Doctors' Day: डॉक्टरों ने बयां की अपनी परेशानी, कहा- एक डॉक्टर को करना पड़ता है चार के बराबर काम

Update: 2018-07-01 04:53 GMT
अस्पतालों में घंटों लाइन में लगते हैं लोग 

लखनऊ। मरीज को बेहतर इलाज देने के लिए एक डॉक्टर को समय देना पड़ता है, मगर सरकारी अस्पतालों की दशा यह है कि घंटों लाइन में लगने के बाद डॉक्टर मरीज को सिर्फ कुछ मिनट ही दे पाते हैं।

इलाज के लिए बाराबंकी से राजधानी के लोहिया अस्पताल आए रामप्रसाद (42 वर्ष) बताते हैं, "मैं करीब डेढ़ घंटे लाइन में लगा रहा, उसके बाद डॉक्टर को दिखाने को मिला। डॉक्टर साहब ने पूछा क्या हुआ है, मैंने अपनी दिक्कत बताई और उन्होंने मुश्किल से दो मिनट के अंदर दवाई लिख कर भेज दिया, कहा-दवाई खाओ आगे दिक्कत हो तो फिर से दिखा देना।"

ऐसा हाल सिर्फ रामप्रसाद का ही नहीं, बल्कि प्रतिदिन हजारों मरीजों के साथ होता है। मरीज इलाज के लिए अस्पताल परिसर में डेरा जमाए रहते हैं, मगर बड़ी मुश्किल से डॉक्टर को दिखाने का समय मिल पाता है।

ये भी पढ़ें- आज की हर्बल टिप्स : शानदार रूम फ्रेशनर का काम करते हैं नींबू के छिलके

राजधानी के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ राजीव कुमार ने बताया, "एक डॉक्टर चार डॉक्टर का काम कर रहा है। ऐसे में डॉक्टर मरीज को समय कहां से दे पाएगा। पूरे अस्पताल में एक दिन में लगभग 6000 मरीज आते हैं और अस्पताल में डॉक्टर की संख्या 98 है। एक डॉक्टर के ऊपर कितना दबाव है खुद समझा जा सकता है।"

हाल में केंद्रीय चिकित्सा राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने लोकसभा को लिखित जानकारी दी थी कि देश में 1668 मरीजों को देखने के लिए सिर्फ एक डॉक्टर है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार, देशभर में करीब 10 लाख रजिस्टर्ड डॉक्टर्स हैं।

ये भी पढ़े़- अब 'बैड टच' की ऑनलाइन शिकायत कर सकेंगे बच्चे

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, नियमों के मुताबिक 1000 लोगों की संख्या में एक डॉक्टर होना चाहिए। ऐसे में देशभर में 5 लाख डाक्टरों की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार, और देशों से तुलना करें तो वियतनाम, पाकिस्तान और अल्जीरिया से भी खराब स्थिति भारत की है।     किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट बताते हैं, "प्रदेश में सबसे महत्वपूर्ण चीज डॉक्टर की कमी के साथ-साथ मेडिकल संस्थानों की भी कमी है। मुफ्त में इलाज पाने के लिए लोग सरकारी संस्थानों में भागते हैं और इतने मरीज आ जाते हैं कि उन्हें डॉक्टर उच्च गुणवत्ता का इलाज नहीं दे पा रहे हैं।"

उन्होंने बताया, "मेडिकल कॉलेज में एक दिन में लगभग 10,000 मरीज इलाज के लिए आते हैं और डॉक्टर की संख्या करीब 450 है, लेकिन 450 में सिर्फ 300 डॉक्टर ही मरीजों को देखते हैं और बाकी डॉक्टर पढ़ाने के लिए हैं। अस्पताल में हृदय रोग, न्यूरो और महिला रोग मरीज ज्यादा मात्रा में आते हैं।"

