ग्रामीणों को ही नहीं बल्कि पुलिस को भी लेनी पड़ती है इस महिला की मदद 

Update: 2018-06-28 07:30 GMT
सुमित्रा देवी, डिगोली गाँव

सहारनपुर। सुमित्रा देवी ने आज उम्र के 70 वर्ष भले ही पूरे कर लिए हों पर दूसरों की मदद को लेकर इनके जज्बे में अभी भी कोई कमी नहीं आई है। वर्ष 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित सुमित्रा आज अपने क्षेत्र में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं।

सहारनपुर जिला मुख्यालय से पूर्व दिशा में लगभग 50 किमी दूर नागल ब्लॉक के डिगोली गाँव की सुमित्रा देवी से वहां की स्थानीय पुलिस तक मदद लेती है, लेकिन सुमित्रा की जिंदगी इतनी आसान नहीं थी। सुमित्रा देवी बताती हैं, "शादी के कई साल तक पति की खूब मार खाई है। बचपन में पिता नहीं रहे, मां मजदूरी करती थीं, 15 वर्ष में ही शादी कर दी गई। देने को कुछ था नहीं इसलिए ससुराल में हमारी ज्यादा कद्र नहीं रही।

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रोज ताने सुनने पड़ते कि कुछ लेकर नहीं आई हो, मार भी इसी वजह से खाती थी।" उम्र की इस दहलीज पर पहुंचने के बावजूद सुमित्रा के काम में कहीं कोई कमी नहीं आई है। ये आज भी थाने, कचहरी, पंचायत, स्वास्थ्य विभाग, शिक्षा विभाग कहीं भी जाना हो बिना झिझक के चली जाती हैं। सुमित्रा कहती हैं, "मैं पढ़ी-लिखी भले ही नहीं हूं पर मैंने वो सारी बातें मीटिंग में जा-जाकर सीख ली हैं जिसकी हमें जरूरत पड़ती है। अब तो पुलिस वाले भी जो मामले थाने जाते हैं हमें ही भेज देते हैं। नारी अदालत में 20 वर्षों में कितने मसले सुलझाए हैं उसकी कोई गिनती नहीं हैं।"

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए महिला समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1989 में शुरू की गई थी। सबसे पहले वर्ष 1990 में उत्तर प्रदेश के चार जिलों से इसकी शुरुआत की गई थी, जिनमें बनारस, बांदा, टिहरी गढ़वाल (जो पहले उत्तर प्रदेश में था) और सहारनपुर जिला शामिल थे।

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सहारनपुर जिला की महिला समाख्या की जिला समन्यवक बबिता वर्मा बताती हैं, "जब काम की शुरुआत की तो हमने ये महसूस किया कि महिलाओं की समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है। नारी अदालत की शुरुआत इसी सोच के साथ की गई थी कि महिलाओं को अपनी बात कहने का एक ठिकाना हो।" वो आगे बताती हैं, "जिले में पांच नारी अदालत चल रही हैं।

कभी घरेलू हिंसा सहन करने वाली महिलाएं आज हजारों महिलाओं को घरेलू हिंसा से निजात दिला चुकी हैं। पांच ब्लॉक में पांच नारी अदालत में 100 सक्रिय महिलाएं महीने की अलग-अलग तारीख को बैठक करके महिलाओं की समस्याएं सुनती नजर आती हैं।"

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