विकास चला घोड़े की चाल या है ये आंकड़ों का कमाल ?

भारत के सबसे पिछड़े ज़िलों में विकास प्रदर्शन के आंकड़े बुलेट ट्रेन की गति से सुधर रहे हों तो चौंकना स्वाभाविक है

Update: 2019-01-29 08:15 GMT

भारत के सबसे पिछड़े ज़िलों में विकास प्रदर्शन के आंकड़े बुलेट ट्रेन की गति से सुधर रहे हों तो चौंकना स्वाभाविक है। देश के सर्वाधिक पिछड़े ज़िलों के लिए एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोगाम या 'आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम' की शुरूआत करते हुए मार्च 2018 में नीति आयोग ने कुल 101 सबसे पिछड़े ज़िलों की रैंकिंग जारी की थी। इसे बेसलाइन रैंकिंग कहा गया। यह कहा गया कि इन ज़िलों के विकास के बगैर देश का विकास नहीं हो सकता। नीति आयोग की मानें तो इनमें से कुछ ज़िलों ने चंद महीनों में ही विकास रैंकिंग में 100 से अधिक ज़िलों को पछ़ाड़ दिया। इतने बड़े स्तर पर पिछड़े ज़िलों की रैंकिंग सुधार को चुनावी माहौल में भुनाने की पूरी कोशिश की जाने की संभावना है।

सबसे पिछले ज़िलों के विकास आंकड़ों की अब तक कुल तीन सूचियाँ जारी हो चुकी हैं। पहली बेसलाइन रैंकिंग और बाकी दो डेल्टा रैंकिंग। इन ज़िलों के प्रमुख विकास क्षेत्रों और उनके सूचकांकों की ताज़ा जानकारी के लिए एक ऑनलाइन डैशबोर्ड भी तैयार किया गया था। अप्रैल से मई 2018 के बीच 108 सबसे पिछड़े ज़िलों में कितना विकास हुआ, इसकी जानकारी के लिए पहली डेल्टा रैंकिंग जून 2018 में जारी की गई। जून से अक्तूबर के बीच हुए विकास को मापने के लिए दूसरी डेल्टा रैंकिंग दिसंबर 2018 में जारी की गई। इसमें 111 सबसे पिछड़े ज़िले शामिल किए गए। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक एस्पीरेशनल डिस्ट्रिस्क्ट प्रोगाम के दायरे में लगभग 14.9% जनसंख्या या कहें कि 180,681,877 भारतीय आते हैं।


कितनी प्रगति?

बेसलाइन रैंकिंग और पहली और दूसरी डेल्टा रैंकिंग सूची के आंकड़ों की आपस में तुलना करने पर पता चलता है कि बहुत कम समय में कुछ ज़िलों की विकास रैंकिंग बहुत तेजी से ऊपर आ गई हैं। उदाहरण के तौर पर बेसलाइन रैंकिंग में उत्तर प्रदेश का सिद्धार्थ नगर ज़िला 95वां स्थान पर था. पहली डेल्टा सूची में ज़िला 101 नंबर पर आ गया और दूसरी डेल्टा रैंकिंग में 98 अंकों का सुधार करते हुए सीधे तीसरे स्थान पर पहुँच गया। दूसरी डेल्टा रैंकिंग में सबसे तेज गति से विकास करने वाला ज़िला बना जम्मू-कश्मीर का कुपवाड़ा। नाति आयोग के अनुसार जून 2018 में कुपवाड़ा 108वें स्थान पर था और अक्तूबर 2018 में सातवें स्थान पर पहुँच गया। इसका मतलब कुल चार महीनों में डेल्टा रैंकिंग में 101 अंकों का सुधार!

