मुद्दा: नफरत को सरकारी समर्थन 

Update: 2017-03-07 22:34 GMT
सरकार अपने यहां नफरत वाले अपराधों को रोक नहीं पा रही है।

यह बड़ा अजीब लगता है कि जो सरकार खुद अपने यहां नफरत वाले अपराधों को रोक नहीं पा रही है, वो अमेरिकी सरकार को ऐसे ही अपराधों को रोकने की नसीहत दे रही है। वह भी सिर्फ इसलिए कि ऐसे ही एक अपराध में जान गंवाने वाला व्यक्ति भारतीय है। 22 फरवरी को श्रीनिवास कुछिभोतला की कन्सास में एक श्वेत व्यक्ति द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या करने वाला यह चिल्ला रहा था कि भारतीय मेरे देश से बाहर चले जाएं।

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इस घटना के हफ्ते भर बाद तक अमेरिकी सरकार की ओर से इसकी निंदा का कोई बयान तक नहीं आया। व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव सिन स्पाइसर ने घटना को ‘परेशान करनेवाला’ मानने के अलावा कुछ नहीं कहा। 28 फरवरी को राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करते हुए इस घटना का जिक्र अपने भाषण की शुरुआत में ही किया। भारतीय मीडिया ने इसके बाद यह दावा करना शुरू कर दिया कि ट्रंप ने कन्सास की घटना की निंदा की है। जबकि ट्रंप ने हल्का जिक्र भर किया था।

ट्रंप ने कहा था कि यहूदी समाज के लोगों के खिलाफ होने वाली हिंसक घटनाएं और कन्सास की घटना हमें इस बात की याद दिलाती है कि नीतियों के स्तर पर भले ही हमारा देश बंटा हुआ दिखता हो लेकिन नफरत और बुराइयों की निंदा में एकजुट रहता है। ट्रंप ने यह नहीं कहा कि उनकी नीतियों की वजह से इस तरह की घटनाओं के लिए माहौल बना है। अमेरिका समेत कोई भी देश ऐसा नहीं है जो विभिन्न समुदायों के बीच आपसी पूर्वाग्रह से पूरी तरह मुक्त हो। हर देश में सरकारें इन भावनाओं को को नीतियों समेत कई उपायों से बरकरार रखने की कोशिश करती हैं.

आज जो अमेरिका में हो रहा है, वही सब पिछले ढाई साल में भारत में हुआ है। मई, 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी है। तब से नफरत वाले अपराध बढ़ गए हैं और जानबूझकर मुस्लिम समाज के लोगों को अलग-थलग करने की कोशिश हुई है। कभी लव जिहाद का मुद्दा उठाया जाता है तो कभी कुछ और। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी द्वारा सांप्रदायिक मुद्दे उठाए गए।

इससे मुस्लिमों में भारतीय समाज में अपनी स्थिति को लेकर असुरक्षा का माहौल बढ़ रहा है। ऐसा किसी छोटे समूह या कुछ छिटपुट लोगों की वजह से नहीं हो रहा है। ऐसा तब होता है जब शीर्ष स्तर से यह संदेश जाए कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ कुछ भी करने पर न तो उसकी निंदा की जाएगी और न ही उन पर कोई कार्रवाई। उत्तर प्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। जब भी कोई ऐसी घटना होती है, शीर्ष स्तर पर बहुत अधिक शांति दिखती है। ट्रंप ने थोड़ा ही सही लेकिन जो कहा है, वह भी ऐसे अपराधों के बाद मोदी के अब तक के कहे से बहुत अधिक है।

भारत और अमेरिका में जो हो रहा है, उनकी आपसी तुलना यहीं खत्म नहीं होती। ‘राष्ट्र’ की परिभाषा को लेकर भी बहुत कुछ चल रहा है। ट्रंप अक्सर अमेरिका को फिर से महान बनाने की बात करते हैं। लेकिन यह अमेरिका है क्या? क्या इस अमेरिका में कई देशों से आए लोगों जिसमें मुस्लिम भी शामिल हैं, उनके लिए कोई जगह है? या फिर उन्हें अमेरिका को फिर से महान बनाने की राह में रोड़ा माना जाएगा? जिस भाषण में ट्रंप ने कन्सास की घटना का जिक्र किया, उसी में उन्होंने एक ऐसी संस्था बनाने का प्रस्ताव रखा जो दूसरे देशों से आए लोगों द्वारा किए गए अपराधों के अमेरिकी प्रभावितों के हितों के लिए काम करेगा।

उन्होंने दूसरे देशों से आए लोगों द्वारा पुलिसकर्मियों के मारे जाने की कई घटनाओं का जिक्र किया लेकिन यह नहीं बताया कि जिन्हें वे अमेरिकी मानते हैं, उन्होंने कितनी आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया है। ‘आप्रवासी’ शब्द का इस्तेमाल करके वे उसी तरह के लोगों के हाथों में खेल रहे थे जिनमें से एक ने कन्सास की घटना को अंजाम दिया था। ऐसे लोगों के लिए जिसकी चमड़ी का रंग अलग हो, जो अलग दिखता हो या कोई दूसरी भाषा बोलता हो, वह अमेरिका के लिए खतरा है।

भारत में भी मौजूदा सरकार ने अपने हिसाब से ‘राष्ट्र’ और ‘राष्ट्रवाद’ का एजेंडा तय कर रखा है। जहां एक तरफ सभी भारतीय हिंदू ‘राष्ट्रवादी’ हैं, वहीं भारतीय मुस्लमानों को यह साबित करना है कि वे ‘राष्ट्रवादी’ हैं। इसके अलावा वे सभी लोग ‘राष्ट्र विरोधी’ हैं जो सरकार और उसकी नीतियों पर सवाल उठाते हैं, कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करते हैं, कश्मीर, पूर्वाेत्तर या बस्तर में सुरक्षाकर्मियों की ज्यादतियों की आलोचना करते हैं और जो यह कहते हैं कि विरोध जताने का अधिकार भी अभिव्यक्ति के अधिकार से जुड़ा हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस काॅलेज में जो कुछ हुआ उसे केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू अति वामपंथियों और राष्ट्रवादियों के बीच विचारधारा के संघर्ष के तौर पर देखते हैं। इस हिसाब से तो सिर्फ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य ही राष्ट्रवादी हैं।

भारत सरकार और अमेरिकी सरकार अपने-अपने यहां गलत उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं। भारत में विद्यार्थी परिषद को राष्ट्रवाद का अपना संस्करण थोपने की खुली छूट दी जा रही है। वहीं अमेरिका में हथियारबंद लोगों को उन लोगों को मारने तक की छूट दी जा रही है जो कथित रूप से अमेरिका के लिए ‘खतरा’ हैं। ऐसी सरकारें न सिर्फ नफरत को हवा देने का काम करने के लिए जिम्मेदार हैं बल्कि ये सहिष्णुता और संवाद की संभावनाओं को भी तबाह कर देती हैं।

(साभार- इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली)

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