‘परंपरागत कृषि की ओर रुख करें किसान’

Update: 2017-01-01 19:17 GMT
परंपरागत कृषि की ओर रुख करें किसान।

डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव

कृषि विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र, कटिया, सीतापुर

आज बदलते परिवेश व प्रतिस्पर्धा के युग में हमारे किसानों के समक्ष बहुत सारी चुनौतियां हैं जिनसे हमारा किसान स्वयं संघर्ष कर रहा है किन्तु समस्या चाहे कितनी भी गम्भीर न हो उसका उपाय जरूर होता है। जरूरत है हमें सारगर्भित अध्ययन, चिन्तन व मनन की।

किसानों की सबसे बड़ी समस्या है, उनकी लागत में वृद्धि एवं उपज का सही मूल्य न मिल पाना यानी आमदनी में कमी। इसके अलग-अलग पहलुओं से अनेकानेक कारण हैं, लेकिन मेरा मानना है कि इस समस्या का प्रमुख कारण खेती में प्रयोग होने वाले समस्त चीजों का किसानों द्वारा दूसरों पर आत्मनिर्भर हो जाना है। उदाहरणतः पूर्व काल में बीज, खाद, दवा, यन्त्र, स्वतः श्रम में किसानों का स्वयं नियन्त्रण रखना अर्थात बीज स्वतः सुरक्षित रखना, खाद के लिए गोबर की खाद, केंचुआ खाद, हरी खाद, नाडेप कम्पोस्ट, सींग की खाद इत्यादि का उपयोग किया जाता था। वहीं कीट व बीमारियों से बचने के लिए दवाओं में नीम, करन्ज, शरीफा, धतूरा, मदार, लहसुन, हींग, गोमूत्र, मट्ठा इत्यादि का प्रयोग होता था। यन्त्रों में देशी बैल, सिंचाई के लिए रहट एवं लेबर व्यय कम करने के लिए स्वयं का श्रम लेकिन आज के दौर में किसान बीज, खाद, दवा, यन्त्र एवं लेबर हेतु मार्केट पर निर्भर हो गया है। यानी किसान की कमान मार्केट के हाथों में है जबकि मार्केट की कमान किसान के हाथों से कोसों दूर है।

हमारी कृषि अब दूसरों के अधीन हो चली है। अब मार्केट में बैठा व्यक्ति जैसा चाहेगा वह मनमाना दाम किसान से वसूल रहा है, क्योंकि हम उस पर निर्भर हैं। यदि कोई कम्पनी कोई सामान तैयार करती है तो वह उसका मूल्य भी तय करती है लेकिन किसानों के सन्दर्भ मे ऐसा नहीं है। सीधे शब्दों में यह कहें कि आज छोटे किसान लाचार, असहाय होकर मूकदर्शक हो गए हैं। मार्केट इसलिए होती है कि हम जिन चीजों को बना नहीं सकते, उसे खरीदने के लिए हम मार्केट जाए तो बात समझ में आती है। उदाहरण के तौर पर बल्ब, मोबाइल, टीवी, मशीन वगैरह। किन्तु चिन्ता इस बात की है कि कृषि में लगने वाली ऐसी कोई भी चीज नहीं है जिसे किसान स्वयं न बना सके, जरूरत है सिर्फ जानकारी की एवं दृढ़ निश्चय की।

बीज कृषि की कुंजी है

बीज कृषि की कुंजी है। बीज नहीं तो कुछ भी नहीं। चाहे हम कितने ही संसाधन क्यों न रख लें लेकिन हमारे पास स्वयं का बीज नहीं तो हमें गुलामी से कोई नहीं बचा सकता अर्थात देश में दूसरी हरित क्रान्ति तभी आ सकती है जब हमारे छोटे-छोटे किसानों के पास अपना उन्नत बीज हो जिसे वह स्वयं तैयार कर सके। देश में एक ऐसे अभियान की जरूरत है कि जैसे हर व्यक्ति का अपना बैंक खाता अनिवार्य है ठीक उसी प्रकार हर किसान के पास चाहे वो जो भी फसल लेना चाहे, उसका फाउण्डेशन बीज उसे आसानी से उपलब्ध हो सके।

गुणवत्तायुक्त उपज की आवश्यकता

हरित क्रान्ति के समय जब देश में अधिक अन्न की आवश्यकता पड़ी तो हाईब्रिड प्रजातियों एवं रासायनिक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के प्रयोग से हमें सफलता मिली लेकिन आज हम खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हैं। अब हमें गुणवत्तायुक्त उपज की आवश्यकता है। हाईब्रिड बीजों से जहां हम कम जमीन से अधिक उपज प्राप्त करते हैं, वहीं दूसरी ओर हमें पौष्टिक गुणवत्तायुक्त व स्थानीय वातावरण को सहन करने वाली प्रजातियों के प्रयोगों पर जोर देना होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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