एक लड़की को देखा तो..., कुछ न कहो..., 1994 में रिलीज हुई निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 1942- अ लव स्टोरी में आखिरी बार संगीतकार आरडी बर्मन ने संगीत दिया था। इस फिल्म का संगीत काफी हिट हुआ था लेकिन अपनी आखिरी कामयाबी देखे बिना ही 'पंचम दा' चार जनवरी 1994 को दुनिया को अलविदा कह गए। फिर भी बर्मन साहब के निधन के 22 साल बाद भी उनके गाने सुनने में उतने ही ताज़ा लगते हैं।
महान संगीतकार एसडी बर्मन बेटे राहुल देव बर्मन के बारे में ऐसा कहा जाता था कि बचपन में जब वह रोते थे तो संगीत के पांचवे सुर 'पा' की आवाज सुनाई देती थी। उन दिनों उस बच्चे को देखने बॉलीवुड की कई हस्तियां भी एसडी बर्मन साहब के घर आती थीं। ऐसे में एक दिन अभिनेता अशोक कुमार ने उस बच्चे को देखा और उसकी रोने की आवाज सुनकर उसका पंचम रख दिया। और इस तरह हिंदी सिनेमा के हरदिल अजीज संगीतकार राहुल देव बर्मन का नाम पंचम दा पड़ा। जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें-
बताते हैं कि नौ साल की उम्र में ही आरडी बर्मन ने पहला संगीत तैयार किया था। यह गीत था 'ऐ मेरी टोपी पलट के आ', जिसे फिल्म 'फंटूश' में उनके पिता ने इस्तेमाल किया। इसके अलावा उनकी बनाई धुन 'सर जो तेरा चकराए' भी गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' के लिए इस्तेमाल की गई।
पंचम दा के माउथ आरगन से प्रभावित हुए थे महमूद
बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरुआत वर्ष 1961 में महमूद की निर्मित फिल्म 'छोटे नवाब' से की लेकिन इस फिल्म के जरिए वे कुछ खास पहचान नहीं बना पाए। फिल्म 'छोटे नवाब' में आरडी बर्मन के काम करने का किस्सा काफी दिलचस्प है।
फिल्म छोटे नवाब के लिए महमूद बतौर संगीतकार एसडी बर्मन को लेना चाहते थे लेकिन उनकी एसडी बर्मन से कोई खास जान-पहचान नहीं थी। आरडी बर्मन चूंकि एसडी बर्मन के पुत्र थे, इसलिए महमूद ने निश्चय किया कि वे इस बारे में आरडी बर्मन से बात करेंगे। एक दिन महमूद आरडी बर्मन को अपनी कार मे बैठाकर घुमाने निकल गए। रास्ते में सफर अच्छा बीते इसलिए आरडी बर्मन अपना माउथ आरगन निकालकर बजाने लगे। उनके धुन बनाने के अंदाज से महमूद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने फिल्म में एसडी बर्मन को काम देने का इरादा त्याग दिया और अपनी फिल्म 'छोटे नवाब' में काम करने का मौका दे दिया।
एक गाने के लिए आधी भरी बोतल के सिरे पर फूंक मारकर निकाली थी आवाज़
संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके एक नई धुन तैयार करते थे। हालांकि इसके लिए उनकी काफी आलोचना भी होती थी लेकिन इसके बावजूद उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी एक अहम जगह बनाई। राहुल देव बर्मन बारिश की टप-टप या गाड़ी का हॉर्न सबमें संगीत खोज लेते थे।
फ़िल्म 'जागीर' के गाने 'सबको सलाम करते हैं' के शुरुआती बीस सेंकेंड में किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं किया गया है बल्कि मुंह से आवाज़ निकाली गई है। आज के दौर के 'बीट बॉक्सिंग' कहे जानी वाली इस कला का प्रयोग तीस साल पहले ही आरडी ने किया था। गिलासों के टकराने की आवाज़ सुनाई देने पर बरबस ही फिल्म 'यादों की बारात' का 'चुरा लिया है तुमने' याद आ जाता है। 'शोले' फिल्म का गाना 'महबूबा-महबूबा' और देवानंद की फिल्म 'वारंट' का गाना 'रुक जाना ओ जाना' में उन्होंने आधी भरी बोतल के सिरे पर फूंक कर निकाली आवाज़ का प्रयोग किया है।
कुछ यादगार गीत
बर्मन के संगीत से सजे कुछ सदाबहार गीत हैं-
- 'ओ मेरे सोना रे सोना रे' व 'आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा' (तीसरी मंजिल)
- मेरे सामने वाली खिड़की में (पड़ोसन)
- 'ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए' व "प्यार दीवाना होता है मस्ताना होता है' (कटी पतंग)
- आज उनसे पहली मुलाकात होगी (पराया धन)
- चिंगारी कोई भड़के (अमर प्रेम)
- पिया तू अब तो आजा (कारवां)
- दम मारो दम (हरे रामा हरे कृष्णा),
- आओ ना गले लगा लो ना (मेरे जीवन साथी),
- मुसाफिर हूं यारों (परिचय)
- चुरा लिया है तूने जो दिल को (यादों की बारात)
- जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम (आप की कसम)
- तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा (आंधी)
- मेरा कुछ सामान (इज़ाजत)
- पल-पल दिल के पास (ब्लैकमैल)
- एक लड़की को देखा (1942- अ लवस्टोरी)
आखिरी समय में नहीं मिल रही थीं फिल्में
हर कलाकार के जीवन में उतार-चढ़ाव का वक्त आता है। आरडी बर्मन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 80 के दशक में कुछ नाकामयाबी हाथ लगने के बाद आर डी बर्मन को फिल्में नहीं मिल रहीं थीं। काफी लंबे समय बाद 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म '1942 अ लव स्टोरी' में संगीत देने का मौका मिला।