आज है मशहूर शायर अनवर जलालपुरी का जन्मदिन, जिसने गीता का उर्दू में किया था अनुवाद 

अनवर साहब ने गीता का उर्दू में भी अनुवाद किया और हिन्दू-मुस्लिम दोनों मजहबों के लिए एक मिसाल पेश कि धर्म साहित्य के बीच कभी नहीं आ सकता।

Update: 2018-07-06 11:35 GMT
शायर अनवर जलालपुरी

लखनऊ। 'मैं जाता हूं मगर आंखों का सपना बन के लौटूंगा, मेरी ख़ातिर कम-अज-कम दिल का दरवाज़ा खुला रखना' जैसी नज्म लिखने वाले मशहूर शायर अनवर जलालपुरी का आज जन्मदिन है।

मुशायरों में अपनी नज्मों से चार चांद लगाने वाले अनवर ब्रेन हेमरेज से हार गए, उनका ऐसा जाना साहित्य जगत के लिए माला से मोती अलग हो जाने की तरह से है, अनवर साहब की लिखी शायरी को चार पीढ़ियों ने गुनगनाया है।

मैं जा रहा हूं मेरा इन्तेज़ार मत करना

मेरे लिये कभी भी दिल सोगवार मत करना

मेरी जुदाई तेरे दिल की आज़माइश है

इस आइने को कभी शर्मसार मत करना

फ़क़ीर बन के मिले इस अहद के रावण

मेरे ख़याल की रेखा को पार मत करना

ज़माने वाले बज़ाहिर तो सबके हैं हमदर्द

ज़माने वालों का तुम ऐतबार मत करना

ख़रीद देना खिलौने तमाम बच्चों को

तुम उन पे मेरा आश्कार मत करना

मैं एक रोज़ बहरहाल लौट आऊँगा

तुम उँगुलियों पे मगर दिन शुमार मत करना

अनवर साहब ने गीता का उर्दू में भी अनुवाद किया और हिन्दू-मुस्लिम दोनों मजहबों के लिए एक मिसाल पेश कि धर्म साहित्य के बीच कभी नहीं आ सकता। जलालपुरी ने 'राहरौ से रहनुमा तक' 'उर्दू शायरी में गीतांजलि' और भगवद्गीता के उर्दू संस्करण 'उर्दू शायरी में गीता' पुस्तकें लिखीं जिन्हें बेहद सराहा गया था। उन्होंने 'अकबर द ग्रेट' धारावाहिक के संवाद भी लिखे थे। उत्तर प्रदेश में अम्बेडकर नगर जिले के जलालपुर कस्बे में पैदा हुए थे।

उससे बिछड़ के दिल का अजब माजरा रहा

हर वक्त उसकी याद रही तज़किरा रहा

चाहत पे उसकी ग़ैर तो ख़ामोश थे मगर

यारों के दर्म्यान बड़ा फ़ासला रहा

मौसम के साथ सारे मनाज़िर बदल गये

लेकिन ये दिल का ज़ख़्म हरा था हरा रहा

लड़कों ने हॉस्टल में फ़क़त नॉवेलें पढ़ीं

दीवान-ए-मीर ताक़ के ऊपर धरा रहा

वो भी तो आज मेरे हरीफ़ों से जा मिले

जिसकी तरफ़ से मुझको बड़ा आसरा रहा

सड़कों पे आके वो भी मक़ासिद में बँट गए

कमरों में जिनके बीच बड़ा मशविरा रहा

उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के सर्वोच्च पुरस्कारों में शामिल यश भारती पुरस्कार से भी नवाजा गया। अनवर जलालपुरी बसपा सरकार में मदरसा बोर्ड के चेयरमैन के पद पर भी रहें।

ख्वाहिश मुझे जीने की ज़ियादा भी नहीं है

वैसे अभी मरने का इरादा भी नहीं है

हर चेहरा किसी नक्श के मानिन्द उभर जाए

ये दिल का वरक़ इतना तो सादा भी नहीं है

वह शख़्स मेरा साथ न दे पाऐगा जिसका

दिल साफ नहीं ज़ेहन कुशादा भी नहीं है

जलता है चरागों में लहू उनकी रगों का

जिस्मों पे कोई जिनके लबादा भी नहीं है

घबरा के नहीं इसलिए मैं लौट पड़ा हूँ

आगे कोई मंज़िल कोई ज्यादा भी नहीं

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