Air Pollution: 'इस हवा में सांस ली तो हो जाएंगे सांस के मरीज'

व्यक्ति को जीवित रहने के लिए सांस की आवश्यकता होती है लेकिन अब आगर इस हवा में सांस लेंगे तो आपको सांस की बीमारी हो जाएगी। पढ़िए क्या कह रहे हैं डॉक्टर और वैज्ञानिक...

Update: 2018-11-09 12:30 GMT
वायु प्रदूषण से सांस, दमा समेत हो सकती है कैंसर जैसी कई जानलेवा बीमारियां। फोटो-गांव कनेक्शन

लखनऊ। हमारे आसपास की आबोहवा इतनी ज्यादा प्रदूषित हो गई है, अगर उसमें लंबे समय तक सांस लिया जाए तो सांस की बीमारी हो सकती है। सांस की बीमारी यानी अस्थमा। लेकिन समस्या सिर्फ बीमारी तक नहीं हैं वायु प्रदूषण जानलेवा साबित हो रहा है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जहरीली हवा से दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चों की मौतें भारत में होती हैं। वायु प्रदूषण क्या है और ये कैसे हमारी सेहत पर असर डालता है। गांव कनेक्शन ने इसे लेकर वैज्ञानिकों और चिकित्सकों से खास बात की। 

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा मंगलवार को जारी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) के मुताबिक देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित 15 शहरों में से 11 उत्तर प्रदेश के हैं। इनमे गाजियाबाद सबसे ऊपर है, जहां एक्यूआई 451 दर्ज की गई है। इसके बाद गुरुग्राम 426 एक्यूआई के साथ दूसरे नंबर पर रहा। इसके बाद बुलंदशहर 414, फरीदाबाद 413, नोएडा 408, हापुड़ 403, बागपत 401, दिल्ली 401, ग्रेटर नोएडा 394, कानपुर 383, आगरा 354, मुजफ्फरनगर 351, लखनऊ 314 और मुरादाबाद का एक्यूआई 301 रहा। इन सभी को रेड और डार्क रेड वर्गों में रखा गया है। हवा के प्रदूषण के लिए पीएम 2.5 कण जिम्मेदार होते हैं।

प्रो. आलोक धवन

गांव कनेक्शन से विशेष बातचीत में भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, (लखनऊ) के निदेशक प्रो. आलोक धवन बताते हैं, "पीएम का मतलब है पार्टिकुलेट मैटर। छोटे-छोटे कण वो चाहे मिट्टी के हों या डीजल के जो हवा में रहते हैं उनको ही पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं। पीएम 2.5 माइक्रोन का कण जब हमारी श्वांस नली के जरिये हमारे फेफड़ों में जाता है। ये इतने छोटे होते हैं कि हमारे फेफड़ों में काफी दूर तक चले जाते हैं और वहां जमा हो जाते हैं। वायु प्रदूषण इस तरह का जब कभी बढ़ता है तो लोगों को खांसी आती है, बलगम आता है और बलगम काफी काला-काला निकलता है। धीरे-धीरे इनकी मात्रा बढ़ती जाती है और लोगों को कई स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियां होने लगती हैं। इस प्रदूषण का असर बच्चों और बुजुर्गों पर ज्यादा पड़ता है। शरीर में जब सांस सम्बन्धी बीमारी होती है तो और भी कई तरह की बीमारियां भी होती हैं।"

भारत में प्रदूषण के कारण 2016 में करीब एक लाख से अधिक बच्चों को जान गंवानी पड़ी है। यह दावा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है। रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों की मौत का कारण भारत की जहरीली होती हवा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में भारत पूरी दुनिया में पहले नंबर पर है। 

