काजू के पेड़ों को चक्रवाती तूफान और कीटों के प्रकोप से बचा सकती है महिला किसान की अनूठी तकनीक

महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल जैसे कई राज्यों में छोटे किसानों की आमदनी का जरिया काजू की खेती भी है, लेकिन समुद्री तूफान और बोरर जैसे कीटों से नुकसान भी उठाना पड़ता है। लेकिन केरल की अनियम्मा बेबी की नई तकनीक किसानों को नुकसान से बचा सकती है।

Update: 2021-10-27 08:58 GMT

काजू के पेड़ की डाली से विकसित नए पेड़ को दिखाती अनियम्मा बेबी। सभी फोटो: अरेंजमेंट

काजू की खेती करने वाले किसानों को चक्रवाती तूफानों या फिर तना व जड़ छेदक कीटों से नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा, इसके लिए लोगों को बस किसान अनियम्मा बेबी की यह तकनीक को अपनाना होगा।

केरल के कन्नूर जिले की पय्यूर गाँव की 55 वर्षीय महिला किसान अनियम्मा बेबी के पास कई सारे काजू के पेड़ हैं। इन्होंने काजू के पुराने बगीचे में लगे पेड़ों की जड़ों कीटों से नुकसान और उस क्षेत्र में बार-बार आने वाले चक्रवाती समुद्री तूफानों से बचाने के लिए उन्होंने नई तकनीक विकसित कर ली है।

इस तकनीक में काजू के पेड़ों की शाखाओं से नई जड़ें विकसित कर ली जाती हैं, जिससे एक नया पेड़ तैयार हो जाता है, इसके साथ ही तेज हवाओं से होने वाले नुकसान / चक्रवाती समुद्री तूफानों के खिलाफ मजबूती भी मिलती है और नए पेड़ों को फिर से लगाए जाने के बजाए उन्हीं पेड़ों से नए पेड़ तैयार हो जाते हैं।


अनियम्मा बेबी के पति बेबी जैकब बताते हैं, "हमारे यहां बहुत से लोगों के काजू के पेड़ हैं, कीटों की वजह से बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। 2004 की बात है काजू तोड़ते समय अनियम्मा ने देखा की पेड़ की एक डाल जो मिट्टी के पास झुकी हुई है, उसमें नई जड़े निकल आयी हैं, यही नहीं वो ज्यादा तेजी से भी बढ़ रही थी।"

वो आगे कहते हैं, "अगले साल स्टेम बोरर ने पुराने पेड़ को बर्बाद कर दिया, लेकिन नया पेड़ पूरी तरह से ठीक था। बस यही से उसको यह आइडिया मिला।"

अनियम्मा ने मूल पौधे से नए पौधों की जड़ें निकलने और उनके विकास देखकर, उन्होंने नीचे की डालियों पर गमलों में डाली जाने वाली मिट्टी को लगाकर उसे सुपारी के खोखले तने से लपेट दिया। साथ ही जमीन को छू रहीं शाखाओं पर वजन डालकर उन्हें जमने के लिए मिट्टी से ढक दिया। उनके दोनों प्रयोग सफल रहे और वह इन दो विधियों का उपयोग अपने काजू के पुराने हो चुके बागानों में पिछले कई वर्षों से कर रही हैं।

भारत के महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक जैसे राज्यों में खेती का क्षेत्रफल लगभग 10.11 लाख हेक्टेयर है। यहां कुल वार्षिक उत्पादन लगभग 7.53 लाख टन है और कई किसान अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं। क्योंकि यह ज्यादातर समुद्र तटीय राज्यों में होता है तो सबसे ज्यादा चक्रवाती तूफानों से भी नुकसान होता है।


अनियम्मा की इस तकनीक में राष्ट्रीय प्रवर्तन संस्थान (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन) ने काफी मदद की। एनआईएफ ने पुराने पेड़ों को फिर से तैयार करने की मल्टीपल रूटिंग प्रौद्योगिकी को आगे आईसीएआर- काजू अनुसंधान निदेशालय, पुत्तूर और केरल कृषि विश्वविद्यालय तक पहुंचाने में मदद की, जहां पर इसे 2020 में सत्यापित किया गया है।

यह पाया गया है कि यह तकनीक बहुत मजबूत और हवा से होने वाले नुकसान / चक्रवाती समुद्री तूफान के खिलाफ मजबूती भी प्रदान करती है और इसके साथ-साथ काजू के पेड़ों को काजू के तने और जड़ बेधक कीटों के गंभीर हमले से बचाने के साथ ही उन्हें पर्यावरण के बहुत ही अनुकूल और लागत प्रभावी तरीके से पुनर्स्थापित भी करती है।

अनियम्मा के पास पहले 50 के करीब पेड़ थे, जिनसे नए पेड़ तैयार होकर अब 100 से अधिक पेड़ हो गए हैं।


काजू के पेड़ों को चक्रवाती तूफान और कीटों के प्रकोप से बचा सकती केरल की महिला किसान की अनूठी तकनीकनेशनल इनोवेशन फाउंडेशन की नेशनल इनोवेशन क्वार्डिनेटर (एग्रीकल्चर) डॉ स्मिता कौल शर्मा बताती हैं, "काजू किसान साइक्लोन और बोरर के अटैक से परेशान रहते हैं, अगर आपका 5-6 साल पुराना पेड़ जो फल दे रहा है और वो साइक्लोन या फिर बोरर की वजह से खत्म हो जाए तो एक गरीब किसान के लिए बहुत मुश्किल होती है। क्योंकि किसान बार-बार पेड़ नहीं लगा सकता है।"

वो आगे कहती हैं, "अनियम्मा ने दो तरह की तकनीक अपनायी है, एक तो सुपारी के तने को लिया उसमें मिट्टी भर डालकर पेड़ की ब्रांच में लपेट दिया और दूसरा तो ब्रांच मिट्टी के पास थीं, उन्हें पत्थरों से मिट्टी में दबा दिया, देखा कि इनसे नए पौधे तैयार हो गए हैं। इसके कई फायदें हुए हैं, पुराने पेड़ पर स्टेम बोरर को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन नए पेड़ को यह नुकसान नहीं पहुंचाते है। क्योंकि पुराने पेड़ों पर स्टेम या फिर रुट बोरर ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। नए पेड़ को यह नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। साथ ही अगर पेड़ को कई तरफ से सपोर्ट मिलता है तो साइक्लोन का भी इस पर असर नहीं पड़ता है।"

आईसीएआर- काजू अनुसंधान निदेशालय, पुत्तूर, कर्नाटक ने भी अनियम्मा बेबी की इस तकनीक को आगे बढ़ाने जा रही है। 

Similar News