समय के साथ साथ होली में गाया जाने वाला फाग होता जा रहा विलुप्त 

Update: 2017-03-14 16:06 GMT

लखनऊ। एक समय था, जब होली के दस दिन पहले से ही गाँवों में फाग गाने वाली मंडलियां दिखाई देने लगती, जगह-जगह पर लोक कलाकारों के कार्यक्रम होते, लेकिन अब डीजे के चलन के चलते सब कम हो गए।

मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि के दिन से ही होली की शुरुआत मानी जाती थी और इसी के साथ होली की मस्ती शुरू हो जाती थी, गाँवों में फागुनी गीत गाए जाते थे जो होली के बाद तक चलते थे।

लखनऊ की रहने वाली लोक गायिका संजोली पांडेय बताती हैं, "पहले गाँव में होली के पंद्रह दिन पहले से टोलियां बननी शुरू हो जाती थी, मेरा गाँव फैजाबाद जिले के मया ब्लॉक के रामापुर में है, हर जाति के लोग चौपाल में इकट्ठा होते, कई जाति धर्म के लोग एक साथ होते थे। महबूब चाचा मजीरा बजाते थे।"

वो आगे कहती हैं, "अब तो गाँव में भी ये सब कम हो गया है, फगुआ, डेढ़ ताल, चौताल जैसी कई विधाएं होली में गाई जाती थी, पहले से ही तय हो जाता था कि कितने घंटे किसके यहां प्रोग्राम होगा।"इन गीतों में होली का उल्लास और फागुन की मस्ती के साथ-साथ माटी से जुड़ाव का भाव भी रहता था। इनमें फाग, धमार, चौताल, कबीरा, जोगीरा, उलारा व बेलार जैसे गीत शामिल होते थे। इस अवसर पर गाए जाने वाले धमार के बोल 'एक नींद सोये दा बलमुआ आंख भईल बा लाल फागुनी' मस्ती से सराबोर करने के लिए काफी थे।

इसी तरह से फाग के गीत 'बमबम बोले बाबा कहवा रंगवयला पगरिया' और 'उलारा कजरा मारै नजरा घूमई बजरा दुल्हानिहा' भी माटी का एहसास कराते थे। बिहार के सिवान जिले की भोजपुरी गायिका चंदन तिवारी बताती हैं, "हमारे यहां आज भी फाग गाए जाते हैं, लेकिन अब की नई पीढ़ी इन गीतों को नहीं पसंद करती है, अब तो लोग डीजे बजाकर उधम मचाते हैं। कुछ ऐसे भी गाँव हैं, जहां लोग अपनी परंपराओं को कायम रखें हैं।"

पहले होली और सावन में तो लोक गायकों को फुर्सत नहीं होती थी। इनको हर समय तैयारी में रहना पड़ता था। समय बदलता गया और अब रीमिक्स के जमाने में चौताल, डेढ़ ताल गाने वाले गायक कम ही बचे हैं।

हमारे यहां आज भी फाग गाए जाते हैं, लेकिन अब की नई पीढ़ी इन गीतों को नहीं पसंद करती है, अब तो लोग डीजे बजाकर उधम मचाते हैं। कुछ ऐसे भी गाँव हैं, जहां लोग अपनी परंपराओं को कायम रखें हैं। 
चंदन तिवारी, भोजपुरी गायिका 

क्या है फाग

फाग होली के अवसर पर गाया जाने वाला एक लोकगीत है। यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश का लोक गीत है पर समीपवर्ती प्रदेशों में भी इसको गाया जाता है। सामान्य रूप से फाग में होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और राधाकृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है। इन्हें शास्त्रीय संगीत तथा उपशास्त्रीय संगीत के रूप में भी गाया जाता है।

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