'एक रुपए की मुहिम' से शिक्षा से वंचित सैकड़ों बच्चों की हो रही मदद

Update: 2020-08-27 08:00 GMT

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में वकालत की पढ़ाई कर रही सीमा वर्मा ने 'एक रुपए की मुहिम' शुरू कर सैकड़ों जरुरतमंद बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। ये बच्चों की फीस जमा करती हैं, उन्हें कॉपी-किताब और स्टेशनरी का सामान भी उपलब्ध कराती हैं।

अंबिकापुर में रहने वाली सीमा वर्मा (28 वर्ष) बताती हैं, "इस मुहिम को शुरू करने का उद्देश्य यही है कि हर युवा अपनी जिम्मेदारी समझे, जितना हो सके युवा आगे आयें और इस तरह की पहल करें जिससे वंचित तबके की मदद हो सके। उन्हें भी बराबरी का अधिकार मिल सके। हमारी इस मुहिम अब देश के दूसरे राज्यों के लोग भी जुड़े हैं जो अपने यहाँ इस तरह की मुहिम चलाकर बच्चों की मदद कर रहे हैं।" 

सीमा ने लोगों से एक रूपये जमा कराने की मुहिम की शुरुआत 10 अगस्त 2016 को अपने कॉलेज कैंपस से शुरू की थी। सोशल मीडिया के माध्यम से अब यह मुहिम देश के दूसरे राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और साउथ तक पहुंच गयी है। हर जगह के युवा आगे आ रहे हैं जो अपने-अपने स्तर से पैसा जमा करके वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं।

पहले दिन ये मात्र 395 रूपये की इकट्ठा कर पायीं थीं। ये अमाउंट देखने में भले ही कम लग रहा हो लेकिन सीमा से इससे सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली बच्ची की फीस भरी और स्टेशनरी खरीदकर दी। अबतक अपनी इस मुहिम से ये दो लाख रूपये जुटा चुकी हैं जिससे बच्चों की फीस और स्टेशनरी दे चुकी हैं। सीमा सिर्फ बच्चों की फीस ही जमा नहीं करती बल्कि उनके अधिकारों पर भी उनके साथ चर्चा करती हैं। 

ये हैं सीमा वर्मा जिनकी इस मुहिम से सैकड़ों बच्चों को कॉपी-किताब मिल पा रही है.

सीमा बताती हैं, "हम जरुरतमंद बच्चों की तबतक फीस देंगे जबतक की वो 12वीं कक्षा पास न कर लें। अभी तक 33 बच्चों की लगभग एक लाख रूपये फीस जमा की है। जमा किये पैसों से ही अब तक 10,000 से ज्यादा बच्चों को स्टेशनरी का सामान दे चुके हैं। हम बच्चों को भी यह सिखाते हैं कि वो अपनी पॉकेट मनी से हर दिन एक रूपये जमा करें।"

सीमा आज अपने क्षेत्र में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं, दूसरे राज्यों के युवा इनसे इस मुहिम में जुड़ने के लिए आगे आये हैं। सीमा की इस मुहिम के लिए इन्हें नारी शक्ति सम्मान, बाल गौरव सम्मान, बेस्ट वूमन ऑफ छत्तीसगढ़ से लेकर ऐसे 40 सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

सीमा ने एक स्कूल में पढ़ने वाले छह बच्चों की फीस जमा की, वहां की प्रधानाचार्या रंजना शर्मा बताती हैं, "सीमा हर महीने स्कूल आती हैं और उन बच्चों से मिलती हैं जिनकी वो फीस जमा कर रही हैं। गाँव के कुछ बच्चों के माता-पिता इतने सक्षम नहीं होते जो उनकी समय से फीस जमा कर सकें और कॉपी-किताब खरीदकर दे सकें। सीमा ने जिन बच्चों की फीस जमा की है उनके माता-पिता इस पहल से बहुत खुश हैं।" 

ऐसी क्या घटना घटी जिससे आपने जरुरतमंद बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया? इस पर सीमा बोलीं, "मेरी एक सहेली के लिए ट्राई साइकिल दिलवाने की ज़िद ने मुझे जरूरतमंद बच्चों की मदद करने के लिए प्रेरित किया। जब मैं ग्रेजुएशन में थी तो मेरी एक सहेली  दिव्यांग थी, उसे ट्राई साइकिल दिलवाने के लिए मैंने कॉलेज के प्रिंसिपल से बात की। प्रिंसिपल सर ने कहा एक सप्ताह बाद बात करते हैं। मैने उसी दिन ठान लिया था कि मैं अपनी इस दोस्त की मदद जरुर करूंगी।"

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सीमा जब उसे साइकिल दिलाने बाजार पहुँचीं तो कई दुकानों पर गईं पर उन्हें साइकिल कहीं नहीं मिली। किसी ने कहा 35,000 रुपए की मिलेगी तो कोई दुकानदार बोला कि दिल्ली से मंगवानी पड़ेगी,जिसे मंगाने में 15 दिन से एक महीना भी लग सकता है। सीमा को एक पंचर वाले ने यह सलाह दी कि ट्राई साइकिल खरीदने की जरूरत नहीं है, यह सरकार की तरफ से मुफ्त में मिलती है, जिसके लिए जिला पुनर्वास केंद्र जाकर जरूरी कागजात जमा करने होंगे। इसे मिलने का समय आठ दस महीने लग सकता है।

सीमा को आठ-दस महीने का समय बहुत ज्यादा लग रहा था तो उसनें पंचर वाले से कोई और उपाय पूछा तो पंचर वाले ने एक अधिकारी से मिलने के लिए कहा। सीमा दूसरे ही दिन उन अधिकारी से मिली जहाँ से अगले ही दिन उनकी दोस्त को ट्राई साइकिल मिल गयी। यही वो हौसला था जिससे सीमा आज यहाँ तक पहुंची हैं। 

सीमा इस किस्से का अनुभव बताती हैं, "मैं उस दिन तीन चीज सीखीं कि कभी हार मत मानों, दूसरा गवर्नमेंट की स्कीम के बारे में जानकारी होना और उसका लाभ कैसे लें इसकी पूरी जानकारी हो। तीसरा जागरूकता बहुत जरूरी है। जो जितना सक्षम है उतने से ही अपने आसपास के लोगों को जागरूक करें, सुधार मोहल्ले से करें।"

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