हम ‘आक्रमणकारियों के वंशज’ हैं लेकिन हम में भी देश का खून है: नसीरुद्दीन शाह

Update: 2017-06-02 14:00 GMT
अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में नसीरुद्दीन ने लिखा कॉलम

लख‍नऊ। भारत में मुस्लिमों की स्थिति के बारे में एक्टर नसीरुद्दीन शाह कहते हैं कि मुस्लिमों के लिए जरूरी है कि वे इस सोच से बाहर आएं कि उन्हें सताया जा रहा है और वे पीड़ित हैं। साथ ही ये उम्मीद करना भी छोड़ना होगा कि कोई और आपके उद्धार के लिए आएगा, आपके चीजें खुद अपने हाथ में लेनी होंगी और अपने भारतीय होने पर गर्व करना चाहिए।

नसीरुद्दीन शाह ने एक अंग्रेजी अखबार में देश में मुस्लिमों की स्थिति पर आर्टिकल लिखा है।

वह लिखते हैं कि देशभक्ति कोई गला घोंटकर पिलाने वाली चीज नहीं है लेकिन जब तक लोग हमारे समुदाय में आधुनिक शिक्षा और रोजगार उपलब्धता पर बात करने के बजाय सानिया मिर्जा की स्कर्ट की लंबाई पर ज्यादा आक्रमक होते रहेंगे तब तक बदलाव आने की संभावना कम है।

हम मुस्लिम आईएसआईएस के पागलपन में कोई प्रतिक्रिया में संकोच करते हैं। (ठीक उसी तरह जिस तरह हमने भी कई हिंदुओं को गौरक्षकों द्वारा मुस्लिम की जान लिए जाने पर प्रतिक्रिया देते नहीं सुना)

नसीर ने कहा कि भगवा ब्रिगेड वालों की अब तक ये विचारधारा है कि जिन सैकड़ों साल पहले लूटपाट करने आए आक्रमणकरी मुसलमान शासकों ने देश को नुकसान पहुंचाया है हम उन्हीं के वंशज हैं और अब वे भारतीय मुसलमानों को दूसरा दर्जा देकर उन्हें सजा देने का मन बना रहे हैं। हमें बार-बार पाकिस्तान से संबंधित बताया जाता है। हां, हम ‘आक्रमणकारियों के वंशज’ हैं, हालांकि हम में भी स्वदेशी खून है।

मुझे कभी सलाह दी गई थी कि जो मामला तुमसे संबंधित न हो उसमें अपनी नाक मत घुसाओ। हम भारत- पाकिस्तान के मैच में प्रतिक्रिया नहीं दे सकते वरना हमें पाकिस्तान का संबंधित मान लिया जाएगा।

नसीरुद्दीन मेसेज देते हुए लिखते हैं कि मुस्लिम और हिंदू दोनों को खुद के लिए बोलने को आगे आना चाहिए और ऐसे संकीर्ण विचारधारा वाले लोगों से दूर रहना चाहिए जो योग और सूर्य नमस्कार को इस्लाम निषेध, व योग- नमाज़ को एक जैसा बताने पर हल्ला मचाए।

वह आगे लिखते हैं कि आज जहां एक ओर भगवा स्कार्फ और तिलक बढ़ते जा रहे हैं वहीं दाढ़ी, हिजाब और टोपियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जबकि आज से करीब दस साल पहले हिंदु और मुसलमानो में अंतर देखने का मामला सामने नहीं आता था।

मैं मुस्लिम पहचान से वाकिफ नहीं हूं

शाह ने कहा कि किसी नवजात मुसलमान बच्चे के कान में जो पहली आवाज जाती है वो या तो अजान की होती है या फिर कलमे की। मेरे कानों में कौन सी आवाज गई थी ये भी मुझे याद नहीं है। मैं तो इस्लाम को अब फॉलो भी नहीं करता, और न ही मुस्लिम की पहचान से वाकिफ हूं। मेरे घर में किसी ने भी लंबी दाढ़ी नहीं रखी है, हमारा परिवार किसी धर्म के बंधन से नहीं बंधा है। हम ईद और दिवाली दोनों ही भारतीय त्योहार की तरह मनाते है। मेरी पत्नी रत्ना हिंदू है लेकिन जब हमने शादी की तो लव जिहाद जैसा कोई शब्दावली ईजाद नहीं हुई थी।

स्कूल के एडमीशन फॉर्म में नहीं भरा ‘धर्म’ वाला कॉलम

हमारे लिए पहला पेचीदा पल वह था जब हमने तय किया कि अपने बच्चों के एडमिशन के लिए हम फॉर्म में रिलीजन (धर्म) वाले कॉलम में कुछ नहीं लिखेंगे। जब प्रिसिंपल ने इस पर आपत्ति जताई तो हमने कहा कि हमें वाकई नहीं पता है कि हम किस धर्म से हैं और किस धर्म से भविष्य में ताल्लुक रखेंगे।

वह आगे लिखते हैं कि जब मैंने और रत्ना ने शादी करने का फैसला लिया, तब हमने धर्म और सामाजिक बंधनों के पूर्वानुमानों पर चर्चा की थी लेकिन पिछले कुछ वर्षों से माहौल को देखते हुए हमें ऐसा लगने लगा है कि किसी दिन हमारे बच्चों को भीड़ घेरकर पूछेगी कि बताओ उनका धर्म क्या है?

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