एक महिला की मुश्किलों की कहानी... बेटी से मां बनने तक और मां से फिर बेटी बनने तक

Update: 2017-08-03 10:12 GMT
एक मां जो फिर बेटी बन गई।

लखनऊ। कई बार फेसबुक पर कुछ ऐसे पोस्ट पढ़ने को मिल जाते हैं जो आपके लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं होते... जिनमें आपकी सोच, आपका नज़रिया और यहां तक कि आपकी ज़िंदगी को बदलने तक की ताक़त होती है। ऐसा ही एक पोस्ट एक महिला ने 'ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे' पेज पर लिखा। इस पोस्ट को 14 हज़ार से ज़्यादा लाइक मिल चुके हैं व लगभग 1350 शेयर हो चुके हैं। लगभग 600 लोग इस पर कमेंट भी कर चुके हैं। जब आप इस पोस्ट को आखिरी लाइन तक पढ़ेंगे तो आपकी समझ में आएगा कि दुनिया में कुछ कर दिखाने के लिए, खुद को बदलने के लिए और अपने सपनों को पूरा करने के लिए आपको किस हौसले की ज़रूरत है...

ये है पूरा पोस्ट

1989 में मैंने मैसूर से इलेक्ट्रॉनिक्स में बीएससी पास किया। मैं हमेशा से पढ़ने में अच्छी थी और अपने दोस्तों में पहली थी जिसने जॉब करना शुरू किया था। मुझे बीएससी के बाद ही लार्सन एंड ट्रूबो में नौकरी मिल गई लेकिन दुर्भाग्य था कि आठ महीने बाद ही मेरे पापा का मैसूर से रायपुरा ट्रांसफर हो गया। इसलिए मुझे अपनी नौकरी छोड़कर परिवार के साथ जाना पड़ा।

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मेरा परिवार बहुत रूढ़िवादी था, जिसमें लड़कियों को घर से दूर अकेले रहकर पढ़ने या काम करने की इजाज़त नहीं थी। 22 साल की उम्र में मेरी शादी करा दी गई और जिस परिवार में मेरी शादी हुई वह भी मेरे मायके की ही तरह रूढ़िवादी था। मेरे ससुराल वाले मुझे काम नहीं करने देना चाहते थे और जब तक मैं इस बात को ठीक से समझ पाती, मैं प्रेग्नेंट हो चुकी थी और फिर मैं बस एक हाउसवाइफ बनकर रह गई। मेरी शादी भी बहुत आसान नहीं थी। इसमें बहुत मुश्किलें थीं, हालांकि मैं ससुराल से अलग रहती थी, फिर भी ससुराल के लोगों का हमारा ऊपर पूरा नियंत्रण था।

मैं डिप्रेशन में चली गई और कुछ सालों तक मैंने एंटी डिप्रेशेंट दवाएं भी लीं, उस वक्त मैं बहुत अकेलापन महसूस करती थी। मेरे पति काम पर चले जाते थे और मुझे काम करने की अनुमति नहीं थी। मैं आपको बता नहीं सकती कि उस समय मुझे याद्दाश्त कम होना, माइग्रेन जैसी कितनी स्वास्थ्य समस्याएं हो गई थीं क्योंकि मैं दिमागी रूप से स्थिर नहीं थी। किसी ने भी मेरे डिप्रेशन को सीरियसली नहीं लिया। मेरे ससुराल वालों ने तो यह समझने की भी कोशिश नहीं की कि मुझे हुआ क्या है। मुझे पता था कि मुझे सिर्फ एक ही व्यक्ति बचा सकता है और वह मैं खुद हूं।

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जब मेरे पति की पोस्टिंग विदेश में हो गई तो मैंने घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और इस बात से मुझे बहुत सहारा मिला। जैसे जैसे समय बीतता गया मुझे इस बात का अहसास हुआ कि आजकल जिस तरह से मां-बाप अपने बच्चों पर प्रेशर बनाते हैं उस हिसाब से बच्चों से ज़्यादा काउंसलिंग की ज़रूरत उनके मां-बाप को है। मैं ऐसे पेरेंट्स को समझाती थी लेकिन मैं चाहती थी कि ऐसा मैं प्रोफेशनली करूं। इसलिए अपने बच्चों के प्रोत्साहन पर मैंने यह तय किया कि मैं दोबारा से पढ़ाई शुरू करूंगी। मैं छह महीने का एक कोर्स करना चाहती थी लेकिन मैंने एसएनडीटी वूमेंस यूनिवर्सिटी में एमएससी का इंट्रेस पास कर लिया।

47 साल की उम्र में मैं दोबारा एक स्टूडेंट की तरह कॉलेज जाने के लिए तैयार थी। मेरी क्लास के स्टूडेंट्स उम्र में मेरे बेटे से भी छोटे थे लेकिन उन सबने मुझसे दोस्ती कर ली। मैं रोज़ सुबह जल्दी उठकर टिफिन बनाती थी ताकि अपने नए बने दोस्तों के साथ शेयर कर सकूं और उन सबको भी मेरा खाना बहुत पसंद आता था। मुझे पढ़ना और अपने होमवर्क में घंटों तक लगे रहना अच्छा लगता है। अभी कल ही मेरी बेटी रात में थोड़ा देर से घर आई और उसने मुझे अपने प्रजेंटेशन के लिए तैयारी करते देखा। मुझे विश्वास नहीं होता कि समय कितना बदल गया है... जब मैं पढ़ रही थी मेरी बेटी मेरे पास आई और मुझसे पूछा कि मैंने कुछ खाया है या नहीं? और आपको पता है, मेरी कॉलेज फीस किसने दी? पहले साल की मेरी बेटी ने और दूसरे साल की मेरे बेटे ने। वो मेरी ताकत हैं और मेरे सपनों को पूरा करने, जो मैं बचपन में देखती थी, के लिए मुझे हमेशा प्रोत्साहित करते हैं। उस समय मैं बहुत विनम्र थी लेकिन आज मैं उस विद्रोही की तरह हूं जो दुनिया को अपनी मुठ्ठी में लेने के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकती।

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जो मैंने झेला है, उसे कई महिलाएं झेलती हैं लेकिन झेलती रहती हैं... मैं उनकी मदद करना चाहती हूं। मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि कभी भी किसी भी चीज़ के लिए बहुत देर नहीं होती चाहे - नौकरी करना हो, कहीं घूमने जाना हो या फिर वापस कॉलेज ही क्यों न जाना हो। खुद से प्यार करने के लिए कभी बहुत देर नहीं होती। एक साल पहले शायद आप मुझे पहचान भी नहीं पाते। मैं बहुत मोटी थी, मेरे बाल गिर रहे थे, मेरी त्वचा बुरी थी और मुझे स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं थीं लेकिन क्या अब मैं 16 साल की नहीं लगती? मज़ाक से हटकर, ये सब इसलिए बदल गया क्योंकि मैं खुश हूं... क्योंकि मेरे पास एक उद्देश्य है... क्योंकि अब मैं 'मैं' हूं। एक मां जो फिर बेटी बन गई।

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