जून में कर देनी चाहिए।

मक्का की खेती

उत्तराखंड के कई जिलों में मक्का खेती होती है, यह पशु के चारे के भी काम आ जाती है। तराई और मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए पंत संकुल मक्का-3, स्वेता, बजौरा मक्का-1, विवेक संकुल-19 का चयन कर सकते हैं।

मक्का की संकर किस्मों में एचएम-10, एसक्यूएम-1 व 4, पूसा एचक्यूपीएम-5, पंत संकर मक्का-1 व 4, सरताज, पी-3422 का चयन करना चाहिए। यहां पर बुवाई जून महीने के मध्य से जुलाई मध्य तक कर लेनी चाहिए।


दलहन की खेती

तराई और निचले इलाकों के लिए उड़द की किस्मों जैसे पंत उड़द-19, 31, 34 व 40 की बुवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह से अगस्त के पहले सप्ताह तक कर लेनी चाहिए।

तराई और निचले हिस्सों में मूंग की खेती के लिए पंत मूंग-2, 5, 8 या फिर 9 जैसी किस्मों की बुवाई जुलाई के आखिरी सप्ताह से लेकर अगस्त के दूसरे सप्ताह तक कर लेनी चाहिए।


सब्जियों की खेती

टमाटर की खेती के लिए अर्का रक्षक, पंत टी-3, हिमसोना, नवीन-2000, अभिनव सम्राट, रक्षित गोल्ड जैसी किस्मों की रोपाई पहाड़ों पर अप्रैल से जून तक और मैदानी क्षेत्रों में जून से जुलाई तक करनी चाहिए।

बैंगन की खेती के लिए श्यामली, पंत सम्राट, पंत ऋतुराज, पूसा पर्पल लॉन्ग, पूसा अनमोल, पूसा क्रांति, छाया, पीपीएल-75 की रोपाई पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से जून और मैदानी क्षेत्रों में जून से जुलाई तक कर लेनी चाहिए।

शिमला मिर्च की खेती के लिए कैलिफोर्निया, वंडर, अर्का, गौरव, अर्का मोहिनी, इंद्रा, स्वर्णा, ऐश्वर्या, आशा जैसी किस्मों की रोपाई पहाड़ों पर अप्रैल से जून और मैदानों में जून से जुलाई तक करनी चाहिए।

इन सभी की बुवाई या फिर रोपाई से पहले बीज और रोपण सामग्री को फफूंदनाशक से उपचार जरूर करना चाहिए।

राजमा की खेती

भारत मे राजमा की खेती रबी और खरीफ की फसल की जाती है मैदानी इलाकों में ठंड में और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए खरीफ की खेती है। राजमा के बीज की मात्रा 120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगती है। बीजोपचार 2 से 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा के हिसाब से बीज शोधन करना चाहिए।

राजमा की बुवाई में लाइन से लाइन क दूरी 30 से 40 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखते हैं, जबकि इसकी बुवाई 5 से 6 सेमी गहराई में करनी चाहिए।

साभार: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की किसानों के लिए खरीफ फसलों की सलाह 

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