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द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में 2016 में पांच साल से कम उम्र के 60,987 बच्चों को जहरीली हवा की वजह से जान गंवानी पड़ी है। यह दुनिया में सबसे ज्यादा है। दूसरे नंबर पर नाइजीरिया है जहां 47,674 बच्चोंन की मौत हो गई। इसके बाद पाकिस्तान में 21,136 बच्चे और कांगो में 12,890 बच्चों की वायु प्रदूषण के कारण मौत हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक इस आयु वर्ग में मारे गए बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक है। भारत में 2016 में 32,889 लड़कियों की मौत इसी कारण से हुई है। वहीं, पांच से 14 साल के 4,360 बच्चों को वायु प्रदूषण के कारण जान गंवानी पड़ी है। सभी उम्र के बच्चों को मिलाकर देखें तो वायु प्रदूषण से करीब एक लाख दस हजार बच्चोंं की मौत हो गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अब करीब 20 लाख लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से हुई है जो पूरी दुनिया में इस कारण से हुई मौतों का 25 प्रतिशत है।

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डॉ. सूर्यकांत 

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के श्वसन चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ सूर्यकांत बताते हैं," अगर बार-बार छींक आ रही है, नाक से पाी आ रहा है, नाक में खुजली हो रही है, नाक चोक हो रही तो समझिए आप वायु प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। अब हम नाक से आगे बढेंगे तो जैसे-जैसे हवा सांस के द्वारा नीचे जाती है, गले में खिच-खिच हो जाती है, गले में खराश हो जाती है खांसी आने लगती है इसके बाद हम और नीचे जाएंगे तो ब्रोन्काईटिस हो जाती है अस्थमा हो जाता है और अगर लम्बे समय तक अगर ये प्रदूषण रहता है तो फेफड़े का कैंसर भी होने का खतरा बढ़ जाता है।"

वो आगे बताते हैं, " इसका असर आंखों पर भी पड़ता है। आंखों में खुजली होने लगती है, आंखों में जलन होना और पानी आने लगता है। इसके कारण सिरदर्द हो सकता है माईग्रेन का अटैक पड़ सकता है। इसके अलावा रक्तचाप बढ़ जाता है और लम्बे समय के बाद दिल का दौरा भी पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।"

गर्भवती महिलाएं रखें खास ख्याल- डॉ. सूर्यकांत

"गर्भवती महिलाओं के लिये भी इसका खतरा रहता है। प्रदूषण में रहने के बाद गर्भवती महिला के गर्भ में पाल रहे बच्चे के लिए खतरा बढ़ जाता है। उसके बच्चे की गर्भ में ही मृत्यु हो सकती है। इसके अलावा बच्चे में शारीरिक बीमारियां, एलर्जी और सांस सम्बन्धी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। इन सब बीमारियों के साथ-साथ मृत्यु दर भी बढ़ जाती है।" डॉ सूर्यकांत ने बताया।

लखनऊ में इंदिरानगर सबसे ज्यादा प्रदूषित

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) की पोस्ट मानसून रिपोर्ट-2018 में आवासीय इलाकों में लखनऊ के इंदिरानगर और व्यावसायिक इलाकों में आलमबाग की हवा सबसे अधिक प्रदूषित मिली है। इंदिरानगर की हवा पिछले चार साल से सर्वाधिक प्रदूषित बनी हुई है।

प्रो. अलोक धवन बताते हैं, "भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान हर छह माह पर लखनऊ का वायु प्रदूषण मापता है और देखते हैं प्रदूषण के बढ़ने की वजह क्या हैं? इसके ऊपर हम पिछले 20 साल से विश्लेषण कर रहे हैं और देखते हैं कि अलग-अलग जगहों पर किस तरीके से प्रदूषण बढ़ा है और फिर उसके बाद वापस आ जाता है? इस समय लखनऊ में जो प्रदूषण फ़ैल रहा है उसमें इंदिरानगर में जो रिहायसी और बिजनेस इलाके हैं वहां पर एक जैसा प्रदूषण देखने को मिला है। इसका विश्लेषण करने पर यह पता चला कि जो मेट्रो लाइन जिन जगहों से निकली है उधर काम चल रहा था इसके अलावा उन जगहों पर जाम भी बहुत ज्यादा लगता था, जिससे पीएम 2.5 और पीएम 10 बढ़ गये। ये चीजें हमारे हाथ में थी।" निर्माण कार्य वायु प्रदूषण की बड़ी वजह होते हैं। दिल्ली-एनसीआर में ये अंधाधुंध जारी बिल्डिंग और रोड और पुल जैसे प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य फिलहाल रोक किया गया है। पराली जलाने की की समस्या से जूझ रहे दिल्ली एनसीआर में नवबंर-दिसंबर महीने में दिवाली के आसपास प्रदूषण बड़ी समस्या बन जाता है।

