विश्व के 10 सबसे अधिक वन संपदा वाले देशों में से एक है भारत

पेड़-पौधे, जंगल, वन, वानिकी और सामाजिक वानिकी मानव जाति के जीने के लिए उतना ही जरूरी है; जितना के खाने के लिए अनाज और पीने के लिए पानी है।

Update: 2024-03-26 06:51 GMT

प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन एक ईश्वर प्रदत्त सृष्टि की रचना हैं। जिसमें जल, जंगल, जमीन, जलवायु, जानवर, पशु-पक्षी और मानव सभी समाहित हैं। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि की रचना में जरा सा भी खोट आता है, तो संपूर्ण पारिस्थितिकी संतुलन डगमगा सकता है। इसलिए सृष्टि को बचाए रखने के लिए जंगल और वानिकी को बचाना ही होगा।

पर्यावरण और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं। इसकी एक महत्वपूर्ण कड़ी जंगल और वानिकी है। भारत में सामाजिक वानिकी और संरक्षित वन इसके दो महत्वपूर्ण घटक हैं। भारत में वानिकी एक महत्वपूर्ण ग्रामीण उद्योग और एक प्रमुख पर्यावरणीय संसाधन है। भारत विश्व के 10 सबसे अधिक वन संपदा वाले देशों में से एक है। भारत और नौ अन्य देश मैं दुनिया के कुल वन क्षेत्र का 67 प्रतिशत हिस्सा आता है।

वर्ष 1990 से 2000 के दौरान भारत का वन क्षेत्र 0.20 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ा है। इसके बाद वर्ष 2000 से लेकर 2010 के दौरान 0.7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से भारत में वन क्षेत्र की वृद्धि हुई है। जबकि पूर्व के दशको में भारत में वन क्षेत्र का क्षरण गंभीर चिंता का विश्व विषय रहा है। वर्ष 2010 तक संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान था कि भारत का वन क्षेत्र लगभग 68 मिलियन हेक्टर या देश के क्षेत्रफल का 22 प्रतिशत तक हो गया था। जबकि वर्ष 2013 के भारतीय वन सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत का वन क्षेत्र बढ़कर 69.8 प्रतिशत तक हो गया है। भारत के वन क्षेत्र में यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से उत्तरी, मध्य और दक्षिणी भारतीय राज्यों में देखी गई है। जबकि पूर्वोत्तर राज्यों में वन क्षेत्र में कमी देखी जा रही है। आंकड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2018 तक भारत में कुल वन और वृक्ष आवरण 24.39 प्रतिशत तथा 2019 में यह और बढ़कर 24.56 प्रतिशत तक हो गया है।


राज्यों के दृष्टिकोण से देखें तो मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला राज्य है। इसके बाद क्रमशः अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम , ओड़िसा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, लक्षद्वीप केरल,जम्मू कश्मीर, कर्नाटक राज्य प्रमुखता से आते हैं। भारत में हरियाणा राज्य वन आवरण के दृष्टिकोण से सबसे पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आता है। हरियाणा राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 3.5 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र है। जनसंख्या के हिसाब से आबादी में सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 6.88 प्रतिशत क्षेत्रफल जंगल और वानिकी के अंतर्गत आता है।

वर्ष 2019 के वन सर्वेक्षण के अनुसार मध्य प्रदेश राज्य देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला राज्य है। वन आवरण प्रतिशत के दृष्टिकोण से मिजोरम 85.41 प्रतिशत वाला सर्वाधिक वन समृद्ध राज्य है। लक्षद्वीप में लगभग 90.33 प्रतिशत जंगल पाए जाते हैं। वन सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार जिन राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में वन आवरण में वृद्धि देखी गई है उसमें कर्नाटक उसके बाद आंध्र प्रदेश, केरल और जम्मू कश्मीर आते हैं। जबकि वन आवरण में कमी वाले राज्यों में प्रमुख रूप से मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम शामिल हैं।

भारत सरकार की वन जनगणना और वर्ष 2021 वन आवरण के मानचित्र के अनुसार क्रमशः मध्य प्रदेश 77482, अरुणाचल प्रदेश 66688, छत्तीसगढ़ 55611, उड़ीसा 51619 और महाराष्ट्र 50778 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र वाले प्रमुख राज्य हैं।

आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो भारत में वन और वानिकी क्षेत्र से निरंतर आय प्राप्त होती है। भारत के महत्वपूर्ण वन उत्पादों में कागज, प्लाईवुड, चंदन, लकड़ी, डंडे, लुगदी, माचिस की लकड़ी, ईंधन की लकड़ी, साल के बीज, तेंदू के पत्ते, गोंद, रेजिन, चिरौंजी, महुआ, बेत, रतनजोत, बांस, घास, चारा, औषधियां, मसाले, जड़ी-बूटियां प्रमुख रूप से शामिल हैं। सौंदर्य प्रसाधन के रूप में टैनिन प्राप्त होता है। इसके साथ ही विश्व में भारत वन उत्पादों का एक महत्वपूर्ण निर्यातक भी है।


पेड़-पौधे, जंगल, वन, वानिकी और सामाजिक वानिकी मानव जाति के जीने के लिए उतना ही जरूरी है; जितना के खाने के लिए अन्य और पीने के लिए पानी है। क्योंकि पेड़-पौधों से हमें ऑक्सीजन प्राप्त होती है। वहीं वृक्ष प्राणियों द्वारा छोड़े जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके हमें जीने के लिए प्राण वायु प्रदान करते हैं। घने वृक्ष एवं जंगल अच्छी वर्षा करने के लिए उत्तरदाई भी हैं। ऐसे में मानव और प्राणियों की जीवन रक्षा के लिए वृक्ष एक अमूल्य धरोहर का कार्य करते हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि अधिक से अधिक वृक्षारोपण के साथ ही इस बात का ध्यान रखा जाए कि जो वृक्ष लगाए जा रहे हैं वह पर्यावरण के लिए कितने हित रक्षक हैं।

वृक्षों कई प्रजातियां जैसे कि यूकेलिप्टस, इलेस्टोनिया आदि वृक्ष जिन पर कि कभी पतझड़ नहीं होता है। पतझड़ ना करने वाले वृक्ष पर्यावरण के अनुकूल नहीं माने जाते हैं। बताया जाता है कि ऐसे वृक्ष जमीन से ज्यादा मात्रा में पानी खींचकर वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से वायुमंडल में उड़ा देते हैं जिससे जमीन के अंदर भूगर्भ जलस्तर में कमी आती है। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें ऐसे पेड़-पौधों का चयन करना चाहिए जो पर्यावरण के अनुकूल एवं इमारती लकड़ी के साथ ही आर्थिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक हैं।

आज खेती में भी कृषि वानिकी की जा रही है। कृषि वानिकी के कई रूप आज चलन में हैं। कृषि वानिकी के माध्यम से लकड़ी, चारा, फसल उत्पादन, औषधि उत्पादन आदि प्राप्त किया जा सकता है। कृषि वानिकी से पेड़ों के साथ फसलों और पशुधन की विविधता में वृद्धि होती है जो कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में जैव विविधता को बढ़ावा और संरक्षित करते हैं। देश में स्थानीय कृषि वानिकी ज्ञान वर्षों से जमा हुआ है, जो मुख्य रूप से अपनी जातीय वानिकी प्रथाओं और विविध वृक्ष प्रजातियों को उगाने के लिए स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के लिए जाना जाता है। हाल के वर्षों में, कृषि वानिकी प्रणालियों पर वैज्ञानिक ज्ञान जुटाने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।

पर्यावरण और प्रकृति को बचाने के लिए वानिकी एक बहुत महत्वपूर्ण किरदार है। आज समय की मांग है कि वनों को अधिका-अधिक संरक्षित करने के साथ ही सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देने की जरूरत है। क्योंकि वन क्षेत्र को बढ़ाने की अपनी सीमाएं हैं। लेकिन ग्राम पंचायतों के माध्यम से सामाजिक वानिकी के दायरे को अधिक से अधिक बढ़ाया जाना संभव है।

(डॉ. सत्येंद्र पाल सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, लहार (भिंड) मध्य प्रदेश में प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख हैं)

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