ताना ना ताना ना ना ना... कुछ याद आया... फिर शुरू हो रहा है मालगुडी डेज़ सीरियल

Update: 2017-05-13 15:40 GMT
ताना ता ताना ना... कुछ याद आया... मालगुडी डेज फिर आ रहा है।

लखनऊ। अगर आप का जन्म 80-90 के दशक में हुआ है तो आपका बचपन भी टीवी पर मालगुडी डेज़ देखते हुए बीता होगा। एक बार फिर दूरदर्शन पर अपना वही सबसे पसंदीदा सीरियल लेकर लौट रहा है। 27 मई से शाम को दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर आप इसे देखकर अपने बचपन की यादें ताजा कर सकेंगे। साथ ही अगर आपको लगता है, निंजा और, पॉवर एंजिल्स, मोटू पतलू, शिनचैन जैसे कार्टून देखते हुए आपके बच्चे बिगड़ रहे हैं तो आपके लिए भी अच्छी ख़बर है।

दिग्गज उपान्यासकार आरके नारायण की पॉपुलर कहानी मालगुडी डेज पर आधारित यह सीरियल अब फिर से सुनहरे बचपन वाले दिनों की ओर ले जाने वाला है। सीरियल की कहानियां जहां आरके नारायण की लिखी हुई थीं, वहीं इसके रेखाचित्र उनके भाई और महान कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण ने बनाए थे। मालगुडी डेज की वापसी की घोषणा दूरदर्शन ने आरके नारायण की पुण्यतिथि के मौके पर की।

इसका पहला प्रसारण कन्नड़ अभिनेता और निर्देशक शंकर नाग ने 1986 में किया था। इसके बाद दूरदर्शन में इसे दोबारा प्रसारित भी किया गया। मालगुडी डेज में नारायण के स्वामी एंड फ्रेंड्स और वेंडर ऑफ स्वीट्स जैसी लघु कहानियां शामिल की गई थीं। इसे हिंदी के साथ-साथ इंग्लिश में भी बनाया गया था।

स्वामी के किरदार से पॉपुलर हुए थे मंजूनाथ


'मालगुड़ी डेज' के 39 एपिसोड का प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया था। इसके बाद दूरदर्शन पर यह दोबारा भी दिखाया गया और बाद में सोनी टेलीविजन पर भी। इस पूरे टीवी सीरीज को कर्नाटक के शिमोगा जिले में शूट किया गया था। मालगुडी डेज में दिखाई जाने वाली कहानी स्वामी एंड फ्रेंड्स को दर्शकों ने सबसे ज्यादा पसंद किया था। इसका श्रेय स्वामी का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार मंजूनाथ को भी जाता है। इस किरदार के जरिए वे घर-घर में पहचाने जाने लगे थे। इसी लोकप्रियता के चलते मंजूनाथ को फिल्म अग्निपथ में अमिताभ बच्चन के बचपन की भूमिका निभाने का मौका भी मिला था।

कर्नाटक के एक गाँव में हुई थी शूटिंग

मालगुडी डेज की शूटिंग कर्नाटक के शिमोगा जिले के अगुम्बे गाँव में की गई थी। 1980 के दशक के आरम्भ में मालगुडी शहर और उनके पात्रों को जीवित करने का काम एक टाउन प्लानर और आर्ट डायरेक्टर जॉन देवराज को दी गई। देवराज के लिए ये जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि उसको एक काल्पनिक शहर को 180 से ज्यादा परिवार बसाकर सजीव करना था। देवराज ने इस काम को बिल्कुल शून्य से शुरू करना था और उन्होंने इस शहर में मूर्तियां, बैलगाड़ियां , दुकानें , मन्दिर और भवन निर्माण का काम शुरू कर दिया।

नाटक के पात्र और कर्मचारी तीन साल तक गाँव में रहे थे

अगुम्बे गाँव को बनाने में देवराज के काम और शंकर नाग के जूनून का नतीजा था। इस शहर मालगुडी को जीवित बनाने के लिए इस नाटक के पात्र और कर्मचारी तीन साल तक इस गाँव में रहे। इस नाटक में काम करने वाले लोग अगुम्बे के घरों में ही रहने लग गए।

स्वामी एंड फ्रेंड्स में जो घर आपने देखा वो आज भी इस गांव में स्थित है। ये घर 150 साल से भी ज्यादा पुराना है और मालगुडी डेज की शूटिंग का इस मकान के मालिकों ने कोई पैसा नहीं लिया था।

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