"मैक्सिको में एक शोध किया गया, जिन लोगों की एक्सीडेंट से मौत हुई और उनका जब पोस्टमार्टम किया गया तो उनके दिमाग में भी ये काफी ज्यादा मात्रा में कण पाए गये। इसकी तुलना लंदन में एक्सीडेंट से मरने वाले लोगों से किया गया। लंदन में पोस्टमार्टम में उनके दिमाग में ये कण कम पाए गये। इस शोध के जरिये उन्होंने यह बताने की कोशिश की जहां पर प्रदूषण ज्यादा है वहां पर लोगों के मष्तिष्क को भी खतरा है।" प्रो. धवन ने बताया।

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डॉ. बीडी त्रिपाठी 

महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र अध्यक्ष डॉ. बीडी त्रिपाठी बताते हैं, "भारत में जिस तरह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है यह भविष्य के लिए सही नही है। कोई ऐसा जीव नहीं है जो बिना सांस लिए बिना जीवित रह सके और अब जब सांस ले रहा है तो प्रदूषण जो कि किसी भी रूप में सीधे हमारे अन्दर जा रहा है। यह प्रदूषण हमें बहुत ज्यादा बीमार बना देगा। इस प्रदूषण को रोकने के लिए बहुत सख्त कदम उठाने होंगे। हर उस चीज पर पाबंदी लगानी होगी जिससे यह प्रदूषण बन रहा है। प्रदूषण को रोकने के दो उपाय हैं एक जेनरेटर यानि की जहां से यह प्रदूषण बन रहा है उसे खत्म करना होगा और दूसरा अगर प्रदूषण उत्पन्न हो जा रहा है तो उसे एब्जोर्ब करना पड़ेगा, जिसके लिए हरे पौधे और पानी का छिड़काव यह सब करना होगा। अगर अभी सख्त कदम नहीं उठाये गये तो आने वाला समय बहुत घातक होगा।"

'बाहर निकलते वक्त गमछा बाँध लीजिये'

प्रदूषण की समस्या सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रही है, देश का ग्रामीण इलाका भी इसकी चपेट में आ रहा है। शहर के लोग घरों से बाहर निकलते वक्त मास्क का प्रयोग करते हैं, जबकि ग्रामीण इलाकों में गमछा दशकों से किसानों का साथी रहा है।  "गाँव के व्यक्ति चलते वक्त एक कंधे पर गमछा डालकर चलते थे। गाँव में प्रदूषण की मात्रा इतनी ज्यादा नहीं होती है लेकिन लोगों की आदत में था। आप जब प्रदूषण वाले क्षेत्र में आते हैं तो इस गमछे से मुंह और नाक को बांध लिया जाए तो उस गमछे से अच्छा कोई भी मास्क नहीं है जो प्रदूषण से आप को बचा सके। प्रदूषण में जो लोग पतले मास्क लगाकर चलते हैं ये मात्र पांच से दस प्रतिशत ही काम करते हैं। इस प्रदूषण में एन95 मास्क काम करता है जो कि काफी महंगा आता है और उसमें सांस लेने में भी तकलीफ होती है।" डॉ सूर्यकांत बताते हैं।

(एयर क्वालिटी इंडेक्स) एक्यूआई का स्तर

एयर क्वालिटी इंडेक्स के जरिए मापा जाता है वायु में प्रदूषण का स्तर। एक्यूआई का स्तर 0 से 50 के बीच 'अच्छा' माना जाता है। 51 से 100 के बीच यह 'संतोषजनक' स्तर पर होता है। 201 से 300 के बीच का एक्यूआई 'खराब' माना जाता है। 301 से 400 के बीच के आंकड़े को 'बेहद खराब' कहा जाता है। एक्यूआई 401 से 500 के बीच आ जाता है तो इसे 'गंभीर' कहा जाता है। 

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