छोटे अस्पतालों को देनी होगी बेहतर सुविधाएं, तभी बड़े अस्पतालों में कम होगी मरीजों की भीड़

Update: 2017-10-23 14:38 GMT
अस्पताल में मरीज को भर्ती करवाने ले जाते परिजन 

लखनऊ। लापरवाही के चलते अस्पतालों से कुछ ऐसे मरीजों को बड़े स्वास्थ्य संस्थानों में भेज दिया जाता है, जिनका इलाज उन अस्पतालों में भी हो सकता है। इसके चलते बड़े संस्थानों के ऊपर दबाव बढ़ता है। मेडिकल कॉलेज में रोजाना 60 से 70 प्रतिशत मरीजों को रेफर किया जाता है, जिनका इलाज उन संस्थानों में हो सकता है जहां से उन्हें रेफर किया गया है।

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के पल्मोनरी एवं क्रिटिकल केयर के सहायक प्रोफ़ेसर डॉ वेदप्रकाश ने बताया, “स्वास्थ्य व्यवस्था की लाचारी की जनसंख्या विस्फोट महत्वपूर्ण वजह है। इसकी वजह से संस्थान को काफी संघर्ष करना पड़ता है। इसके अलावा प्रदेश के अस्पतालों का मरीज को रेफर करने का कोई भी सही ढंग नहीं है। उस तरह के मरीज भी यहां पर आ जाते है, जिनका इलाज प्राइमरी या फिर सेकंड्री लेवल पर हो सकता था लेकिन वो करना नहीं चाहते हैं।” मेडिकल के ट्रॉमा सेंटर में लगभग 400 बेड है जो हमेशा भरे रहते हैं और इसके साथ-साथ जो मरीज के साथ होता है उसके लिए अलग से एक छोटा बेड होता है वो भी हमेशा भरा रहता है। रोजाना 200 से 250 तक मरीज ट्रॉमा में आते ही है।”

उन्होंने बताया, “प्रदेश में एम्बुलेंस सेवा से मरीज अब तुरंत सीधे मेडिकल कॉलेज पहुँच जाते हैं। इसकी वजह से अस्पतालों के बेड तो भरे ही रहते हैं इसके साथ-साथ अस्पताल में स्ट्रेचर पर भी इलाज चलता है। मानवता के नाते मरीज को हम भर्ती कर लेते हैं। इसके अलावा जो मरीज के साथ होता है उसको भी एक बेड दिया जाता है उसपर भी मरीज होते हैं। इतनी मरीजों कि संख्या आ जाती है। किसी भी अस्पताल के डॉक्टर को मरीज को रेफर करने के लिए एक फॉर्म होना चाहिए। उसमें मरीज को क्यों रेफर किया जा रहा है इसके साथ-साथ डॉक्टर उसका इलाज क्यों नहीं कर सकता ये भी जरुर हो।”

ये भी पढ़े- सावधान ! कहीं आप बार-बार एक ही काम तो नहीं करते

सिविल अस्पताल में अपने पैर का इलाज करवाने आये निशातगंज निवासी बल्लू प्रसाद (60 वर्ष) बताते हैं, “हमारे पैर में सूजन आ गई है, जिसका इलाज करवाने के लिए हम यहां आये थे, लेकिन डॉक्टर का कहना है कि यहां पर इलाज संभव नहीं है आप बलरामपुर या फिर मेडिकल कॉलेज में जाकर अपना इलाज करवाएं। मैं ये समझ नहीं पाया कि आखिर अस्पताल में हर बीमारी का इलाज होना चाहिए फिर क्यों मेरी बीमारी का इलाज इस अस्पताल में नहीं है?”

सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ आशूतोष दुबे ने बताया, “रोजाना अस्पताल से एमरजेंसी से लगभग 20 मरीजों को रेफर किया जाता है बड़े संस्थानों के लिए और सीधे ओपीडी से लगभग 50 मरीजों को रेफर कर दिया जाता है। अगर पूरे अस्पताल की बात करें तो लगभग 100 मरीजों को रोजाना बड़े संस्थानों के लिए रेफर कर दिया जाता है।”

ये भी पढ़े- मानसिक रोगों को न समझें पागलपन

लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के आकस्मिक चिकित्सा के विभाग के डॉ राहुल ने बताया, “बड़े संस्थानों में मरीजों को रेफर तभी करना चाहिए जब तक उसकी हालत इतनी गंभीर न हो कि उसका इलाज प्राइमरी या सेकंड्री लेवल के अस्पतालों में में न हो पाए। हम भी मरीज को तभी बड़े संस्थानों के लिए रेफर करते हैं जब मरीज की हालत ज्यादा खराब होती है।”

