ज़ोहरा सहगल जिसने अपनी ज़िंदगी के आठ दशक नृत्य को किए समर्पित

कांस फिल्म फेस्टिवल में 29 सितम्बर को ज़ोहरा सहगल की फिल्म नीचा नगर रिलीज हुई थी, जिसे अवार्ड भी मिला था।

Update: 2019-07-10 05:47 GMT

लखनऊ। ज़ोहरा सहगल, एक ऐसा नाम जो आज ही नहीं कई पीढ़ी के दर्शकों के लिए हमेशा प्रेरणा रहेंगी। फिल्मों के साथ-साथ ही रंगमंच में भी उन्होंने अलग पहचान बनायी। ये उनके प्रशंसकों की दुआओं का असर था कि उन्हें सचमुच लंबी उम्र मिल गई और 102 साल तक उन्होंने शान के साथ ज़िंदगी को जिया। 10 जुलाई 2014 को उनकी मृत्यु हो गई थी। 

जिंदगी के अस्सी साल कला के योगदान में

ज़ोहरा सहगल का जन्म सन 27 अप्रैल 1912 को यूपी के सहारनपुर में रुढ़िवादी सुन्नी परिवार में हुआ था। उनका असली नाम मुमताजउल्ला था। उनका परिवार सहारनपुर के शाही घरानों में से एक था। खेलना-कूदना और धूम मचाना उन्हें पसंद था। बचपन में ही अपने चाचा के साथ भारत, एशिया और यूरोप की सैर करी । लौटने पर उन्हें लाहौर के क्वीन मैरी कॉलेज में दाखिल करा दिया गया। उसके बाद 1935 में नृत्य गुरु उदय शंकर के नृत्य समूह से जुड़ गईं और कई देशों की यात्रा की। आठ साल तक वह उनसे जुड़ी रहीं। वहीं ज़ोहरा की अपने पति कामेश्वर नाथ सहगल से मुलाकात हुईं। वे उनसे आठ साल छोटे थे। कामेश्वर इंदौर के युवा वैज्ञानिक, चित्रकार और नृतक थे।


जब लड़कियां आजाद होकर कहीं बाहर जाने की सोच भी नहीं सकती थीं, उस समय वह लंदन के लिए निकलीं और वहीं से होते हुए जर्मनी के ड्रेसडेन में एक मशहूर बैले स्कूल में आधुनिक नृत्य का प्रशिक्षण लेने जा पहुंची। ज़ोहरा ने 1935 में उदय शंकर के साथ बतौर नृत्यांगना करियर की शुरुआत की। ज़ोहरा सहगल ने अपनी जिंदगी के 80 साल तो नृत्य, थियेटर और अदाकारी में खपा दिए।

पृथ्वी थियेटर के साथ ही इप्टा से भी जुड़ी रहीं

अभिनय में नए आसमान की तलाश में ज़ोहरा को गुरू के रूप में पृथ्वीराज कपूर मिल गए। पृथ्वी थियेटर से जुड़कर ज़ोहरा का नया अवतार हुआ। नृत्य के संसार से वो अभिनय के संसार में दाखिल हुईं जहां कहा जाता था कि पृथ्वीराज जैसा सिखाने वाला हो तो दुनिया जहान का सबकुछ समझ आ जाता है। पृथ्वी थियेटर के अलावा ज़ोहरा रंगमंच के प्रगतिशील आंदोलन इप्टा से भी जुड़ीं।


इप्टा की मदद से बनी चेतन आनंद की ऐतिहासिक फिल्म "नीचा नगर" में अभिनय भी किया। कान फिल्म-महोत्सव का पुरस्कार जीतकर अंतरराष्ट्रीय सिनेमंच पर पहचान पाने वाली ये पहली भारतीय फिल्म थी। ज़ोहरा ने अब्बास की फिल्म 'धरती के लाल' (1946), अफसर (1950) और हीर (1956) में अभिनय किया था। उन्होंने 'हम दिल दे चुके सनम', 'दिल से' और 'चीनी कम' जैसी चर्चित फिल्मों में अभिनय किया।

गुरुदत्त की बाजी और राजकपूर की फिल्म आवारा में उनकी कोरियोग्राफी भी थी लेकिन ज़ोहरा का पहला प्यार रंगमंच था। वह चरित्र कलाकार के तौर पर कई हिंदी फिल्मों में नजर आईं। उन्होंने अंग्रेजी भाषा की फिल्मों, टेलीविजन और रंगमंच के जरिए भी अपने अभिनय की छाप छोड़ी। वह आखिरी बार संजय लीला भंसाली की फिल्म 'सांवरिया' में साल 2007 में नजर आईं। उन्हें 2010 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया था। भारतीय सिनेमा जगत में 'लाडली' के नाम से चर्चित ज़ोहरा कई फिल्मों का हिस्सा रहीं।

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