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विकास मापने वाली इन रैंकिंग सूचियों के ज़रिए यह सुनिश्चित किया जाता है कि एक निश्चित अवधि में देश के सबसे पिछड़े ज़िलों में कितनी प्रगति हुई। इन सूचियों की रैंकिंग का हवाला नेता अपनी उपलब्धियाँ बताने के लिए भी करते हैं। सर्वाधिक पिछड़े ज़िलों के विकास के लिए पाँच मूल क्षेत्र चुने गए हैं- स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल संसाधन, वित्तीय समावेश एवं कौशल विकास और आधारभूत ढ़ाँचा। इन पाँच मूल क्षेत्रों के 49 प्रमुख सूचकांकों के आंकड़ों को रैंकिंग का आधार बनाया जाता है। सरकार ने इच्छा ज़ाहिर की थी कि यह ज़िले विकास के लिए आपसी प्रतिस्पर्धा करें।

कुपवाड़ा के स्थानीय पत्रकार वासिम मीर नीति आयोग की सूची में कुपवाड़ा के विकास आंकड़ों से सहमत नहीं हैं।  उन्होंने बताया, "कुपवाड़ा में स्वास्थ्य क्षेत्र का विकास एक पुराने उपज़िला अस्पताल की हालत से देखा जा सकता है। कुपवाड़ा देश का इकलौता ऐसा ज़िला मुख्यालय है जहाँ सरकारी ज़िला अस्पताल नहीं है। उपज़िला अस्पताल पर ज़िला अस्पताल का बोर्ड लगा दिया गया है। लेकिन वहाँ ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएं मौजूद नहीं हो पाई हैं क्योंकि दशकों से उसे कभी ज़िला अस्पताल का दर्जा नहीं मिला।



 वासिम मीर ने बताया कि पिछले कुछ समय से ज़िले में शिक्षा का स्तर भी बद से बदतर हो गया है। वह बताते हैं, "कई साल पहले उच्च अधिकारियों ने कागज़ो पर कुपवाड़ा में विश्वविद्यालय का उद्घाटन किया था लेकिन हक़ीकत में आज तक विश्वविद्यालय की एक इंच का भी उद्घाटन किसी ने नहीं किया है। कुपवाड़ा में महिला डिग्री कॉलेज को प्राथमिकता देकर चालू किया गया था लेकिन दुर्भाग्य है कि इसके प्राचार्य पद और इमारत पर अनिश्चितता बनी रहती है। यह डिग्री कॉलेज एक प्राइमरी स्कूल में चलता है। कई और दूसरे स्कूल, सरकारी उच्च शैक्षणिक विभाग और कृषि विभाग पूरे स्टाफ के इंतज़ार में है।"

उत्तरप्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले में भी लोगों की राय नीति आयोग के आंकड़ों को लेकर अलग नहीं रही। फेसबुक पर 'सिद्धार्थ नगर यूपी' नाम से एक कम्यूनिटी पेज है। यहाँ एक ऑनलाइन सर्वे करवाया गया। 


नेपाल की सीमा के सटे इस ज़िले के पिछले एक साल में पिछड़े ज़िलों की सूची में ज़िले के 95 से तीसरे स्थान पर आ जाने का हवाला देकर पूछा गया कि क्या सच में इतना विकास हुआ है? नतीजे में 74% लोगों ने जवाब दिया- नहीं. केवल 26% को लगता है कि हाँ इतना विकास हुआ है. सर्वे में 534 लोगों ने हिस्सा लिया। 

'देश का सबसे पिछड़ा ज़िला'

मार्च 2018 में जारी 101 ज़िलों की बेसलाइन रैंकिंग में आखिरी पायदान पर हरियाणा का मेवात ज़िला था। मीडिया में इस बात पर खूब चर्चा हुई थी कि देश का सबसे पिछड़ा ज़िला वह मेवात निकला जो राजधानी दिल्ली से 100 किमी दूर भी नहीं है। दिसंबर में जारी दूसरी डेल्टा रैंकिंग में मेवात 30वें स्थान पर है। यहाँ भी आंकड़े विकास के 71 पायदान चढ़ जाने की गवाही देते हैं।

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 8 जनवरी 2019 को ट्वीट किया, "आज केवल हमारी पार्टी के लिए ही नहीं, पूरे हरियाणा के लिए ऐतिहासिक दिन है। मुझे यह बताते हुए अत्यंत खुशी हो रही है कि पिछली सरकारों की नज़रअंदाज़ी से जो नूंह ज़िला(मेवात) देश का सबसे पिछड़ा ज़िला घोषित हो चुका था, वह नीति आयोग की दूसरी रैंकिंग में 101वें स्थान से 30वें स्थान पर आ गया है।" हरियाणा में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी की सरकार है।