उन्होंने आगे बताया, इसके अलावा रेफर सिस्टम को और भी सही करने के लिए प्रदेश के हर जिले में केजीएमयू और लोहिया जैसे संस्थानों की आवश्यकता है, जहां पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पताल से मरीजों की हालत बिगड़े या फिर वहां पर उसका इलाज संभव न हो तब मरीज को इन बड़े संस्थानों में भेज कर उसका इलाक कराया जा सके।”

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा इंचार्ज डॉ हैदर अब्बास ने बताया, ‘’रेफर करने का अस्पतालों का कोई तरीका नहीं है। पर्चे पर रेफर लिखकर मरीज को भेज देते हैं। मेडिकल कॉलेज में इसका इलाज करवाइए। मेडिकल कॉलेज में रोजाना 60 से 70% मरीज ऐसे आते हैं जिनका इलाज वहीँ पर संभव होता है जहां से वो रेफर होकर आये हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और जिला अस्पतालों में इतनी सुविधाएँ हैं जहां पर मरीज का इलाज आसानी से अच्छे तरीके से हो सकता है। हर संस्थान का डॉक्टर लग के काम करे और मरीज का इलाज सही ढंग से करे तो मेडिकल कॉलेज तक ज्यादा मरीजों तक न पड़ेगा।”

ये भी पढ़े- कैंसर से जान बचाई जा सकती है, बशर्ते आप को इसकी सही स्टेज पर जानकारी हो, जानिए कैसे

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह ने बताया, “हमेशा ही अस्पतालों को यही बताया जाता है कि मरीज जब तक ज्यादा गंभीर स्थिति में न हो तब तक उन्हें बढ़े स्वास्थ्य संस्थानों में न भेजा जाये। इससे डॉक्टर के ऊपर दबाव तो बढ़ता है इसके साथ-साथ उसे ज्ल्दी इलाज नहीं मिल पाता है जिनके वाकई में जल्दी इलाज की जरुरत होती है। इसमें जरुर सुधार किया जायेगा।”

स्वास्थ्य विभाग ने बनाया था नियम

रेफरल सिस्टम के तहत सभी सरकारी अस्पतालों की इमरजेंसी के बाहर रजिस्टर रखना होगा। इसकी जि‍म्मेदारी आपातकालीन चिकित्सा अधिकारी (ईएमओ) की होगी। इस रजिस्टर में मरीज की इंट्री और भर्ती नहीं करने और रेफर करने की वजह लिखनी होगी। मरीज का पता और फोन नंबर सहि‍त पूरा ब्योरा भी दर्ज करना होगा। बेड फुल होने की वजह से अगर मरीज को नहीं भर्ती किया गया तो उसे भी रजिस्टर में लिखना होगा।

ये भी पढ़े- यूपी में मेडिकल सुविधाएं : 20 हजार लोगों पर एक डॉक्टर और 3500 लोगों पर है एक बेड

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मलीहाबाद के अधीक्षक डॉ शाहिद रज़ा ने बताया, “अस्पताल से मरीज तब रेफर किया जाता है, जब अस्पताल में उसका इलाज संभव नहीं होता है। अस्पताल में ऑपरेशन परेशान करने के लिए कोई भी डॉक्टर नहीं है, अगर डॉक्टर हो तो हम यहीं ऑपरेशन करके मरीज का इलाज कर सकते हैं। जो भी ऑपरेशन का केस आता है उसे रेफर ही करना होता है। रेफर करने के लिए पर्चे पर ही रेफर लिख कर भेज देते हैं, जहां के लिए मरीज रेफर किया जा रहा है।”

संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआई) के पीआरओ आशुतोष ने बताया, “हमारे संस्थान में रेफर सिस्टम बहुत सही है। ऐसे ही कोई भी मरीज को रेफर करके नहीं भेज सकता है। उसका एक तरीका है मरीज का पूरा बायोडाटा किस अस्पताल से भेजा गया है, किसलिए भेजा है, किस विभाग से भेजा गया है, जहां से आया है वहां इलाज क्यों नही हो पाया है। सब जानकारी होने के बाद ही मरीज की हम भर्ती लेते हैं।”

Full View

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Similar News