दिवाली वो त्यौहार है जिसपर हिंदी-उर्दू की साझा विरासत वाले कलमकारों ने खूब लिखा। नज़ीर अकबराबादी ने दिवाली पर नज़्म लिखी तो ग़ालिब ने भी अपने ख़तों में दिवाली का ज़िक्र बहुत ही तराशे हुए लफ्ज़ों में किया। गंगा-जमुनी तहज़ीब की ये निशानियां हर दौर में रही हैं। मौजूदा वक्त में भी कई अलग-अलग मिसालें मुल्क के कई हिस्सों में देखने को मिलती है। ऐसा ही एक रंग है राजस्थान के बीकानेर का, जो शायद दिवाली के जश्न का सबसे अनोखा और अनूठा रंग है।
सोलवीं शताब्दी में बने जूनागढ़ क़िले के लिए मशहूर, राजस्थान के बीकानेर में हर साल दिवाली पर रामायण का पाठ होता है। इसमें हिंदू-मुस्लमान सभी शामिल होते हैं और जिस रामायण को पढ़ा जाता है वो उर्दू में होती है। उर्दू की रामायण हर दिवाली में पढ़ने की रवायत साल 1936 से चली आ रही है। क्या है इस रवायत की कहानी आइये वो भी जानते हैं