 हरियाणा में पिछली कांग्रेस राज्य सरकार में परिवहन मंत्री रह चुके आफताब अहमद मेवात के राजनेता हैं। उन्होंने मेवात के डेल्टा रैंकिंग में 101 से 30 नंबर पर आ जाने को आंकड़ों का छलावा बताया। उन्होंने कहा, "आप खुद ही सोचिए क्या केवल चंद महीनों में यह संभव है? मेवात में पिछड़ापन था लेकिन इतना नहीं था। और आज जो आंकड़ों में थोड़ा बहुत सुधार हुआ है वो पिछली सरकारों के कार्यक्रमों के बलबूते पर हुआ है।"

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अल्पसंख्यक बहुल मेवात ज़िले में कार्यरत अकरम मालब अपने फेसबुक पर लिखते हैं, "अब एक साल में ऐसा क्या तीर लग गया कि हिंदुस्तान के सबसे पिछड़े जिले ने एक झटके में दूसरे 71 पिछड़े जिलों को पछ़ाड़ दिया। वही रोड, वही स्कूल, वही एक-दो कॉलेज, वही स्वास्थ्य केंद्र. ऐसी ही बिजली, वैसा ही पानी! मेवात के अफसर माशाअल्लाह इतने तरक्की पसंद हैं कि एक साल में सारा डेटा इतना अच्छा कर लिया। अब ये इतनी जल्दी कैसे हो गया यह सोचने का विषय है।"

हरियाणा मूल के सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने दूसरी डेल्टारैंकिंग की गणना के लिए प्रयोग हुए सभी आंकड़े सार्वजनिक करने की माँग की। उन्होंने कहा, "मैं इस नई रैंकिंग से हैरान हूँ। मैं तो अभी कुछ दिन पहले ही मेवात गया था। ज़मीन पर तो कोई अंतर दिखाई देता नहीं है। दूसरे कई ज़िलों से भी ऐसी ही ख़बरें सुनाई पड़ रही हैं। इस नई रैंकिंग की गणना के लिए जो आंकड़े प्रयोग किए गए हैं, वो सार्वजनिक किए जाने चाहिए।"

उन्होंने विकास आंकड़ों की गणना की तक़नीकियों का भी ज़िक्र किया। उन्होंने बताया, "कई बार आंकड़ों की गणना में एक विशेष सूचकांक का वेटेज इतना अधिक रख दिया जाता है कि यह बाकी सूचकांकों पर भारी पड़ जाता है। कई बार इस प्रकार के नतीजे ग़लत गणना से भी सामने आते हैं। पूरा डेटा सामने आने पर ही तस्वीर साफ़ होगी।"








बेमेल आंकड़े और अधूरे सूचकांक 

जिस वेबसाइट पर विकास सूचकांकों की रीयल टाइम ट्रैकिंग के लिए डैश बोर्ड बनाया गया था, वहाँ सीमित आंकड़े मौजूद हैं। डैशबोर्ड पर आंकड़ों के आधे-अधूरे भरे कॉलम पूरी जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। ऑनलाइन मौजूद जानकारी के आंकड़े नीति आयोग की दूसरी डेल्टा रैंकिंग सूची के आंकड़ों से मेल नहीं खा रहे हैं। उदाहरण के लिए वेबसाइट नवंबर के लिए मेवात की डेल्टा रैंकिंग 58 दिखा रहा था। दिसंबर के लिए 66 दिखा रहा है। लेकिन दिसंबर 2018 में जारी हुई दूसरी डेल्टा रैंकिंग में मेवात की रैंकिंग 30 है। दूसरी डेल्टा रैंकिंग जून से अक्तूबर 2018 के बीच के आंकड़ों के आधार पर बनाई गई है। ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर 23 जनवरी 2019 तक नवंबर 2018 तक की जानकारी थी, हाल ही में दिसंबर की रैंकिंग अपडेट की गई है।

