सत्यजीत रे वो नाम है, जिसने भारतीय सिनेमा को पूरी दुनिया में उस वक्त पहचान दिलाई जब भारतीय भाषाओं की फिल्में वैश्विक पटल पर अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी। वो शख्स जिसके फिल्म क्राफ्ट का लोहा पूरी दुनिया ने माना, भारतीय इतिहास में सत्यजीत रे वो पहले शख़्स थे जिनके लिए ऑस्कर खुद कोलकाता चलकर आया।
सत्यजीत रे का जन्म 2 मई 1921 को कोलकाता में हुआ था, ये ब्रिटिश काल का वो दौर था जब भारत संघर्ष की अंगड़ाई ले रहा था। रे एक ऐसे परिवार में पले बढ़े जिसकी कई पीढ़ियां कला के करीब थी। उनके पिता सुकुमार रे खुद एक पेंटर और लेखक थे। उनके दादा उपेंद्र किशोर रे भी लेखक, समीक्षक, प्रकाशक और साहित्यकार थे। इस माहौल में सत्यजीत ने भी कला को बेहद करीब से देखा और समझा। साल 1948 में जब सत्यजीत रे की उम्र 27 साल की थी, उन्होंने इटालियन डायरेक्टर वितोरियो दे सिका की फिल्म 'बायसिकिल थीव्स' देखी, इस फिल्म ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने तय कर लिया कि वो फिल्म मेकिंग करेंगे।
एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि वो अमरीकी फिल्में बहुत ध्यान से देखते थे। साल 1955 में उनकी पहली फिल्म आई, नाम था - पाथेर पांचाली। इस फिल्म ने 11 इंटरनेशनल अवार्ड जीते थे। जिसमें वैंकूवर में बेस्ट फिल्म, रोम में वेटिकन अवॉर्ड, टोक्यो में बेस्ट फॉरेन फिल्म अवॉर्ड और कान फिल्म फेस्टिवल का बेस्ट ह्यूमन डॉक्यूमेंट अवॉर्ड भी शामिल था।
इस फिल्म के बाद सत्यजीत रे वो नाम हो गया जिसे फिल्म का एक चलता-फिरता संस्थान कहा जाने लगा। इसके बाद आई उनकी कुछ और फिल्मों के बाद उन्हें बीसवीं शताब्दी का सबसे बेहतर फिल्मकार माना जाने लगा। रे के बारे में जापान के महान फिल्मकार अकीरो कुरोसावा ने कहा था
अगर आपने सत्यजीत रे का सिनेमा नहीं देखा तो मतलब है आप सूरज या चांद देखे बगैर दुनिया में रह रहे हैंअकीरो कुरोसावा, जापानी फिल्मकार