लखनऊ की लड़कियों का मुख्यमंत्री के नाम ख़त

Update: 2016-03-18 05:30 GMT
Gaon Connection

आदरणीय मुख्यमंत्री जी,

लखनऊ में हर रोज़ लड़के स्कूटी पर घर से आती-जाती लड़कियों को छेड़ते हैं, पीछा करते हैं। हाल के महीनों में कुछ ज्यादा ही हिम्मतवाले हो गए लगते हैं। मैं तो नहीं, लेकिन हम में से कई इसे अपनी नियति समझ लेती हैं। हम जानती हैं कि हम 1090 पर या पुलिस कण्ट्रोल रूम फ़ोन कर सकती हैं। लेकिन गाड़ी चलाते-चलाते मोबाइल नहीं निकाल पातीं, पुलिस को फ़ोन नहीं कर पातीं हैं, उनकी फोटो नहीं खींच पातीं। अगर पुलिस पेट्रोलिंग बढ़ाए और कैमरे ज्यादा सजग हों, हम सुरक्षित महसूस करेंगी। 

ऐसा आये दिन होता है। कल की ही घटना ले लीजिये। मैं अपनी एक दोस्त के साथ गोमती नगर स्थित ऑफिस से रोजाना की तरह स्कूटी से रात 8:45 पर घर जा रही थी। 1090 चौराहे पर चार युवक, जो दो मोटरसाइकिलों पर सवार थे, स्कूटी के दोनों तरफ एक-एक बाइक लगाकर कमेंट करने लगे। मेरी दोस्त अलीगंज में रहती है, मुझे उसे घर छोड़ना था। जब मैं स्कूटी धीरे करती वो भी अपनी बाइक धीरे कर देते। हम लोग डरे हुए थे, बालू अड्डे पर सोचा कि आगे दैनिक जागरण चौराहे पर पुलिस मिलेगी, पर वहां कोई नहीं था। पीछा छुड़ाने के लिए रास्ता बदल लिया पर वो भी पीछे आने लगे। दैनिक जागरण चौराहे से होते हुए लगभग पाँच बड़े चौराहे से होकर गुजरे, इस उम्मीद में कि पुलिस मिलेगी, पर ऐसा नहीं हुआ। 

मेरी दोस्त हॅास्टल में रहती है. उसके हॅास्टल के सामने तक लड़को ने पीछा किया। मैं भी हॉस्टल के अन्दर चली गई जिससे लड़कों को लगे ये मेरा घर है। थोड़ी देर तक अन्दर खड़े रहे कि वो लोग चले जाएं। फिर मैं अपने घर को निकली और चौराहे नम्बर आठ पर से होते हुए डालीगंज से अपने घर गई जहां पर भी पुलिस नहीं थी। मैं और मेरी दोस्त गोमतीनगर से त्रिवेणी नगर तक हर चौराहे पर पुलिस को तलाशती रही लेकिन कहीं भी पुलिस का कोई जवान नहीं दिखा। ये घटना और भी लड़कियों के साथ होती है जो देर रात तक काम करती हैं, और छेड़खानी का शिकार होती है। इनमें से एक प्रीति है। प्रीति अवस्थी 24 वर्ष साॅफ्टवेयर इंजीनियर हैं। एक दिन मैं दैनिक जागरण चौराहे के पास खड़े बस का इंतजार कर रही थी वहां पर एक आदमी, जिसकी उम्र लगभग 50 साल की थी, वो खड़ा हो गया और अभद्र भाषा में बात करने लगा। मैं वहां से चलने लगी तो पीछा करने लगा। थोड़ी देर में ऑटो से जीपीओ तक गई, उसके बाद चौक की टैक्सी तक पैदल जाना था, वो रास्ता जहां 9 बजे के आस पास सन्नाटा छा जाता है।  सोचा यहां पुलिस होगी पर ऐसा कुछ नहीं था। चौराहे पर पास शराब की दुकान थी तो बहुत डर लग रहा था, पुलिस के न होने से बहुत डर लग रहा था।

उम्मीद है कि लखनऊ की लड़कियों की ओर से लिखे गए ख़त के बाद हम लड़कियों को सड़कों पर अधिक पुलिस गश्त देख कर आश्वासन मिलेगा।

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