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पीएन श्रीवास्तव ने अपने 30 वर्ष के करियर के अनुभव को साझा करते हुए बताया, "अस्पताल के ऊपर बहुत ज्यादा दबाव है, जिसकी वजह से मरीज को ज्यादा समय दे पाना संभव नहीं होता। अगर हम एक मरीज को देखने में 10 से 15 मिनट रखें, तो मरीज को अच्छे तरीके से देख सकते हैं, लेकिन यहां पर डॉक्टर से ज्यादा जल्दी तो मरीज को रहती है। मरीज के परिजन कभी-कभी डॉक्टर से मारपीट पर भी उतारू हो जाते हैं। अस्पताल में कोई भी नियम नहीं रह गया है क्योंकि अस्पताल के ऊपर बहुत ज्यादा दबाव है और अस्पताल में काफी दूर-दूर से मरीज आते हैं।"

ये भी पढ़े़- सीने के आरपार हुई थी रॉड, डॉक्टरों ने बचाई जान

वर्ष 1994 से इस मेडिकल कॉलेज में कार्यरत डॉ. श्रीवास्तव ने बताया, "लोग डॉक्टर को भगवान मानते हैं, लेकिन यहां तो कई बार हमें जूता भी खाना पड़ता है। कई बार हमारे ऊपर मरीजों के परिजन बेवजह का दबाव डालते। अस्पताल में हमारे लिए कोई सुरक्षा भी नहीं है। पुलिस सिर्फ मूक दर्शक बन कर तमाशा देखती है।"

राम मनोहर लोहिया अस्पताल के मुख्य चकित्सा अधीक्षक डॉ राजीव कुमार ने बताया, "एक चिकित्सक चार चिकित्सक का काम कर रहा है। ऐसे में डॉक्टर मरीज को समय कहां से दे पायेगा। इस अवस्था में मरीज को थोडा होशियार बनना होगा और उसे अनावश्यक तरीके से डॉक्टर से मिलना बंद करना होगा। एक डॉक्टर के पास एक दिन में छह घंटे मिलते है ओपीडी में मरीज को देखने के लिये। इस समय इतनी भीड़ होती है कि डॉक्टर मरीज को ज्यादा समय दे ही नहीं पाता है। एक मरीज को पांच मिनट ही दे पाता है।"

उन्होंने बताया, "पूरे अस्पताल में एक दिन में लगभग 6000 मरीज आते हैं और अस्पताल में डॉक्टर की संख्या 98 है। एक डॉक्टर के ऊपर कितन दबाव है खुद समझा जा सकता है।"

ये भी पढ़े़- यूपी में मेडिकल सुविधाएं : 20 हजार लोगों पर एक डॉक्टर और 3500 लोगों पर है एक बेड

हालांकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग महानिदेशक डॉ पद्माकर सिंह बताते हैं, "अस्पतालों में डॉक्टर के ऊपर मरीजों का दबाव ज्यादा है। डॉक्टर मरीज को ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं, इसके लिए प्रदेश में वॉक इन इंटरव्यू के जरिये डॉक्टरों की भर्ती की जाएगी और इससे काफी सुधार होगा। डॉक्टर की संख्या बढ़ने पर अस्पतालों से काफी दबाव कम हो जायेगा।"

पहले चरण में 500 एमबीबीएस डाक्टरों और 500 एमएस, एमडी डिग्री धारक विशेषज्ञ डाक्टरों का इंटरव्यू लिया जाएगा। इस इंटरव्यू को लेने के लिए विशेषज्ञ डाक्टरों की एक टीम होगी जो इनका चयन करेगी। पहले चरण में सभी वॉक इन इंटरव्यू प्रदेश की राजधानी लखनऊ में ही आयोजित किए जाएंगे लेकिन अगर आवेदन करने वाले डाक्टरों की संख्या ज्यादा होगी तो प्रदेश के अन्य शहरों में भी ऐसे इंटरव्यू आयोजित किए जा सकते हैं।

ये भी पढ़ें-
यूपी के झोलाछाप डॉक्टर : बीमारी कोई भी हो सबसे पहले चढ़ाते हैं ग्लूकोज

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

Similar News