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डिजिटल इंडिया की मेहरबानी से कि देश के सबसे पिछड़े जिलों में हो रहे विकास की निगरानी ऑनलाइन की जा सकती थी अगर उस पर आंकड़े सही और पूरे होते। इस ऑनलाइन डैशबोर्ड की खासियत यह थी कि उसमें स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल संसाधन, वित्तीय समावेश एवं कौशल विकास और आधारभूत ढ़ाँचा जैसे प्रमुख पाँच क्षेत्रों के 49 प्रमुख सूचकांक क्या हैं और आंकड़ों की गणना में उन्हें कितनी अहमियत मिली है, यह पूरी पारदर्शिता से देखा जा सकता था। इन ज़िलों का प्रदर्शन Championsofchange.gov.in पर देखे जाने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन इस ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर मार्च से दिसंबर 2019 तक उपलब्ध आंकड़े भ्रम पैदा करते हैं।

सरकारी वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों की मानें तो मार्च 2018 में नीति आयोग ने जिस मेवात जिले को देश का सबसे पिछ़ड़ा ज़िला बताया था उसकी रैंकिंग छ: महीनों में नवंबर तक 43 अंकों तक सुधर गई। एक महीने बाद ही दिसंबर में जारी नीति आयोग रैंकिंग की दूसरी डेल्टा सूची में मेवात 28 अंक और सुधार के साथ 30 पर पहुँच गया।

सूचियों और डैशबोर्ड में असमानता 

मार्च 2018 में जारी हुई बेसलाइन रैंकिंग में 100वें स्थान के साथ दूसरा सबसे पिछड़ा ज़िला तेलंगाना का आसिफाबाद था। 99वें नंबर पर तीसरा सबसे पिछड़ा ज़िला मध्य प्रदेश का सिंगरौली, 98 नंबर पर चौथा स्थान के नागालैंड के किफरे का रहा। पाँचवें स्थान पर उत्तर प्रदेश का श्रावस्ती था। इसके बाद छठे, सातवें और आंठवें स्थान पर भी यूपी के ही ज़िले थे।

मार्च की बेसलाइन रैंकिंग और डैशबोर्ड पर मौजूद विकास सूचकांकों की तुलना करने पर कुछ इस प्रकार की जानकारियाँ सामने आईं- 

डैशबोर्ड पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार सात महीने बाद ही नवंबर 2018 तक मध्यप्रदेश का सिंगरौली ज़िला 76 ज़िलों को पछाड़ते हुए 99वें स्थान से 27वें स्थान पर पहुँच गया। दिसंबर 2018 की रैंकिंग में 30 पर है। नवंबर 2018 में उत्तरप्रदेश का श्रावस्ती 73 अंकों के सुधार के साथ  97वें स्थान से 24वें स्थान पर नजर आ रहा था, दिसंबर 2018 की रैंकिंग में यह 20वें स्थान पर पहुँच गया है। उत्तर प्रदेश का ही बहराइच ज़िला नवंबर2018 में 59 अंकों के सुधार के बाद 96वें स्थान से 37वें स्थान पर मौजूद था, एक महीने बाद ही दिसंबर में 18 ज़िलों को पछाड़ते हुए 19वें स्थान पर पहुँच गया। तेलंगाना का आसिफाबाद भी 100वें स्थान से 58 नम्बर पर पहुँच गया। दिसंबर में फिर से  96 डेल्टा रैंकिंग पर दिखा रहा है। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं।

नीति आयोग की दूसरी डेल्टा रैंकिंग अनुसार सिंगरौली 13वें स्थान पर पर, श्रावस्ती 52वें स्थान पर, बहराइच 66वें, तेलंगाना का आसिफाबाद 56वें स्थान पर मौजूद थे।

वेबसाइट पर मौजूद यह रैंकिंग प्रमुख क्षेत्रों की रैंकिंग के आधार पर निर्धारित होती है। प्रमुख क्षेत्रों की रैंकिंग अलग-अलग सूचकांकों के आंकड़ों के आधार पर बनती है। कुछ सबसे पिछड़े ज़िलों के हर प्रमुख विकास क्षेत्र की रैंकिंग मार्च और नवंबर मेंअलग- अलग खंगालने पर यह आंकड़े सामने आए- 



