'पीएचसी में पैरासिटामोल और थर्मामीटर ही नहीं था'- मुजफ्फरपुर में लोगों को जागरूक कर रहे युवाओं ने बताया

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बदइंतजामी और दवाइयों का था टोटा, बीमारी के लक्षण और बचाव के तरीकों से ग्रामीण थे अनजान

Update: 2019-06-26 12:55 GMT

लखनऊ/मुजफ्फरपुर। " जागरूकता अभियान के दौरान एक दिन एक बच्चे को बहुत तेज बुखार था। मैं अपने दोस्त के साथ उस बच्चे को लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मुस्तफापुर पहुंचा। वहां मुझे कोई डॉक्टर नहीं मिला। पास में एक एएनएम से मैंने बच्चे का बुखार मापने की गुहार की। लेकिन वह आनाकानी करने लगी। जब हम पूछा तो उसने कहा, यहां थर्मामीटर ही नहीं है बुखार कैसे चेक करूं। इसके बाद हम लोगों ने उन्हें  थर्मामीटर मुहैया कराया।" ये कहना है ऋषिकेश कुमार का, जो ग्रामीणों में चमकी बुखार के लिए जागरूकता कार्यक्रम चला रहे थे।

बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास जिलों में संदिग्ध बीमारी से अब तक करीब 130 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी हैं और दर्जनों बच्चे अलग-अलग अस्पतालों में जिंदगी मौत से जंग लड़ रहे हैं। ग्रामीणों में अज्ञानता और जागरुकता की कमी से इस बीमारी ने और विकराल रूप ले लिया। इतनी संख्या में बच्चों की मौतों ने सरकार के इंतेजाम की पोल खोलकर रख दी है।

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यह बात सबको पता है कि मुजफ्फरपुर और आस-पास के कुछ जिलों में मई जून के महीने में चमकी बुखार से बच्चों की मौत होती है। इस हिसाब से देखा जाए तो बिहार सरकार को पहले से ही मुकम्मल तैयारियां करने रखनी चाहिए थी। ग्रामीणों को बीमारी के बारे में जागरूक करना चाहिए था। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इस बीमारी से लड़ने की सभी सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए थी, लेकिन सरकार ने ऐसा कुछ नहीं था। 130 बच्चों के दम तोड़ देने, सोशल मीडिया पर हंगामा मचने के बाद केंद्र और राज्य सरकार नींद से जागी।

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बिहार के मुजफ्फपुर में जिस समय बच्चे चमकी बुखार से दम तोड़ रहे थे। हर तरफ से रोने और चीखने की आवाजें सुनाई दे रही थी। तेज गर्मी और उमस में जब नेता और अफसर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ आराम फरमा रहे थे, उसी समय देश के कोने-कोने से मुजफ्फरपुर पहुंचे कुछ युवा ग्रामीणों को जागरूक कर इस बीमारी से बचने के लिए पसीना बहा रहे थे।


मिथिला स्टूडेंट यूनियन के सदस्य आदित्य मोहन ने बताया, " रोज हम टीवी और अखबार में मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से बच्चों के मरने की खबरें पढ़ और सुन रहे थे। मन बहुत उदास था। कुछ साथियों ने इस विषय पर चर्चा की तो पता चला कि ग्रामीण जागरूक नहीं हैं। इस वजह से उनके बच्चों की मौत हो रही है। करीब आधा दर्जन छात्र मुजफ्फरपुर पहुंच गए। हम लोगों ने सोशल मीडिया पर भी इस बात को अपडेट करते रहे। हम लोगों के पास कुछ पैसे थे और कुछ पैसे अन्य लोगों से मिल गए। इन पैसों से हमने ग्लूकोज, थर्मामीटर, ओआरएस और बिस्किट खरीद लिए। हम लोगों ने आठ टीमें बनाकर युद्ध स्तर पर ग्रामीणों को जागरूक करने निकल पड़े। "

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" हम लोग मीनापुर, कांटी और मुशहरी ब्लॉक के गाँवों में जागरूकता अभियान चलाया, क्योंकि इन्हीं ब्लाक से सबसे ज्यादा बच्चों की मौतें हुई थीं। हमने देखा कि लोगों को इस बीमारी के बारे में कोई जानकारी नहीं है। लक्षण और बचाव के तरीके नहीं पता थे। हम लोगों ने उन्हें इसके बारे में जागरूक किया। उन्हें ग्लूकोज और बिस्किट दिए। हम लोगों ने वहां करीब दस दिनों लोगों को जागरूक किया।"

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ग्रामीणों की मदद करने पटना से मुजफ्फरपुर पहुंचे छात्र सोमू आनंद ने बताया, " बिहार की ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं बहुत बदहाल हैं। अस्पताल में कोई सुविधाएं नहीं हैं। डॉक्टर समय से आते नहीं हैं। दवाइयों का टोटा रहता है। जागरूकता अभियान के दौरान जब हम लोग सीएसची पीएचसी पहुंचते थे वहां के हाल देखकर दंग हो जाते थे। इलाज के नाम पर कुछ दवाओं के अलावा कुछ नहीं था। स्वास्थ्य कर्मचारिेयों का रवैया भी बहुत बुरा रहता था।"

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19 जून को हम लोग कांटी पीएचसी पर गए थे। उस समय वहां पर वैशाली की सांसद बीना देवी आई हुई थीं। हम लोग उनसे अस्पताल में दवाओं की कमी की बात कह रहे थे। उन्होंने अस्पताल के प्रभारी से यह बात पूछी तो उसने सभी दवाइयां होने की बात कही। तभी इत्तेफाक से एक ग्रामीण हाथ में एक पर्चा लिए हम लोगों के पास आया और बताया, भइया यहां कोई दवा नहीं है। डॉक्टर ने बाहर से दवा लाने के लिए लिखा था। हम लोग पर्चा देखकर दंग रह गए कि पैरासीटामॉल जैसी बेसिक दवाइ पीएचसी पर मौजूद नहीं थी। वजन करने की मशीन का टोटा था। " सोमू आनंद ने आगे बताया।    

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