लखनऊ। केरल की ख्याति अपने 300 साल पुराने शास्त्रीय नृत्य कथकली के लिए दुनियाभर में फैली है। इस नृत्य में बैले, ओपेरा, मास्क और मूकाभिनय की मिश्रित छटा देखी जा सकती है। माना जाता है इसकी उत्पत्ति कूटियट्टम, कृष्णनअट्टम और कलरिप्पयट्टु जैसी अभिनय कलाओं से हुई है। कथकली में भारतीय महाकाव्य और पुराणों के आख्यानों और कथाओं का प्रदर्शन किया जाता है। धरती पर सांझ उतरने के बाद मंदिर के प्रांगण में प्रस्तुत किए जाने वाले कथकली की उद्घोषणा केलिकोट्टु अथवा ढोल पीटकर और चेंगिला (गोंग) के वादन के साथ की जाती है। किसी भी अन्य कला रूप में रंगों, भावनाओं, संगीत, अभिनय और नृत्य का ऐसा अद्भुत सम्मिलन देखने को नहीं मिलता।
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कथकली का अर्थ
‘कथकली’का अर्थ है- ‘एक कथा का नाटक’या ‘एक नृत्य नाटिका’।‘कथा’का अर्थ है-‘कहानी’। इस नृत्य में अभिनेता रामायण और महाभारत के महाग्रंथों और पुराणों से लिए गए चरित्रों का अभिनय करते हैं।
कथकली मेक-अप
रंग पुता हुआ चेहरा कॉस्ट्यूम की भव्यता का पूरक होता है। वेशम या मेक-अप को बहुत महत्व दिया जाता है, जो पांच प्रकार के होते हैं- पचा, काठी, थाडी, कारी और मिनुक्कु। कथकली की शोभा और भव्यता में इसकी सज्जा की बड़ी भूमिका होती है जिसके अंग हैं किरीटम या विशाल सिरोभूषण और कंचुकम या बड़े आकार के जैकेट और लंबा स्कर्ट जिसे मोटे गद्दे के ऊपर से पहना जाता है। कलाकार के डील-डौल और शक्ल को पूरी तरह बदलकर सामान्य से बहुत बड़ा अतिमानवीय रूप दिया जाता है।
पोशाक
यह अत्यंत रंग-बिरंगा नृत्य है। इसके नर्तक उभरे हुए परिधानों, फूलदार दुपट्टों, आभूषणों और मुकुट से सजे होते हैं। वे उन विभिन्न भूमिकाओं को चित्रित करने के लिए सांकेतिक रूप से विशिष्ट प्रकार का रूप धरते हैं, जो वैयक्तिक चरित्र के बजाय उस चरित्र के अधिक नज़दीक होते हैं।
कथकली संगीत
कथकली के वाद्यवृन्द में शामिल रहते हैं- दो प्रकार के ढोल - मादलम और चेन्दा; चेंगिला जो बेल-मेटल का घड़ियाल होता है और इलथलम या मजीरा।
कथकली का प्रशिक्षण
कथकली के प्रशिक्षु को बहुत ही श्रमसाध्य प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है जिसके अंग हैं- तेल मालिश, आंख, होठ, गाल, मुख और गरदन के लिए अलग से व्यायाम। नृत्य और गीत के साथ-साथ अभिनय या भावाभिव्यक्ति का सर्वाधिक महत्व है। उच्च कोटि की आह्वानकारी मुखाभिव्यक्ति, मुद्राओं एवं कंठ्य तथा वाद्य संगीत के साथ कथकली प्राचीन युग की कथाओं को शानदार यूनानी नाटकों की अवशिष्ट शैली में प्रदर्शित करता है।
मुद्राओं के जरिए व्यक्त करते हैं भावनाएं
मुद्रा खास अंदाजों वाली सांकेतिक भाषा होती है जिसकी मदद से किसी विचार, परिस्थिति अथवा मनोदशा को अभिव्यक्त किया जाता है। कथकली के कलाकार मुद्राओं की मदद से अपने विचारों और भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं। इसके लिए कलाकार हस्त मुद्रा की भाषा पर रचित ग्रंथ ‘हस्तलक्षण दीपिका’ पर आधारित एक निश्चित सांकेतिक भाषा प्रणाली को व्यवहार में लाते हैं।
कथकली मुद्राएं
कथकली नृत्य कला में 24 मुख्य मुद्राएं होती हैं, जिन्हें हाथों से दर्शाया जाता है। जिनमे कुछ मुद्राएं एक हाथ से और कुछ दोनों हाथों से दर्शाई जाती हैं। कथकली में इन मुद्राओं द्वारा लगभग 470 सांकेतिक चिन्हों को दर्शाया जाता है। जैसे, पर्वत शिखर, तोते की चोंच, हंस के पंख,पताका आदि।
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