रीयल टाइम ट्रेकिंग डैशबोर्ड पर मार्च से नवंबर के बीच मौजूद आंकड़ों के आधार पर प्रमुख विकास क्षेत्र रैंकिंग हर विकास क्षेत्र में बहुत से सूचकांक हैं। उनमें अधिकतर के लिए मार्च के आंकड़े तो मौजूद हैं लेकिन रीयल टाइम ट्रैकिंग डैशबोर्ड पर नवंबर तक आधे-अधूरे आंकड़े भरे गए हैं। लेकिन इस दूसरी डेल्टा रैंकिंग में में प्रमुख क्षेत्रों की रैंकिंग और सूचकांकों के आंकड़ों के बारे में ऑनलाइन डैशबोर्ड जैसी विस्तृत जानकारी नहीं दी गई है।

नीति आयोग का क्या कहना है?

आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी(सीईओ) की देख-रेख में चलाया जा रहा है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का फोन नहीं उठ पाया। सीईओ ऑफिस के एक उच्च अधिकारी ने इस मामले में नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार राकेश रंजन से बात करने को कहा। बेसलाइनरैंकिंग से लेकर दूसरी डेल्टा रैंकिंग सूची में असमानताएं होने और कुछ ज़िलों के रैंकिंग में तेज़ी से ऊपर आने पर नीति आयोग की तरफ से राकेश रंजन ने कहा, "पहली डेल्टा रैंकिंग अप्रैल 2018 से मई 2018 के बीच हुए विकास के आधार पर बनाई गई थी। जबकि दूसरी डेल्टा रैंकिंग जून 2018 से अक्तूबर 2018 के बीच हुए विकास के आधार पर बनी है।"

नीति आयोग के वरिष्ठ सलाहकार राकेश रंजन ने सर्वाधिक पिछ़़ड़े ज़िलों को लेकर गाँव कनेक्शन के कुछ सवालों का जवाब दिया

इस प्रश्न का भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला कि क्यों मार्च2018 में जारी हुई बेसलाइन रैंकिंग और उसके आंकड़ों को जून और दिसंबर2018 की दोनों डेल्टा रैंकिंग सूचियों की गणना का आधार नहीं बनाया गया जबकि तीनों के मुख्य क्षेत्र और सूचकांक बिंदु, विषय एक जैसे हैं।

अगला सवाल रीयल टाइम ट्रेकिंग प्लेटफॉर्म पर ताजा और पूरे आंकड़े न होने पर था। नीति आयोग ने बताया, "हम सभी ज़िलों को ताज़ा आंकड़ें देने के लिए 20 दिन का समय देते हैं। अभी डेशबोर्ड पर आप जो आंकड़े देख पा रहे हैं वो दिसंबर के लिए हैं और 20 जनवरी, 2019 को इसे अंतिम रूप दिया जाएगा।"

20 जनवरी की तारीख निकल जाने के बाद भी वेबसाइट पर आंकड़े 23 जनवरी तक वही के वही थे। 27 जनवरी को दोबारा जाँचने पर नवंबर से दिसंबर की रैंकिंग देखने को मिली. 

सबसे पिछले ज़िलों की सूचियों पर नीति आयोग का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ सलाहकार राकेश रंजन ने बताया,"शिक्षा और कुपोषण जैसे कुछ सूचकांकों को हम परिणाम सूचकांक कहते हैं। यह स्वाभाविक है कि इन मामलों में बहुत धीमा विकास होता है, इस वजह से हम हर महीने उनकी प्रगति को नहीं आंक सकते। लेकिन फिर भी यह सूचकांक डैशबोर्ड का हिस्सा इस लिए हैं क्योंकि जनता और ज़िले के लिए यह सूचकांक बहुत ज़रूरी हैं।"

