अब जहाज़ में पढ़ रहे हैं इस गाँव के बच्चे

राजस्थान में सरकारी स्कूल के एक टीचर ने बदहाल स्कूलों की ऐसी शक्ल बदली है कि दूर-दूर से लोग वहाँ सेल्फी के लिए आने लगे हैं। डेढ़ दशक में कई सरकारी स्कूलों की वे तस्वीर बदल चुके हैं।

Update: 2023-05-29 07:05 GMT

आए दिन गाँव में बाहर से आने वाले लोग क्रूज के साथ सेल्फी लेना नहीं भूलते, अगर ये कहें कि स्कूल अब सेल्फी प्वाइंट बन गया है तो ग़लत नहीं होगा।

भरतपुर (राजस्थान)। स्कूल में जहाज़! जी हाँ, अलवर के हल्दीना गाँव में इन दिनों एक सरकारी स्कूल लोगों के लिए सेल्फी प्वाइंट बना हुआ है।

गाँव में बड़े क्रूज (जहाज़) के आने की ख़बर क्या फैली स्कूली बच्चे ही नहीं, आस पास के गाँवों तक से लोग उसके साथ एक फोटो की हसरत लिए अब वहाँ चले आते हैं।

ये मुमकिन हुआ है भरतपुर के नदबई कस्बा के राजेश लवानियां की बदौलत। वे एक टीचर के साथ इंजीनियर भी हैं। अपने इस हुनर से उन्होंने कई सरकारी स्कूलों को जहाज़, बस और ट्रेन की शक्ल दे दी है।

राजस्थान के गाँवों में बदहाल सरकारी स्कूलों की कायापलट कर राजेश लवानियां मिसाल बन गए हैं।

हल्दीना (मालाखेड़ा) के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल बनवारीलाल चौधरी कहते हैं," अब क्रूज में स्मार्ट क्लास चलती है,जिसमें छात्र-छात्राओं को ऑनलाइन पढ़ाया जाता है। इसकी दूसरी मँजिल पर एक्टिविटी रूम है, वहाँ बच्चे कई तरह की गतिविधि करते हैं। जब से ये बना है बच्चे खुद स्कूल आना चाहते हैं, दाखिला तो बढ़ा ही, स्कूल छोड़ कर घर बैठने वाले भी कम हुए हैं।"

"आए दिन गाँव में बाहर से आने वाले लोग क्रूज के साथ सेल्फी लेना नहीं भूलते, अगर ये कहें कि स्कूल अब सेल्फी प्वाइंट बन गया है तो ग़लत नहीं होगा।" बनवारीलाल चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

राजेश लवानियां ने साल 2016 में इंदरगढ़ गाँव के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल में क्लास (कक्षा) को ही हवाई जहाज़ का रूप दिया था। इससे पहले उन्होंने 2015 में अलवर में राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल की क्लास को रेलवे स्टेशन और ट्रेन जैसा बना दिया। फिर 2018 में उमरैण के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल में शौचालयों को स्वच्छता वाहिनी (बस) जैसा बनाया। वे अब तक एक दर्जन से अधिक सरकारी स्कूलों की कक्षाओं को ट्रेन और स्कूलों के शौचालयों को बस का रूप दे चुके हैं।


लवानियां गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "साल 1992 में टीचर के रूप में मेरी पहली पोस्टिंग अलवर के रामगढ़ ब्लॉक में धनेटा गाँव के सरकारी माध्यमिक स्कूल में हुई। फिर अलवर के कई सरकारी स्कूलों में टीचर रहा। नौकरी लगने से पहले मैं सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर चुका था, जिससे 2008 में प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर सर्व शिक्षा अभियान में जूनियर इंजीनियर के तौर पर काम करने की ज़िम्मेदारी मिली। फिर तो पूछिए नहीं, इसके बाद मैंने अपने सपनों को साकार करना शुरू कर दिया।"

लवानियां के मुताबिक़ अलवर शहर के ही मोरसराय में राजकीय मिडिल स्कूल बिना इमारत एक मँदिर में चलता था। वहाँ आठ कक्षाओं में सिर्फ 35 बच्चे थे। तब उन्होंने आसपास के लोगों से बात की और कुछ रक़म जमा की, इसके बाद ज़मीन लेकर दो मंजिला इमारत बनवाई। इसके बनने के बाद छात्रों की सँख्या बढकर 350 हो गई। काम कमाल का था, लिहाज़ा राज्य सरकार की तरफ से उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया गया। अबतक वे सात बार तमाम सम्मानों से नवाज़े जा चुके हैं।

राजेश लवानियां ने इस हुनर से उन्होंने कई सरकारी स्कूलों को जहाज़, बस और ट्रेन की शक्ल दे दी है।

सिर्फ राजस्थान ही नहीं, उत्तर प्रदेश सरकार ने कोविड-19 से पहले जब सरकारी स्कूलों के लिए कायाकल्प अभियान चलाया तो रिसोर्स पर्सन के तौर पर इनकी भी मदद ली। इसके लिए वे 3 वर्कशॉप भी कर चुके हैं।

वे कहते हैं, "सरकारी स्कूलों में ऐसी बदहाली देखी है जिसे बयाँ नहीं कर सकता। अलवर के सोनावा के स्कूल में तो टीचरों को शौचालय के लिए एक गली में जाना पड़ता था। जाने से पहले गली के कोने पर छात्र या छात्राओं को खड़ा करना पड़ता था ताकि कोई अचानक नहीं आ जाए।"

उनके मुताबिक़ स्कूलों की मरम्मत के लिए संबंधित गाँव के लोगों के साथ स्कूल स्टॉफ भी पैसा देता है। कई एनजीओ ने स्कूलों की दशा-दिशा बदलने में मदद की। आरडीएनसी मित्तल फाउण्डेशन और शहगल फाउण्डेशन का सहयोग उल्लेखनीय रहा है।


हल्दीना के पूरन चंद मीणा कहते हैं, "क्रूज बनने से स्कूल का लुक बदला है, काफी अच्छा लगता है। स्कूल अच्छा होने से बच्चे भी मोटिवेट (प्रेरित) होते हैं, मेरी बेटी मेघा ने इसी स्कूल से 11वीं और 12वीं की पढ़ाई की है।"

मेघा बताती हैं कि क्रूज में बने स्मार्ट क्लास में बैठकर ऐसा महसूस होता है, वह पानी के जहाज़ में बैठकर पढ़ रही हो, जो उसे काफी अच्छा लगा और पढ़ाई के प्रति उसका लगाव बढ़ा।

राजस्थान के गाँवों में बदहाल सरकारी स्कूलों की कायापलट कर राजेश लवानियां मिसाल बन गए हैं। वे खुश हैं उनके सपने गाँवों से उड़ान भर रहे हैं।

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