नीति आयोग द्वारा पिछड़े ज़िलों की रीयल टाइम ट्रेकिंग के उद्देश्यों को स्पष्ट करने करते हुए राकेश रंजन ने बताया, "रीयल टाइम ट्रेकिंग के दो मुख्य उद्देश्य हैं- पहला, आंकड़ों की गणना के काम में में ज़िम्मेदारी की बड़ी भावना तय करना। दूसरा- इससे हर ज़िले के मासिक और तिमाही विकास की दूसरे ज़िलों के विकास से तुलना की जा सकती है। इससे प्रतिस्पर्धा और विकास को बढ़ावा मिलता है।"



 नीति आयोग के दावे से अलग रैंकिंग आंकड़ों की गणना में ज़िम्मेदारी की भावना फीकी लग रही है। मार्च 2018 में 101 पिछड़े ज़िलों की रैंकिंग आ गई थी. इसे बेसलाइन रैंकिंग कहा गया था। ऐसा माना जा रहा था कि इसके बाद होने वाली सभी रैंकिंग इस सूची के आंकड़ों के आधार पर होंगी। लेकिन बाद में जारी होने वाली डेल्टा रैंकिंग का आधार बेसलाइन रैंकिंग को नहीं रखा गया। नीति आयोग इन डेल्टा रैंकिंग को मापने के लिए एक समान समयावधि और पैमाने भी नहीं रख रहा है। लेकिन रैंकिग में कितना सुधार हुआ इसका हवाला जनता को लुभाने के लिए ज़रूर किया जा रहा है। आने वाले लोकसभा चुनावों के दौरान चुनावी भाषणों में भी इसका प्रयोग देखने को मिल सकता है। 

संयुक्त राष्ट्र और भारत की रैंकिंग

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा साल 2016 में जारी 188 देशों के मानव विकास सूचकांक में भारत का स्थान 131वां रहा था। देश का स्थान इस सूची में सुधारने के लिए ही नीति आयोग ने 2018 में सबसे पिछड़े जिलोंको विकसित बनाने का कार्यक्रम, एस्पीरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोगराम, बनाया. स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि एवं जल संसाधन, वित्तीय समावेश एवं कौशल विकास और आधारभूत ढ़ाँचा जैसे क्षेत्रों में निकास के लिए 49 प्रमुख सूचकांकों का चयन किया गया था।

यूएन सूचकांकों के पैमानों पर ही यह सूचकांक बनाए गए थे। एक विकासशील देश के लिए इन सूचकांकों के पायदानों पर चढ़ना कितना कठिन होता है यह बताने के लिए केवलयह जानना काफी होगा कि साल 2018 में जारी संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक की 189 देशों की सूची में भारत केवल एक अंक का सुधार कर 130वें पायदान पर पहुँच पाया है।

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नीति आयोग ने पिछले साल 2018 में देश के सबसे पिछड़े 115 ज़िलों की सूची जारी की थी। मार्च 2018 को इनमें से सबसे पिछड़े 101 ज़िलों की रैंकिंग जारी की गई। इसे बेसलाइन रैंकिंग कहा गया था। इसके बाद दो डेल्टा रैंकिंग जारी हुईं. दूसरी डेल्टा रैंकिंग दिसंबर में आई थी। 

नीति आयोग की दूसरी डेल्टा रैंकिंग 

भारत सरकार के केंद्रीय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने साल 2018-19 में देश की विकास दर 7.2% रहने का अनुमान जताया है। यह विकास दर बहुत कम नहीं तो बहुत ज्यादा भी नहीं है। इससे यह प्रश्न उठता है कि देश के इन सबसे पिछड़े ज़िलों में जमीनी स्तर पर ऐसे कैसे और क्या बदलाव हुए जो सबसे पिछड़े ज़िलों की विकास दर अचानक आसमान छूने लगी और इन ज़िलों की विकास दर देश की विकास दर से कई गुणा अधिक बढ़ गई।

साथ ही यह चिंता और भी गहरा जाती है कि भारत के विकास का प्रश्न यदि केवल कागज़ों और आंकड़ों में हल होने लगा तो ज़मीन पर लाखों-करोंड़ों लोग देश में सामाजिक और आर्थिक असमानता कभी नहीं पाट पाएंगे।  

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